राजस्थान का चित्तौड़गढ़ किला भारत के इतिहास और शौर्य का प्रतीक रहा है। इसी किले के भीतर स्थित है एक ऐसा स्थापत्य चमत्कार, जिसे देख हर कोई अभिभूत हो उठता है — विजय स्तम्भ। यह स्तम्भ सिर्फ पत्थरों की एक संरचना नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और सैन्य विरासत का गर्वपूर्ण प्रतीक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह विजय स्तम्भ किस देव को समर्पित है? इसकी अद्भुत नक्काशी और भव्य वास्तुकला किस प्रकार इसको शिल्पकला का अद्वितीय उदाहरण बनाते हैं? आइए जानते हैं इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक पृष्ठभूमि।
किस देव को समर्पित है विजय स्तम्भ?चित्तौड़गढ़ के इस ऐतिहासिक विजय स्तम्भ को समर्पित किया गया है भगवान विष्णु को। इसे ‘कीर्ति स्तम्भ’ भी कहा जाता है। इसका निर्माण 1442 से 1449 ई. के बीच मेवाड़ के राजा राणा कुम्भा ने करवाया था। राणा कुम्भा ने यह स्तम्भ मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर विजय की स्मृति में बनवाया था। इस स्तम्भ को समर्पित कर उन्होंने न केवल अपने सैन्य गौरव को अमर किया, बल्कि धर्म और संस्कृति के प्रति अपनी श्रद्धा को भी दर्शाया।
विजय स्तम्भ की अद्भुत नक्काशी और मूर्तिकलाविजय स्तम्भ की नक्काशी इतनी बारीक और गहराई लिए हुए है कि यह देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती है। स्तम्भ के हर हिस्से पर हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां, पौराणिक कथाएं, योद्धाओं के चित्र और धार्मिक प्रतीक खुदे हुए हैं। विष्णु के दशावतार, ब्रह्मा, शिव, सरस्वती, गणेश, सूर्य जैसे कई प्रमुख देवी-देवताओं के चित्र इसमें उकेरे गए हैं।विशेष बात यह है कि यहां केवल धार्मिक चित्र ही नहीं, बल्कि तत्कालीन समाज और संस्कृति के चित्रण भी देखने को मिलते हैं — जैसे वाद्ययंत्र बजाते लोग, नृत्य करती महिलाएं, योद्धा और शिल्पकार। यह नक्काशी उस समय की कारीगरी का जीवंत उदाहरण है, जब पत्थरों में जान डाल दी जाती थी।
वास्तुकला और संरचना की विशेषताएंविजय स्तम्भ की ऊंचाई लगभग 37.19 मीटर (122 फीट) है और इसमें 9 मंजिलें (तल) हैं। इसे बलुआ पत्थर से बनाया गया है और इसकी संरचना अष्टकोणीय (आठ कोनों वाली) है, जो इसे स्थायित्व और सौंदर्य दोनों प्रदान करती है।प्रत्येक मंजिल पर एक बालकनी या झरोखा है, जहां से आसपास का दृश्य देखा जा सकता है। शीर्ष पर चढ़ने के लिए भीतर 157 सीढ़ियाँ बनाई गई हैं, जो घुमावदार रूप में ऊपर की ओर जाती हैं। स्तम्भ का शिखर भाग खुला है और यहां से चित्तौड़गढ़ का विहंगम दृश्य दिखाई देता है।
विजय स्तम्भ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वविजय स्तम्भ सिर्फ एक ऐतिहासिक स्मारक नहीं, बल्कि धर्म, शौर्य और संस्कृति का त्रिवेणी संगम है। विष्णु को समर्पित यह स्तम्भ यह दर्शाता है कि किस प्रकार शासक अपने सैन्य विजय को धर्म और समाज से जोड़ते थे। यह स्तम्भ राणा कुम्भा की धार्मिक आस्था और मेवाड़ की संस्कृति की गहराई को दर्शाता है।आज यह स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है और हजारों पर्यटक हर साल इसे देखने आते हैं। यह न केवल इतिहास प्रेमियों के लिए, बल्कि कला, वास्तुकला और अध्यात्म में रुचि रखने वालों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।
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