अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीते रविवार को एक बार फिर अफ़ग़ानिस्तान के बगराम एयरबेस का ज़िक्र किया और कहा कि अमेरिका इसे दोबारा हासिल करना चाहता है.
और ऐसा न होने पर उन्होंने तालिबान सरकार को परिणाम भुगतने की चेतावनी दी.
ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में लिखा, "अगर अफ़ग़ानिस्तान बगराम एयरबेस को इसे बनाने वालों, यानी अमेरिका को वापस नहीं करता, तो बहुत बुरा होगा!!!"
हालांकि ट्रंप ने जब कुछ दिन पहले ब्रिटेन यात्रा के दौरान ऐसा ही बयान दिया था तो तालिबान सरकार की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया आई थी.
तालिबान के विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ज़ाकिर जलाली ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करके कहा था, "अफ़ग़ानों ने इतिहास में कभी भी विदेशी सैन्य मौजूदगी स्वीकार नहीं की है और दोहा वार्ता और समझौते के दौरान इस संभावना को पूरी तरह से खारिज कर दिया गया था, लेकिन आगे की बातचीत के लिए दरवाज़े खुले हैं."
2021 में अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी के बाद से ही अमेरिका और अफ़ग़ानिस्तान के बीच कोई राजनयिक संबंध नहीं हैं.
ट्रंप ने हाल ही में अपनी ब्रिटेन की यात्रा के दौरान बगराम से जुड़ा बयान दिया था. जिसके बाद से ही इसे लेकर फिर विवाद छिड़ गया है.
उन्होंने कहा था, "बगराम दुनिया के सबसे बड़े एयरबेस में से एक है और हमने इसे वापस दे दिया. अब हम इस अड्डे को फिर से पाना चाहते हैं, क्योंकि यह उस जगह से महज़ एक घंटे की दूरी पर है जहां चीन अपने परमाणु हथियार बनाता है."
इस सैन्य अड्डे का ज़िक्र करते हुए वह लगभग हर बार चीन का मुद्दा भी उठाते रहे हैं. इसी साल मार्च और मई में भी उन्होंने इसका ज़िक्र किया था. यहां तक कि उन्होंने बगराम एयरबेस पर चीन के कब्ज़े की भी बात कही.
यह एयरबेस कई वजहों से सुर्खियों में रहा है. तालिबान के ख़िलाफ़ लड़ाई में अमेरिका की अगुवाई वाली फ़ौजों का यह दो दशक तक केंद्र रहा.
जब अमेरिकी सेना ने एयरबेस छोड़ा तो वहां बड़े पैमाने पर सैन्य उपकरण, सैनिक वाहन, गोला बारूद रह गए थे.
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बगराम एयरबेस काबुल के उत्तर में 60 किलोमीटर दूर परवान प्रांत में स्थित है.
इसे सबसे पहले 1950 के दशक में सोवियत संघ ने बनाया था और 1980 के दशक में अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़े के दौरान यह उनका मुख्य सैन्य अड्डा बन गया.
साल 2001 में जब अमेरिका ने तालिबान को सत्ता से हटाया तो उसने इस अड्डे पर नियंत्रण कर लिया.
उस समय बगराम खंडहर में तब्दील हो चुका था, लेकिन अमेरिकी सेना ने इसे फिर से बनाया जो कि करीब 30 वर्ग मील (77 वर्ग किलोमीटर) तक फैला है.
बगराम अमेरिका का सबसे बड़ा और दुनिया के सबसे मज़बूत एयरबेस में से एक था जो कंक्रीट और स्टील से बना हुआ है.
यह कई किलोमीटर लंबी मज़बूत दीवारों से घिरा हुआ था. इसके आसपास का क्षेत्र सुरक्षित था और कोई भी बाहरी शख़्स इसके अंदर प्रवेश नहीं कर सकता था.
यहां इतने बैरक और क्वार्टर्स हैं कि एक समय में यहां दस हज़ार से अधिक सैनिक रह सकते हैं.
बगराम के दो रनवे में से एक ढाई किलोमीटर से अधिक लंबा है. डोनाल्ड ट्रंप के मुताबिक़, "इस अड्डे में सबसे मज़बूत और सबसे बड़ा कंक्रीट रनवे है. इस रनवे की मोटाई लगभग दो मीटर है."
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जुलाई 2025 में प्रकाशित बीबीसी अफ़ग़ान सर्विस की एक कहानी के अनुसार, इस बड़े सैनिक अड्डे में चीन की मौजूदगी का पता लगाने के लिए सैटेलाइट तस्वीरों का अध्ययन किया गया.
पहले और बाद की सैटेलाइट तस्वीरों की तुलना करने पर पता चलता है कि वहां सैन्य गतिविधियां न के बराबर हैं और लड़ाकू विमानों की मौजूदगी भी नहीं है.
अध्ययन में ये भी पता चला कि बगराम सैनिक अड्डे में कोई बड़ा रणनीतिक बदलाव नहीं हुआ है.
