आज के दौर में बच्चों में बढ़ता मोटापा चिंता का विषय बन गया है। स्क्रीन टाइम, गैजेट्स पर निर्भरता और आउटडोर गेम्स से दूरी के कारण बच्चे कम उम्र में ही मोटापे का शिकार हो रहे हैं। बच्चों को मोटापे से बचाने के लिए स्वस्थ आदतें अपनाना जरूरी है। मोटापा आज बच्चों में एक बड़ी समस्या है और इसका मुख्य कारण शारीरिक गतिविधियों की कमी है। मोटापे को रोकने के लिए शुरुआती कदम उठाना जरूरी है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्वस्थ खानपान, नियमित व्यायाम और जागरूकता से बच्चों का भविष्य सुरक्षित किया जा सकता है। मोटापा भारतीयों के लिए एक गंभीर स्वास्थ्य जोखिम है।
वयस्कों में मोटापा टाइप-2 डायबिटीज, हृदय रोग और फैटी लिवर जैसी बीमारियों को बढ़ावा देता है। रिपोर्ट बताती हैं कि आज की पीढ़ी के बच्चों की आदतों में आए बदलाव के कारण वे अपनी पिछली पीढ़ी के मुकाबले बीमारियों और मोटापे के ज्यादा जोखिम से घिरे हुए हैं। दरअसल, पिछली पीढ़ी की जीवनशैली बच्चों को मोटापे से बचाने में काफी सक्षम थी। पुराने जमाने में बच्चे इंटरनेट की दुनिया से दूर रहते थे और कबड्डी, खो-खो, गैटिस, पकौड़ी-पकौड़ी, लंगड़ी, गिल्ली-डंडा, छाया पर पक्षियों और जानवरों की आकृतियां बनाना आदि कई खेल खेलते थे। इन सबसे बच्चों को भरपूर शारीरिक गतिविधि मिलती थी, जिससे उनका वजन नियंत्रित रहता था और वे स्वस्थ रहते थे। हालांकि, आज के समय में बच्चों की दुनिया मोबाइल, लैपटॉप जैसे गैजेट्स में उलझी हुई है।
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आमतौर पर मोटे बच्चों को स्वस्थ माना जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है और बच्चों में बढ़ता मोटापा एक बड़ी चिंता का विषय है।राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन सुझाव देता है कि कैसे बच्चों में मोटापे की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है और उनका भविष्य बेहतर बनाया जा सकता है। उनके अनुसार, स्क्रीन टाइम को सीमित करें और बच्चों को खेल के मैदान में भेजें, उन्हें प्रोसेस्ड फूड की जगह ताजा घर का बना खाना, फल और खासकर हरी सब्जियां खिलाएं। चीनी और मैदा कम करें, बाहर का खाना बंद करें और परिवार के साथ बैठकर खाने की आदत डालें।
भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका में भी बच्चों में मोटापा एक बड़ी समस्या है। जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (जेएएमए) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, पिछले 20 वर्षों में अमेरिकी बच्चों में मोटापा बढ़ा है, जिससे बीमारी और मृत्यु का जोखिम बढ़ गया है। यह बात 2002 से 170 से अधिक स्वास्थ्य कारकों पर आठ राष्ट्रीय डेटा सेटों के विश्लेषण से सामने आई है।
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