अंतरराष्ट्रीय सीमा पर आखिरी गांव। यहां से सीमा पार पाकिस्तानी चौकी साफ दिखाई देती है। इस गांव में न तो सड़क है और न ही अस्पताल। रात में कोई बीमार पड़ जाए तो इलाज के लिए 20 किमी दूर खाजूवाला या 120 किमी दूर बीकानेर जाना पड़ता है। यहां तक कि सेना को भी आने-जाने के लिए जर्जर सड़क मिलती है। गांव की नालियों से लेकर गलियों तक कुछ भी पक्का नहीं है। एक नहीं बल्कि कई गांव ऐसे हैं जिनकी हालत बदतर है। इन गांवों की चर्चा इस समय इसलिए हो रही है क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ये ग्रामीण पाकिस्तान से लोहा लेने को तैयार थे लेकिन अपना गांव नहीं छोड़ना चाहते थे।
गांव की चर्चा इसलिए भी हो रही है क्योंकि राज्य सरकार ने तीन साल पहले बंद हुई बीएडीपी योजना का नाम बदलकर अब मुख्यमंत्री थार सीमांत क्षेत्र विकास योजना कर दिया है। 2022 में बंद होने से पहले के 5 सालों में इस गांव पर सीमा क्षेत्र विकास परियोजना (बीएडीपी) और अन्य योजनाओं से 55 लाख रुपए खर्च दिखाए गए हैं। सीमा से सटे इस गांव समेत ऐसे तमाम गांवों का यह हाल तब है, जब केंद्र सरकार राजस्थान की अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे चार जिलों के 1083 गांवों के विकास के लिए बीएडीपी के जरिए 1993 से अब तक 2000 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है।
सरकार का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय सीमा के शून्य से 50 किलोमीटर के क्षेत्र में बसे गांवों का विकास करना था। 27 साल में सरकार ने सीमा से 10 किलोमीटर दूर बसे गांवों में 2000 करोड़ रुपए खर्च कर दिए, फिर भी यहां सुविधाओं का अभाव है। बाद में सामने आया कि इसमें जमकर भ्रष्टाचार हुआ है। इसका हवाला सीएजी की रिपोर्ट में भी दिया गया। ऑपरेशन सिंदूर के बाद जब भास्कर ने इन गांवों में हुए विकास की पड़ताल की तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
17 राज्यों के 111 जिलों में बीएडीपी बंद
शून्य से 10 किलोमीटर के क्षेत्र में बसे गांवों का विकास होने में 33 साल लगेंगे।बीएडीपी की शुरुआत 1987 में हुई थी। राजस्थान में 1993 से लागू है।शून्य से 10 किलोमीटर के दायरे के गांवों को 2024 तक विकसित करना होगा। जिसमें 33 साल लगेंगे। बीएडीपी के तहत अब तक जैसलमेर में 600 करोड़, बाड़मेर में 500 करोड़ और बीकानेर व श्रीगंगानगर में 400-400 करोड़ से अधिक खर्च किए जा चुके हैं। 17 राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल के 111 जिलों को बीएडीपी का पैसा मिलता है। यह योजना राजस्थान के बीकानेर, बाड़मेर, जैसलमेर और श्रीगंगानगर के 1083 गांवों में लागू है। बीकानेर का 168 किलोमीटर, श्रीगंगानगर का 210 किलोमीटर, बाड़मेर का 228 किलोमीटर और जैसलमेर का 464 किलोमीटर सीमा क्षेत्र है।
बाड़मेर : जिले में पिछले 20 साल में बीएडीपी योजना के तहत 500 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। इसके बावजूद सीमावर्ती गांवों में पानी, बिजली और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं नदारद हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि पिछले 11 साल में बीएडीपी योजना के तहत सीमा से दस किलोमीटर अंदर के गांवों पर 350 करोड़ रुपए का बजट खर्च किया जा चुका है, फिर भी 20 गांव और 200 ढाणियों में न तो पीने का पानी है और न ही सड़क-बिजली की सुविधा है। श्रीगंगानगर : परियोजना बजट से खरीदी एंबुलेंस और अन्य वाहन श्रीगंगानगर जिले में पिछले 5 साल में बीएडीपी योजना में 141 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। जिला परिषद के आंकड़ों में सामने आया कि पहले हर साल बीएडीपी में 40 से 50 करोड़ रुपए मिलते थे, लेकिन 2022 से पहले यह राशि घटती चली गई। 2020 में प्रशासन ने बीएडीपी के 41 लाख में तीन वाहन खरीदे थे। इसमें 16 लाख की दो एंबुलेंस स्वास्थ्य विभाग को दी गई, जबकि 25 लाख की गाड़ी वन विभाग को दी गई।
सरकार ने बीएडीपी का बजट बंद होने से पहले भी इतना ही दिया था
बीएडीपी योजना जब बंद होने की कगार पर थी, तब बीकानेर का बजट 12 करोड़ रह गया था। हाल ही में जब मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इसे मुख्यमंत्री थार सीमांत क्षेत्र विकास योजना के नाम से दोबारा शुरू किया, तो बीकानेर का बजट 15 करोड़ रह गया। जब योजना केंद्र सरकार के पास थी, तब 40 से 50 करोड़ रुपए प्रति वर्ष मिलते थे।शुरू में जब बीएडीपी योजना शुरू हुई थी, तब पूरा जिला परिधि में था। शहर में भी कुछ काम हुआ था। बाद में इसकी सीमा सीमा से 10 किलोमीटर की परिधि वाले गांवों तक सीमित कर दी गई। 2019 के बाद बजट कम हुआ तो वह योजना बंद हो गई। अब हम सीमा से 10 किलोमीटर की परिधि में अधूरे कामों को राज्य योजना से पूरा करेंगे। -सोहनलाल, सीईओ जिला परिषद
अधिकारियों ने वाहन खरीदे
यह परियोजना 17 राज्यों में लागू है, ऑडिट महज औपचारिकता है। राजनेताओं और अफसरों ने इस योजना से शहर का विकास किया। 2002 के आसपास बीएडीपी के पैसे से बीकानेर के तत्कालीन कलेक्टर समेत आठ अफसरों के लिए नए वाहन खरीदे गए। रवींद्र रंगमंच के लिए दो करोड़ दिए गए। 2003 में बनी गंगा सिंह यूनिवर्सिटी में 50 लाख खर्च किए गए। पीबीएम अस्पताल में उपकरण और कई अन्य चीजों पर पैसा खर्च किया गया।
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