मंगलवार को क्रूड ऑयल की कीमतों में गिरावट दर्ज हुई। इसके पीछे का कारण पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ओपेक (OPEC+) द्वारा उत्पादन बढ़ाने की योजनाएं हैं। इसी के कारण अमेरिका चीन के बीच होने वाली के ट्रेड डील की संभावना भी बेसर दिखाई दे रही है। ब्रेंट क्रूड वायदा में 4 सेंट की गिरावट हुई। जिसके बाद कीमत 65.58 डॉलर प्रति बैरल हो गई। संभावना जताई जा रही है कि कच्चे तेल की कीमतों में लगातार तीसरी मासिक गिरावट दर्ज होगी।
दबाव में कच्चे तेल की कीमत क्रूड ऑयल की कीमतों पर सरचार्ज चार्ज की चिंताओं का दबाव है। इसके अलावा ओपेक की प्रोडक्शन स्कीम और अन्य कंपीटीटर्स ड्रिलिंग कंपनियों के द्वारा बढ़ाई जा रहे उत्पादन के कारण भी कीमतों पर असर हो रहा है। इतना ही नहीं अमेरिका और चीन के बीच होने वाली ट्रेड डील पर भी व्यापारियों की नजर है। गुरुवार को शिखर सम्मेलन में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति श्री जिनपिंग मुलाकात करने वाले हैं।
रूस पर अमेरिकी प्रतिबन्ध.रूस की बड़ी तेल रिफाइनरियों पर अमेरिकी सरकार के द्वारा लगाए गए प्रतिबंध भी चर्चा में है। अमेरिकी प्रशासन कि योजना है कि वह रूस के साथ ट्रेड को न केवल महंगा बल्कि जोखिम भरा भी बनाएगा। ताकि रूस के साथ ट्रेड करने वाले देशों की संख्या में कमी आए।
चीन भी है रूस का आयातक रूस से तेल खरीदने को लेकर अमेरिका के द्वारा पहले ही भारत पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ लगाया गया है। शी जिनपिंग के साथ होने वाली बैठक से पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा यह कहा जा चुका है कि वह इस बैठक के दौरान रूस से कच्चे तेल के आयात का मुद्दा उठाएंगे। क्योंकि चीन रूस से भारी मात्रा में तेल का आयात करता है। हालांकि अमेरिकी सरकार के द्वारा लगाए जा रहे प्रतिबंधों के बाद रूस ने मॉस्को से तेल की खरीदारी रद्द कर दी है। वहीं भारतीय रिफायनरी भी आयात कम करने की योजना बना रहे हैं।
बता दे की ओपेक के द्वारा क्रूड मार्केट को सहारा देने के लिए उत्पादन में कई वर्षों तक कटौती की गई, इसके बाद अप्रैल महीने से ही संगठन ने उन कटौतियों को वापस लेना शुरू कर दिया है। अब ओपेक द्वारा उत्पादन बढ़ाने की योजना बनाई जा रही है। अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद भी रूस में तेल उत्पादक दूसरी सबसे बड़ी कंपनी लुकोइल ने अपनी अंतरराष्ट्रीय संपत्तियाँ बेचने का ऐलान किया है। दरअसल, अमेरिका ने रोसनेफ्ट पीजेएससी और लुकोइल पीजेएससी पर प्रतिबंध लगाए हैं। ये दोनों कंपनियां रूस के सबसे बड़े तेल उत्पादकों में शामिल हैं। अमेरिकी प्रशासन के इस कदम से बाजार में भी हैरानी है।
दबाव में कच्चे तेल की कीमत क्रूड ऑयल की कीमतों पर सरचार्ज चार्ज की चिंताओं का दबाव है। इसके अलावा ओपेक की प्रोडक्शन स्कीम और अन्य कंपीटीटर्स ड्रिलिंग कंपनियों के द्वारा बढ़ाई जा रहे उत्पादन के कारण भी कीमतों पर असर हो रहा है। इतना ही नहीं अमेरिका और चीन के बीच होने वाली ट्रेड डील पर भी व्यापारियों की नजर है। गुरुवार को शिखर सम्मेलन में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति श्री जिनपिंग मुलाकात करने वाले हैं।
रूस पर अमेरिकी प्रतिबन्ध.रूस की बड़ी तेल रिफाइनरियों पर अमेरिकी सरकार के द्वारा लगाए गए प्रतिबंध भी चर्चा में है। अमेरिकी प्रशासन कि योजना है कि वह रूस के साथ ट्रेड को न केवल महंगा बल्कि जोखिम भरा भी बनाएगा। ताकि रूस के साथ ट्रेड करने वाले देशों की संख्या में कमी आए।
चीन भी है रूस का आयातक रूस से तेल खरीदने को लेकर अमेरिका के द्वारा पहले ही भारत पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ लगाया गया है। शी जिनपिंग के साथ होने वाली बैठक से पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा यह कहा जा चुका है कि वह इस बैठक के दौरान रूस से कच्चे तेल के आयात का मुद्दा उठाएंगे। क्योंकि चीन रूस से भारी मात्रा में तेल का आयात करता है। हालांकि अमेरिकी सरकार के द्वारा लगाए जा रहे प्रतिबंधों के बाद रूस ने मॉस्को से तेल की खरीदारी रद्द कर दी है। वहीं भारतीय रिफायनरी भी आयात कम करने की योजना बना रहे हैं।
बता दे की ओपेक के द्वारा क्रूड मार्केट को सहारा देने के लिए उत्पादन में कई वर्षों तक कटौती की गई, इसके बाद अप्रैल महीने से ही संगठन ने उन कटौतियों को वापस लेना शुरू कर दिया है। अब ओपेक द्वारा उत्पादन बढ़ाने की योजना बनाई जा रही है। अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद भी रूस में तेल उत्पादक दूसरी सबसे बड़ी कंपनी लुकोइल ने अपनी अंतरराष्ट्रीय संपत्तियाँ बेचने का ऐलान किया है। दरअसल, अमेरिका ने रोसनेफ्ट पीजेएससी और लुकोइल पीजेएससी पर प्रतिबंध लगाए हैं। ये दोनों कंपनियां रूस के सबसे बड़े तेल उत्पादकों में शामिल हैं। अमेरिकी प्रशासन के इस कदम से बाजार में भी हैरानी है।
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