13 जून को इसराइल और ईरान के बीच संघर्ष शुरू होने के बाद से ईरान के साथ चीन के अपारदर्शी रिश्तों ने सबका ध्यान खींचा. इसके पीछे एक बड़ी वजह चीन का ईरान के तेल का प्रमुख खरीदार होना है.
अमेरिका का तर्क है कि चीनी ग्राहक "ईरानी शासन को इस तरह से आर्थिक जीवन रेखा" देते हैं.
लेकिन जहां पश्चिमी देशों की मीडिया ये कहती है कि ईरान के कच्चे तेल के निर्यात का 90 फ़ीसदी चीन जाता है, वहीं चीन का मीडिया इस पूरे मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है.
इस रिपोर्ट में ये समझने की कोशिश की गई है कि चीनी अधिकारी और वहां की सरकारी मीडिया ईरान के तेल से जुड़े इस जटिल सवाल को कैसे पेश कर रहे हैं.
चीन दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक देश है.
वह ईरान से कितना तेल आयात करता है इस पर कोई एक विश्वसनीय स्रोत नहीं है और अनुमानित आंकड़े अलग-अलग हैं. लेकिन मीडिया रिपोर्टों में ये 10 से 15 फ़ीसदी के बीच बताया जा रहा है.
हाल ही में समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने बताया था कि चीन अपने कुल तेल आयात का 13.6 फ़ीसदी ईरान से लेता है.
कुछ अन्य मीडिया रिपोर्टों में ये भी कहा गया है कि चीन का 50 फ़ीसदी तेल होर्मुज़ स्ट्रेट से होकर गुज़रता है. हालांकि, इसमें इराक़ और कुवैत जैसे देशों से होने वाला आयात भी शामिल है.
चीनी अधिकारियों का क्या कहना हैईरान से तेल आयात को लेकर चीन के अधिकारी क्या कह रहे हैं?
उनका कहना है कि यह बहुत कम है. आधिकारिक तौर पर चीन ईरान से तेल का कोई आयात नहीं करता है.
ईरान के तेल पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखे हैं. हालांकि, चीन इन प्रतिबंधों को 'ग़ैरक़ानूनी और एकतरफ़ा' बताता है.
चीनी कस्टम डेटा ने जुलाई 2022 के बाद से ईरान से किसी भी तरह के तेल आयात को औपचारिक तौर पर दर्ज नहीं किया है.
ब्लूमबर्ग ने 2024 में एक रिपोर्ट में ये दावा किया था कि ईरानी तेल के एक बड़े हिस्से को इस तरह पेश किया जा रहा है, जैसे वह मलेशिया से आता है.
ये उसी जटिल नेटवर्क का हिस्सा है, जिसमें ईरानी कच्चे तेल को पुराने टैंकरों के बेड़े के ज़रिए उत्तरी चीन में निजी स्वामित्व वाली रिफ़ाइनरियों में गुप्त रूप से पहुंचाया जा रहा था.
इस रिपोर्ट में एक एक्सपर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि इस तरह से गुप्त व्यापार ने चीन को ये मौक़ा दिया कि ईरान के साथ कारोबार के दावों को वह ख़ारिज कर सके.
चीन के विदेश मंत्रालय ने ईरानी तेल के बारे में पूछे गए मीडिया के सीधे सवालों के जवाब नहीं दिए हैं.
24 जून को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रूथ सोशल पर एक अस्पष्ट-सा बयान दिया था. उन्होंने लिखा था कि इसराइल-ईरान युद्धविराम के बाद, चीन ईरान से "तेल खरीदना जारी रख सकता है."
25 जून को जब इस बारे में चीन के विदेश मंत्रालय से सवाल किया गया तो मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने केवल इतना कहा कि चीन "देश के राष्ट्रीय हितों के आधार पर ऊर्जा सुरक्षा से जुड़े कदम उठाएगा."
जब 27 जून को एक बार फिर से स्पष्ट तौर पर यही सवाल पूछा गया कि क्या चीन ने "ईरान से तेल आयात" करना शुरू कर दिया है तो गुओ जियाकुन ने फिर से "राष्ट्रीय हित" वाली लाइन दोहराई.