सेंटर फ़ॉर स्ट्रैटेजिक ऐंड इंटरनेशनल स्टडीज़ की जेनिफ़र जोन्स ने बीबीसी टीम को बताया था कि अप्रैल 2025 की तस्वीरें दोनों रनवे को अच्छी हालत में दिखाती हैं, लेकिन सन 2025 की सैटेलाइट तस्वीरों में कोई जहाज़ नहीं देखा गया.
बगराम एयरबेस से चीन की सबसे नज़दीकी परमाणु प्रयोगशाला 2 हज़ार किलोमीटर की दूरी पर उत्तर पश्चिम चीन में 'लोप नूर' नाम के क्षेत्र में है.
सड़क या अन्य मार्ग से यह दूरी कई घंटों की हो सकती है.
लेकिन लॉकहीड एसआर- 71 ब्लैकबर्ड जैसे आधुनिक सैन्य विमान इस फ़ासले को लगभग एक घंटे में पूरा कर सकते हैं.
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इस सैन्य अड्डे के महत्व का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पिछले दो दशकों में तीन अमेरिकी राष्ट्रपति इस अड्डे का दौरा कर चुके हैं. इनमें जॉर्ज डब्ल्यू बुश, बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप शामिल हैं.
जो बाइडन ने साल 2011 में बगराम एयरपोर्ट का दौरा किया था, लेकिन उस समय वह अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे.
एयर कैल्कुलेटर वेबसाइट के अनुसार, इस एयरबेस से तेहरान की हवाई दूरी भी लगभग 1644 किलोमीटर है, जिसके साथ परमाणु कार्यक्रम को लेकर अभी अमेरिका और पश्चिमी देशों की तनातनी चरम पर है.
कुछ जानकारों का कहना है कि यह एयरबेस मध्य एशिया में अमेरिकी हवाई दबदबे के लिए भी अहम है.
पिछले तीन सालों से बगराम एयरबेस पर तालिबान की सेनाएं अमेरिकी सैनिकों के छोड़े गए सैन्य साज़ो-सामान का इस्तेमाल करते हुए सैनिक परेड और दूसरे समारोह आयोजित कर रही हैं.
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बगराम एयरबेस को लेकर ट्रंप के बयान पर बीते शनिवार को चीन की भी प्रतिक्रिया आई.
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि चीन अफ़ग़ानिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करता है और उसका भविष्य अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के हाथों में होना चाहिए.
उन्होंने कहा, "हमारा मानना है कि क्षेत्रीय तनाव को बढ़ावा देने से समर्थन नहीं मिलता. हमें उम्मीद है कि क्षेत्रीय पक्ष स्थिरता बनाए रखने के लिए रचनात्मक भूमिका निभाएंगे."
इस समय अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार को दुनिया के किसी अन्य देश ने मान्यता नहीं दी है, सिवाय रूस के.
लेकिन यह कहा जा सकता है कि चीन और तालिबान के बीच अच्छे संबंध ज़रूर हैं.
अफ़ग़ानिस्तान में अधिकतर देशों का कोई कूटनीतिक मिशन नहीं है लेकिन चीन ने अपना राजदूत यहां भेज रखा है.
दोनों पक्षों ने अफ़ग़ानिस्तान में एक तांबे की खदान के विकास के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जो दुनिया की सबसे बड़े तांबे की खदानों में से एक है.
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अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार और दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान विभाग में प्रोफ़ेसर रेशमा काज़ी ने बीबीसी के एक कार्यक्रम में बीबीसी संवाददाता मानसी दाश से कहा कि यह रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है.
उन्होंने , "यह सिर्फ़ रणनीतिक हब ही नहीं है. यहां से घंटे भर की दूरी पर चीन के शिनजियांग प्रांत में उसके परमाणु ठिकाने हैं. उसके सर्विलांस के लिए भी यह बहुत महत्वपूर्ण है. इसी बेस से ईरान, पाकिस्तान और रूस के अलावा दूसरे मध्य एशियाई देशों पर नज़र रखी जा सकती है."
उनके अनुसार, मौजूदा समय में बगराम एयरबेस वैश्विक भूराजनीति का एक अहम केंद्र बन चुका है.
उन्होंने कहा, "चीन के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम बहुत अत्याधुनिक है और वह इस दिशा में लगातार विकास कर रहा है. ये भी कहा जा रहा है कि 2030 तक चीन के पास 1000 न्यूक्लियर वॉरहेड हो जाएंगे. और उन्हें ले जाने के लिए उसके पास अत्याधुनिक मिसाइल सिस्टम भी हैं."
रेशमा काज़ी के अनुसार, 'इतने पास प्रतिद्वंद्वी देश का एयरबेस होना चीन के लिए वैसे भी चिंता का विषय है. परमाणु हथियारों की आवाजाही, रख रखाव, उनका इस्तेमाल या किसी दूसरे देश को सुपुर्द करने की कार्रवाई सर्विलांस में आ सकती है.'
वो कहती हैं कि अगर बगराम एयरबेस अमेरिका ले लेता है तो चीन के परमाणु ठिकानों के लिए ही नहीं बल्कि उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के लिए भी ख़तरा पैदा हो जाएगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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