
भोपाल। संस्कृति विभाग, म.प्र. शासन द्वारा शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर “शक्ति पर्व” का आयोजन सोमवार शाम माँ विजयासन माता मंदिर प्रांगण, सलकनपुर में किया गया। लोक गीत, भक्ति गीत और शिव-सती की गाथा पर केंद्रित नृत्य नाटिका के माध्यम से कलाकारों ने माँ के प्रेम और शक्ति के विभिन्न स्वरूपों का बखान किया। समारोह में भोपाल की पूर्णिमा चतुर्वेदी का लोकगायन, मुंबई के चरणजीत सिंह के भक्ति गायन की प्रस्तुतियाँ हुईं तो भोपाल की दुर्गा मिश्रा एवं साथी कलाकारों ने नृत्य नाटिका "शिव-सती गाथा" का नृत्य शैली में मंचन किया।
भोपाल की पूर्णिमा चतुर्वेदी ने गणपति भजन, गणपति सभा में आये हरि सभा में रंग बरसाये... गीत पेशकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। कलारसिकों के मध्य देवी गीत अंबे मैया आओ रे पूजू तुम्हारे पाँव... गाकर माहौल को भक्तिमय बना दिया। सभा को विस्तारित करते हुए देवी दर्शन गीत फूल बगियन में देख आई सखियाँ मैया बिजासन आई है..., शिव परिवार झूला गीत झूलत गिरिजा संग उमापति..., गौरी पूजन गीत करूं गौरी की पूजा तन-मन से..., देवी महिमा गीत मैया जी की महिमा न्यारी..., देवी झूला गीत झूला झूल रही भवानी..., देवी सत्कार गीत अंबा भवानी तुम रूणझुण करता आओ..., मैया से विनती ठुमुक-ठुमुक चली आ जाना..., सुहाग गीत बहनों को देना सुहाग..., मेंहदी गीत रंग लाई मैया जी के हाथ मेंहदी... और अंत में हनुमान जी का भजन महावीर बलवान करता कल्याण... गाकर सभा को विराम दिया। उनके साथ आराधना पाराशर, मीनाक्षी पगारे और प्रज्ञा अत्रे ने संगत दी।
समारोह के अगली चरण में भोपाल की दुर्गा मिश्रा एवं साथी नृत्यांगनाओं ने नृत्य नाटिका “शिव-सती गाथा” के माध्यम से माता के शक्ति स्वरूप और शिव के रौद्र रूप की कथा को मंच पर जीवंत किया। कथा का आरंभ दक्ष प्रजापति के ब्रह्मा जी के साथ संवाद से हुआ, जिसमें वे सती के विवाह की चिंता लेकर ब्रह्म देव के समक्ष उपस्थित होते हैं। ब्रह्म देव उन्हें सती के जन्म की वास्तविकता का पुनः स्मरण करवाते हैं, किंतु दक्ष प्रजापति अहंकार में आकर सत्य को स्वीकार न करते हुए सती स्वयंवर की घोषणा कर देते हैं। नाटिका में आगे दिखाया गया कि महादेव का विवाह सती के साथ हो जाने से दक्ष ने शिव एवं सती से संबंध विच्छेद कर लिए और विवाह के कुछ समय के उपरांत ही एक सहस्त्र कुंड यज्ञ कराया। उस यज्ञ में शिव-सती को छोड़कर बाकी सभी को निमंत्रित किया गया। माता सती बिना निमंत्रण के वहाँ पहुँच जाती हैं और दक्ष प्रजापति की बातों से क्रोधित होकर स्वयं को अग्नि में भस्मीभूत कर लेती हैं। नाटिका में आगे दिखाया गया कि शिव इस दुःख से क्रोध में आकर विनाशकारी तांडव नृत्य आरंभ कर देते हैं। श्रीहरि महादेव को इस स्थिति से बाहर निकलने हेतु माता सती की देह को सुदर्शन से भेद देते हैं। इस प्रकार माता सती के विविध अंगों से अलग-अलग शक्ति पीठों की स्थापना होती है। 20 कलाकारों ने इस संपूर्ण कथा को कथक नृत्य के माध्यम से दिखाया।
भक्ति संध्या में अंतिम प्रस्तुति मुंबई के चरणजीत सिंह सौंधी ने स्वरचित भक्ति गीतों की हुई। चरणजीत ने कर दो दया मेरी माँ... गाकर मंदिर प्रांगण की फिजा को भक्ति के नौ रसों से सराबोर कर दिया। इसके बाद मैया आ गई दरबार..., नच-नच के..., चली भवानी चली..., मैया खप्पर वाली..., मेरी मैया के भवन..., मईया के द्वारे जो कोई..., जगाए ऐसी भाग्य दतिए..., मेरी शेरावाली माता है..., मेरी माँ ने किया कमाल..., इस ज्योति का ध्यान लगा लो..., जाग-जाग महाकाली माँ..., तेरी चौखट पे माँ शेरावाली..., अबके बरस है मेरी बारी... जैसी गीत गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
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