इसराइल के साथ संघर्ष के बीच ईरान ने होर्मुज़ जलडमरूमध्य (स्ट्रेट) को बंद करने की धमकी दी थी. कुछ दिन पहले फ़ारस की खाड़ी और उससे आगे महासागर के बीच तेल आयात के प्रमुख मार्ग, होर्मुज़ जलडमरूमध्य के महत्व के बारे में पूछे जाने पर गुओ जियाकुन ने अपना जवाब चीनी संदर्भ की बजाय अंतरराष्ट्रीय संदर्भ को ध्यान में रखते हुए दिया.
उन्होंने कहा, "वस्तुओं और कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए फ़ारस की खाड़ी और उसके आसपास के क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं. इस क्षेत्र में सुरक्षा सुनिश्चित करना और स्थिरता बनाए रखना अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साझा हित में है."
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बीबीसी मॉनिटरिंग ने 13 जून के बाद से चीन के प्रमुख सरकारी मीडिया में छप रही ख़बरों पर नज़र रखी.
इस दौरान चीनी मीडिया में ईरान के होर्मुज़ स्ट्रेट को बंद करने की धमकी और तेल की कीमतों के बारे में काफी चर्चा हुई.
लेकिन रिपोर्टिंग में इसका चीन पर पड़ सकता है या नहीं इस पर चर्चा नहीं की गई, बल्कि इसकी बजाय इसके वैश्विक आर्थिक असर और ईरान पर इसके प्रभाव को बताया गया.
चीन के प्रमुख सरकारी मीडिया आउटलेट्स में बताया गया कि दुनिया का 20 फ़ीसदी तेल हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है, लेकिन किसी भी रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि इसमें से कितना तेल चीन को जाता है.
हालांकि, सरकार समर्थित मीडिया आउटलेट 'द पेपर' की एक रिपोर्ट में इसकी एक दुर्लभ झलक देखने को मिली. इस रिपोर्ट में पश्चिमी विशेषज्ञ के हवाले से कहा गया कि चीन ईरान से "बड़ी मात्रा में" तेल आयात करता है.
जहां चीन व्यापार की बात करता है, वहां वह ईरान की बजाय 'खाड़ी देशों' या 'खाड़ी' से आयात का उल्लेख करता है. और जहां इसके असर की चर्चा होती है, वहां चीन का ज़िक्र अक्सर जापान, दक्षिण कोरिया और भारत जैसी 'अन्य क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं' के साथ किया जाता है.
चीन के सरकारी न्यूज़ पेपर ग्लोबल टाइम्स ने इसके चीन पर असर को घुमा-फिरा कर पेश किया और अख़बार ने लिखा कि "पश्चिमी टिप्पणीकार... होर्मुज़ जलडमरूमध्य की संभावित नाकाबंदी के तथाकथित जोखिम को चीन की ऊर्जा सुरक्षा से जोड़कर, बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं."
अख़बार का तर्क था कि चीन ने पहले ही अपने आयात को डाइवर्सिफ़ाई कर लिया है और अपने भंडारों को मज़बूत कर लिया है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित होने वाले चीन के सरकारी प्रसारक सीजीटीएन ने तेल के भविष्य और होर्मुज़ स्ट्रेट के महत्व पर कई रिपोर्टें छापीं लेकिन किसी में भी स्पष्ट रूप से चीन का ज़िक्र नहीं किया.
शायद इस मामले में सबसे सीधी प्रतिक्रिया सरकार से जुड़े न्यूज़ और ब्लॉग प्लेटफ़ॉर्म गुआंचा पर देखने को मिली. प्रमुख टिप्पणीकार और शिक्षाविद जिन कैनरोंग ने ईरान में संभावित सत्ता परिवर्तन के संदर्भ में कहा कि सत्ता में चाहे जो भी आए, ईरान को अभी भी "खाने के लिए पैसा कमाना होगा और हमें तेल बेचना होगा."
जिन कैनरोंग ने कहा, "सच कहूँ तो, ईरान का असली तेल खरीदार अब वास्तव में चीन ही है."
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पश्चिमी मीडिया का ध्यान अधिकतर इस ओर था कि जहाज़ों के 'शैडो बेड़े' (छिपा कर सामान लाने वाले जहाज़ों) में सामान लादकर इसे निजी स्वामित्व वाली छोटी-छोटी रिफ़ाइनरियों तक पहुंचाया जाता है, जिन्हें 'टीपॉट' कहा गया.
