गुजरात के आसमान में एक हादसा हुआ और इसकी त्रासदी ज़मीन पर देखी गई. एयर इंडिया प्लेन क्रैश के बाद प्रभावित डॉक्टर सदमे से गुज़र रहे हैं. अपनी ज़िंदगी के दोबारा पटरी पर लौटने का इंतज़ार कर रहे डॉक्टरों और स्टूडेंट्स ने हादसे में क़रीब 3 करोड़ रुपये के नुक़सान की बात कही है.
अहमदाबाद के मेघानीनगर में पुलिस महानिरीक्षक क्वार्टर परिसर के अंदर हॉस्टल परिसर में हुए एयर इंडिया विमान हादसे के बाद के हालात अभी भी इसके पीड़ितों को परेशान कर रहे हैं.
इसके ज़्यादातर पीड़ित रेज़ीडेंट डॉक्टर और मेडिकल की पढ़ाई कर रहे पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट्स थे.
इस हादसे की चपेट में परिसर के मेस हॉल और अतुल्यम 3 और 4 हॉस्टल सहित कई इमारतें आई थीं. हादसे में चार डॉक्टर मारे गए, कई अन्य घायल हुए और कई अन्य पर इसका मानसिक असर हुआ है.
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इस दर्दनाक दुर्घटना में जीवित बचे लोग सदमे में हैं. वह क़रीब 2.7 करोड़ रुपये के सामान के नुक़सान की बात कर रहे हैं. उन्होंने हादसे के बाद अपने आवास में चोरी की शिकायत भी दर्ज कराई है.
बीबीसी ने हॉस्टल परिसर में रहने वाले डॉक्टरों से संपर्क किया है. कई डॉक्टरों ने अलग-अलग वजहों से बात करने से इनकार कर दिया है. हालांकि कम से कम दस डॉक्टरों ने नाम न बताने का अनुरोध करते हुए बीबीसी से बात की है.
मुआवज़े और पुनर्वास के लिए संघर्ष करते ये मेडिकल स्टूडेंट्स और रेज़िडेंट डॉक्टर भावनात्मक और लॉजिस्टिकल सपोर्ट की मांग कर रहे हैं. ये अस्थायी तौर पर किसी अन्य जगह पर रह रहे हैं और अपने अस्त-व्यस्त जीवन को फिर से शुरू करने की कोशिश में लगे हैं.
पुलिस और अस्पताल के अधिकारियों का कहना है कि वे नुक़सान की जांच कर रहे हैं और प्रभावित डॉक्टरों और स्टूडेंट्स को पुनर्वास के लिए सभी तरह की मदद उपलब्ध करा रहे हैं.
अहमदाबाद के मेघानीनगर क्षेत्र में मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए विमान हादसे ने अपने पीछे विनाश, दर्द और कई सवाल छोड़ दिए हैं.
राज्य सरकार ने अब तक इस हादसे में चार मेडिकल स्टूडेंट्स की मौत की पुष्टि की है. हादसे के वक़्त 12 जून को वे सब लंच के लिए मेस में मौजूद थे.
उनमें से दो स्टूडेंट्स राजस्थान से, एक मध्य प्रदेश से, जबकि एक गुजरात के भावनगर से था. हादसे में बीजे मेडिकल कॉलेज (बीजेएमसी), गुजरात कैंसर एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (जीसीआरआई), यूएन मेहता इंस्टीट्यूट ऑफ़ कार्डियोलॉजी एंड रिसर्च सेंटर (यूएनएमआईसीआरसी) और अहमदाबाद सिविल अस्पताल के अन्य सुपर-स्पेशियलिटी विंग के डॉक्टरों के आवास परिसर को नुक़सान पहुंचा है.

इनमें अतुल्यम 1, 2, 3 और 4 नामक हॉस्टल की इमारतें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गईं, जिसमें डॉक्टरों के लिए सेंट्रल मेस भी था.
अतुल्यम 2 के एक रेज़िडेंट डॉक्टर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "हममें से हर एक को नुक़सान हुआ है और हम चाहते हैं कि इस पर भी विचार किया जाए."
उन्होंने अनुमान लगाया है कि हर किसी ने एक से डेढ़ लाख रुपये का सामान खो दिया है, जिनमें कपड़े, रेफ्रिजरेटर, एसी, लैपटॉप, आईफ़ोन और किताबें शामिल हैं.
बीजे मेडिकल कॉलेज की डीन डॉक्टर मीनाक्षी पारीख ने जो शिकायत दर्ज कराई है उसके मुताबिक़, इन इमारतों में रहने वाले सभी लोगों ने 2.7 करोड़ रुपये की संपत्ति के नुक़सान की सूचना दी है.
इसमें उनकी कार, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट और अन्य सामान का नुक़सान शामिल है. डॉक्टरों ने अधिकारियों को खोई और क्षतिग्रस्त वस्तुओं की लिखित सूची सौंपी है.
