जयपुर के ऐतिहासिक टाउन हॉल (पुरानी विधानसभा) को लेकर चल रहे विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने राजमाता पद्मिनी देवी व अन्य याचिकाकर्ताओं की याचिका पर नोटिस जारी किया है, लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट के 17 अप्रैल 2025 के फैसले पर रोक लगाने या यथास्थिति बनाए रखने से इनकार कर दिया है। बता दें, यह विवाद राजस्थान सरकार और जयपुर के पूर्व राजपरिवार के बीच है, जो 2022 में तत्कालीन गहलोत सरकार द्वारा टाउन हॉल को 'विश्व स्तरीय राजस्थान हेरिटेज म्यूजियम' में बदलने के फैसले से शुरू हुआ था।
राज्य सरकार ने कोर्ट में दी यह दलील
जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण कानूनी सवाल है, जिस पर विस्तार से सुनवाई की जाएगी। राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने दलील दी कि याचिका पर तब सुनवाई होनी चाहिए, जब राज्य अपना जवाब दाखिल करे। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान सरकार कोई कार्रवाई नहीं करेगी। इस आधार पर कोर्ट ने अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया।
राजपरिवार ने दी ये दलील
वहीं, राजपरिवार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने दलील दी कि 1949 के समझौते के तहत टाउन हॉल को सिर्फ सरकारी कार्यों के लिए सौंपा गया था। चूंकि अब विधानसभा दूसरी जगह शिफ्ट हो गई है, इसलिए इसे हेरिटेज म्यूजियम या व्यावसायिक रूप से इस्तेमाल करना समझौते का उल्लंघन है। वहीं, राज्य सरकार ने कहा कि यह विवाद 1949 के संविधान-पूर्व समझौते से जुड़ा है, जिस पर संविधान के अनुच्छेद 363 के तहत कोर्ट का क्षेत्राधिकार नहीं है।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय और भारत सरकार के बीच 1949 में हुए समझौते के तहत टाउन हॉल समेत कुछ संपत्तियों को सरकारी इस्तेमाल के लिए दिया गया था। गहलोत सरकार के 2022 में म्यूजियम बनाने के फैसले के बाद राजपरिवार ने इस पर आपत्ति जताई। 2014 से 2022 तक कई नोटिस और शिकायतों के बावजूद कोई समाधान नहीं निकला। राजपरिवार ने संपत्ति पर कब्जा, निलंबन और मुआवजे की मांग करते हुए सिविल कोर्ट में वाद दायर किया। राज्य सरकार ने अनुच्छेद 363 का हवाला देते हुए मुकदमे को खारिज करने की मांग की, जिसे निचली अदालत ने खारिज कर दिया। लेकिन हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कहा कि सिविल अदालतों को ऐसे समझौतों पर अधिकार नहीं है, हालांकि उसने कहा कि समझौते के तहत संपत्ति का इस्तेमाल केवल सरकारी कार्यों के लिए किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट गहराई से जांच करेगा
राजपरिवार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें तर्क दिया गया है कि अनुच्छेद 363 की व्याख्या सीमित होनी चाहिए और यह उनके संवैधानिक अधिकारों (अनुच्छेद 14, 21, 300ए) को खत्म नहीं कर सकता, खासकर 1971 के 26वें संविधान संशोधन के बाद, जब शासकों की मान्यता समाप्त कर दी गई और उन्हें आम नागरिक माना गया। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की गहराई से जांच करेगा ताकि पता लगाया जा सके कि अनुच्छेद 363 पुराने समझौतों पर लागू होता है या नहीं और क्या राजपरिवार के संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन किया गया है।
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