लेकिन 13 जून से लेकर 25 जून के बीच प्रमुख चीनी सरकारी मीडिया आउटलेट्स में 'शैडो बेड़े' या छोटी रिफ़ाइनरी को लेकर छपी रिपोर्टों की तलाश का कोई नतीजा नहीं मिला.
हालांकि 17 जून को सरकारी प्रसारक चाइना सेंट्रल टेलीविज़न (सीसीटीवी) पर आर्थिक मुद्दों पर एक पैनल चर्चा शो में ये शब्द सुनने को मिला.
सीसीटीवी के वित्त और आर्थिक मामलों के टिप्पणीकार लियु गे ने कहा कि ईरान से होने वाला अधिकांश निर्यात उसके 'शैडो बेड़े' के ज़रिए होता है, हालांकि उन्होंने चीन का नाम नहीं लिया.
उन्होंने कहा कि अगर होर्मुज़ जलडमरूमध्य को बंद कर दिया जाता है तो इससे जापान, दक्षिण कोरिया, चीन और भारत जैसे एशियाई देश प्रभावित होंगे. हालांकि उन्होंने स्पष्ट रूप से ये नहीं कहा कि इससे ईरान से आने वाले तेल में कमी आएगी क्योंकि अन्य खाड़ी देश भी समुद्री रास्ते के ज़रिए निर्यात करते हैं.
एक और स्पष्ट ज़िक्र गुआंचा ब्लॉग में देखने को मिला. इसमें अमेरिका स्थित ताइवान के एक राजनीति वैज्ञानिक की टिप्पणियों को रीपोस्ट किया गया था जिसमें पश्चिम की इस "रणनीतिक धारणा" पर हमला किया गया था कि चीन काफी हद तक ईरानी तेल पर निर्भर है.
400 अरब डॉलर के निवेश का क्या?अंतरराष्ट्रीय मीडिया की कई ख़बरों में अक्सर साल 2021 के उस समझौते का हवाला दिया जाता रहा है, जिसके तहत चीन कथित तौर पर रियायती तेल के बदले 25 सालों तक ईरान में 400 अरब डॉलर का निवेश करेगा.
लेकिन चीन ने इस समझौते से जुड़ी जानकारियों को लेकर चुप्पी साध रखी है.
साल 2021 में जब ये सवाल किया गया कि निवेश किस पैमाने पर किया जा रहा है तो चीन के विदेश मंत्रालय और ईरान में चीन के राजदूत, दोनों ने इसे कोई ख़ास कॉन्ट्रैक्ट बताने से इनकार किया.
इसकी बजाय, उन्होंने इसे 'मैक्रो फ़्रेमवर्क' कहा. ईरान में चीन के राजदूत ने इसे 'ऊर्जा, बुनियादी ढांचे, उद्योग और प्रौद्योगिकी पर केंद्रित' बताया. इस डील के दस्तावेज़ को कभी भी ऑनलाइन उपलब्ध नहीं कराया गया.
पिछले दो हफ़्तों में, शायद ये उम्मीद की जा रही थी कि जब ईरान दुनियाभर की मीडिया की सुर्ख़ियों में था, तब चीनी मीडिया इस ऐतिहासिक समझौते का ज़िक्र करेगा. मगर इस सौदे का ज़िक्र चीन के शीर्ष स्तरीय सरकारी मीडिया से ग़ायब रहा.
गुआंचा पर इक्का-दुक्का सरकार समर्थित ब्लॉग पोस्ट में ही इसका ज़िक्र दिखा. इनमें सबसे प्रमुख जिन कैनरोंग का ब्लॉग था. उन्होंने कहा कि समझौते को हाल ही में ऑनलाइन प्रचारित किया गया था.
हालांकि जिन कैनरोंग ने इस सौदे को सिर्फ़ एक मेमोरेंडम बताकर इसकी अहमियत को कम बताया और कहा कि चीन ने अभी तक ईरान में कोई 'वास्तविक निवेश' नहीं किया है.
गुआंचा के कुछ अन्य ब्लॉग पोस्ट में 400 अरब डॉलर को ईरान के आर्थिक सुधार के लिए महत्वपूर्ण बताया गया, जबकि एक अन्य पोस्ट में कहा गया कि इस डील को शीर्ष अधिकारियों ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है.
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