बप्पा रावल का इतिहास जानना बेहद दिलचस्प है, क्योंकि उनकी तलवारों से मुस्लिम शासक भी डरते थे और उनके पास 35 मुस्लिम रानियां थीं। उनकी वीरता की गाथाएं आज भी प्रेरणा देती हैं।
बप्पा रावल की तलवार से कांपते थे दुश्मन, 35 मुस्लिम रानियां थीं
इतिहास डेस्क: जब भारतीय इतिहास की चर्चा होती है, तो अक्सर मुग़लों और विदेशी आक्रमणकारियों का जिक्र होता है। लेकिन कुछ ऐसे नाम भी हैं जिनकी तलवारों के डर से विदेशी सेनाएं कांपती थीं। उनमें से एक प्रमुख नाम है – बप्पा रावल, एक हिंदू सम्राट जिनके राज्य में दुश्मनों का नाम सुनते ही शासकों की रूहें कांप जाती थीं।
बप्पा रावल का इतिहास आज भी कई लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है। उनका जन्म 8वीं शताब्दी के आरंभ में हुआ और वे मेवाड़ राज्य के गुहिल राजवंश के संस्थापक थे। यही वंश आगे चलकर महाराणा प्रताप जैसे महान योद्धाओं को जन्म दिया, जिन्होंने अकबर जैसे सम्राट को भी चुनौती दी।
कहा जाता है कि बप्पा रावल ने मोहम्मद बिन कासिम जैसे आक्रमणकारियों को भी पराजित किया और सिंध पर विजय प्राप्त की। उन्होंने 19 वर्षों तक शासन किया और मजेदार बात यह है कि उन्होंने कभी भी युद्ध नहीं हारे। मात्र 39 वर्ष की आयु में उन्होंने सन्यास लिया, लेकिन उनकी वीरता की कहानियां आज भी राजस्थानी लोकगीतों में गाई जाती हैं।
उनके निजी जीवन की बात करें, तो यह जानकर आश्चर्य होता है कि बप्पा रावल की 100 रानियां थीं, जिनमें से 35 मुस्लिम बेगमें थीं। कहा जाता है कि जब वे किसी मुस्लिम शासक को हराते थे, तो राजनीतिक और सैन्य कारणों से उनकी बेगमों या बेटियों से विवाह कर लेते थे। यह उस समय का एक रिवाज़ था, जिससे राज्य का वर्चस्व और गठबंधन मजबूत होता था। यह दर्शाता है कि वे केवल एक योद्धा ही नहीं, बल्कि एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थे।
इतिहास में ऐसे उदाहरण कम ही मिलते हैं जहां कोई हिंदू सम्राट मुस्लिम क्षेत्रों पर विजय प्राप्त कर वहां की रानियों से विवाह कर उन्हें सम्मान देता हो। इससे उनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व क्षमता का पता चलता है।
बप्पा रावल का शासन केवल युद्ध और विजय तक सीमित नहीं था। उन्होंने मेवाड़ को संगठित किया, प्रशासनिक ढांचे को मजबूत किया और एक स्थायी शासन प्रणाली स्थापित की, जो आगे चलकर महाराणा प्रताप जैसे नायकों की नींव बनी।
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