हालांकि, कई डॉक्टरों ने यह भी कहा है कि उनकी प्राथमिकता लोगों की ज़िंदगी और सेहत से जुड़ी है, लेकिन इसके साथ ही हॉस्टल में रहने वाले स्टूडेंट्स को हुए नुक़सान को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है और इस पर जल्द से जल्द ध्यान दिया जाना चाहिए.
कुल मिलाकर, अतुल्यम की चार इमारतों के 23 फ्लैटों में आमतौर पर डॉक्टर ही अपने परिवार के साथ रह रहे थे. उन लोगों ने इनमें घरेलू सामान और गाड़ियों की ख़रीदारी में काफ़ी पैसे ख़र्च किए थे.
यहां कई दुकानें भी थीं, जो इस हादसे में नष्ट हो गई हैं. मसलन पुरुषोत्तम नामक एक व्यक्ति ने लॉन्ड्री खोल रखी थी, उन्हें अपनी दुकान के नष्ट होने से भारी नुक़सान हुआ है.
इस हादसे में एक स्टूडेंट की कार नष्ट हो गई है. फ़िलहाल उनके एक घायल दोस्त का इलाज चल रहा है.
उनका कहना है, "सब कुछ जल गया है. अभी तक सरकार या एयर इंडिया के अधिकारियों की ओर से इस बारे में कोई सूचना नहीं मिली है कि नुक़सान की भरपाई कैसे की जाएगी."
उन्होंने आरोप लगाया कि ख़ाली फ्लैटों से चोरी ने अराजकता को और बढ़ा दिया.
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कई डॉक्टरों ने दावा किया कि उनके लौटने पर सोना और नक़दी सहित कई क़ीमती सामान ग़ायब थे. एक रेज़िडेंट डॉक्टर ने सवाल उठाया है, "तिजोरी में रखे आभूषण कैसे क्षतिग्रस्त हो सकते हैं?"
हालांकि मेघानीनगर पुलिस को 2.70 करोड़ रुपये के नुक़सान की शिकायत मिली है, लेकिन वे अभी भी जांच कर रहे हैं कि क्या चोरी की घटना भी हुई थी.
इंस्पेक्टर डीबी बसिया ने कहा, "हमें नहीं लगता कि घरों में चोरी हुई है, लेकिन पुलिस इसकी जांच कर रही है."
सवाल यह भी उठता है कि क्या जांच के लिए दुर्घटनास्थल की घेराबंदी करने की ज़रूरत ने अराजकता को और बढ़ा दिया?
विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (एएआईबी) ने हादसे के तुरंत बाद स्टूडेंट्स को क्षतिग्रस्त इमारतों को ख़ाली करने के आदेश दिए थे. अचानक दिए इस आदेश ने उनकी उलझन और परेशानी ज़्यादा बढ़ा दी.
डॉक्टर पारीख ने बीबीसी को बताया कि विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (एएआईबी) से आदेश मिले थे कि हॉस्टल को तुरंत ख़ाली किया जाए और इसलिए हमने हादसे के अगले दिन यहां रहने वालों को इसे ख़ाली करने का आदेश दिया था.
यूएनएमआईसीआरसी में कार्डियो एनेस्थिसियोलॉजी के सहायक प्रोफे़सर डॉक्टर अनिल पंवार का इससे जुड़ा एक वायरल वीडियो सुर्ख़ियों में रहा था, जिसमें वह अपने घर को अतुल्यम से दूसरी जगह शिफ्ट करने को लेकर अपनी लाचारी ज़ाहिर कर रहे थे.
वीडियो में वह कहते नज़र आए कि उनकी बेटी और नौकरानी का इलाज चल रहा है और उन्हें शिफ्ट होने के लिए कुछ और समय चाहिए.
हालांकि, सोशल मीडिया पर उनका वीडियो वायरल होने के तुरंत बाद उन्होंने एक और वीडियो पोस्ट किया जिसमें उन्होंने कहा कि उन्हें रहने की जगह मुहैया कराई गई थी और शिफ्टिंग के दौरान तनाव की वजह से उन्होंने मीडिया से बात की थी.
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कई स्टूडेंट्स ने कहा कि उन्हें बिना किसी औपचारिक मदद के सीढ़ियों से भारी सामान नीचे उतारना पड़ा. नाम न बताने की शर्त पर एक डॉक्टर ने कहा, "यह अमानवीय था."
बीबीसी ने पाया कि इसमें कुछ लोगों को मदद मिली, जबकि कई लोगों को मदद नहीं मिली.
दूसरे राज्य से ताल्लुक रखने वाले और अहमदाबाद में पढ़ने वाले एक सुपर-स्पेशियलिटी विभाग के एक स्टूडेंट ने कहा, "एक समय में सिर्फ़ दो लोगों को इमारत में जाने की अनुमति थी. मुझे अपना ज़्यादातर सामान वहीं छोड़ना पड़ा."
लेकिन सभी के साथ ऐसा नहीं था. यूएनएमआईसीआरसी के एक अन्य असिस्टेंट प्रोफे़सर उन लोगों में शामिल थे जिन्हें अतुल्यम हॉस्टल से अपना घर ख़ाली करने में अधिकारियों ने मदद की थी.
डॉक्टर ने कहा, "शुरू में हम दुविधा में थे, लेकिन जल्द ही हमें गाड़ी और सामान ले जाने में मदद दी गई."
राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीबीसी ने घटना के बाद डॉक्टरों के लिए व्यवस्था और शिफ़्टिंग से संबंधित मुद्दों पर एक सवाल पूछा.
सवाल का जवाब देते हुए अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के अधीक्षक डॉक्टर राकेश जोशी ने कहा, "कई लोगों को सिविल परिसर में उपलब्ध विभिन्न आवासों में शिफ़्ट किया गया है, और अधिकारियों ने सुनिश्चित किया है कि उन्हें शिफ़्टिंग में परेशानी न हो."
स्थायी आवास का इंतज़ारडॉक्टर पारीख के मुताबिक़ सभी को कम से कम चार से पांच महीने के लिए वैकल्पिक आवास में शिफ़्ट कराया गया है और उसके बाद सभी को स्थायी आवास उपलब्ध कराया जाएगा.
उन्होंने कहा, "33 डॉक्टरों को पीजी डॉक्टरों के हॉस्टल में, पांच को यूएनएमआईसीआरसी के स्टाफ़ हॉस्टल में, 52 को गुजरात कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट के हॉस्टल में, 48 को लायंस फ़ाउंडेशन के कमरों में, 51 को डेंटल स्टाफ़ क्वार्टर में और 12 को मिथिला क्वार्टर में शिफ़्ट किया गया है."
उन्होंने कहा, "मरीज़ों को स्पेशल रूम उपलब्ध कराने के इरादे से बनाए गए कमरों को फ़िलहाल हॉस्टल में बदल दिया गया है और स्टूडेंट्स को यहां शिफ़्ट किया गया है. चार महीने बाद हमारे पास अपना नया पीजी हॉस्टल तैयार हो जाएगा और फिर हम सभी को नई बिल्डिंग में शिफ़्ट कर देंगे. इनमें वे लोग भी होंगे जो कैंपस के बाहर रह रहे हैं."
कुछ लोग उन्हें मिले आवास से ख़ुश हैं. कैंसर अस्पताल के एक डॉक्टर के लिए गुजरात कैंसर सोसायटी के परिसर में वैकल्पिक व्यवस्था की गई है. उन्होंने कहा, "हम यहां की गई व्यवस्था से ख़ुश हैं."
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यह सदमा किसी सामान, आवास या पैसे के नुक़सान से कहीं बड़ा है. कुछ स्टूडेंट्स ने इस हादसे में अपने साथियों को घायल होते हुए या उनकी मौत देखी है.
माइक्रोबायोलॉजी के एक स्टूडेंट ने याद करते हुए कहा, "मैं अपने होम टाउन वापस आ गया हूँ और नहीं जानता कि मैं कब वापस आऊँगा. दुर्घटना के जो मंज़र मैंने देखे हैं वे मुझे परेशान करते रहते हैं."
डॉक्टर पारीख ने भावनात्मक रूप से होने वाले नुक़सान को स्वीकार करते हुए कहा, "हम जल्द ही स्टूडेंट्स की मदद के लिए कॉलेज में पोस्ट-ट्रॉमा स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) मैनेजमेंट सिस्टम की व्यवस्था करेंगे."
उन्होंने पुष्टि की है कि पहले और दूसरे वर्ष के जो स्टूडेंट्स क्लिनिकल ड्यूटी में नहीं हैं उन्हें 23 जून तक अस्थायी शैक्षणिक अवकाश दिया गया है.
अतुल्यम 3 के एक रेज़िडेंट डॉक्टर, डॉक्टर राजेश (बदला हुआ नाम) अपनी जान बचाने के लिए तीसरी मंज़िल से कूद गए थे, उनके पैर में फ्रैक्चर हो गया.
उन्होंने कहा, "यह एक दर्दनाक स्थिति थी और उस समय मेरे दिमाग़ में क्या चल रहा था, यह बताना मुश्किल है."
फिर भी ज़्यादातर विस्थापित डॉक्टरों और स्टूडेंट्स के लिए अपना जीवन फिर से बनाना शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरह से एक मुश्किल काम है, क्योंकि पीटीएसडी जैसी नींद न आने वाली मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं.
इसलिए हादसे में बचे हुए लोग केवल आवास की तलाश नहीं कर रहे हैं. वे सहानुभूति, जवाबदेही और फिर से सबकुछ ठीक होने की उम्मीद कर रहे हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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