भारतीय रेलवे में सुरक्षा को लेकर काफी ध्यान दिया जा रहा है। रेलवे स्टेशनों पर नियमों का पालन थिएटर हॉल की तुलना में अधिक सख्ती से किया जाता है। इसका कारण यह है कि ट्रेनें गतिशील होती हैं, जबकि थिएटर स्थिर होते हैं। आज हम आपको बताएंगे कि रेलवे सीट बुकिंग कैसे करता है और क्यों कभी-कभी खाली सीट होने पर भी आपको दूसरी जगह भेजा जाता है।
कैसे होती है सीट बुकिंग:
भारतीय रेलवे का टिकट बुकिंग सॉफ्टवेयर इस तरह से विकसित किया गया है कि यह टिकटों का आवंटन इस प्रकार करता है कि ट्रेन में भार समान रूप से वितरित हो सके। उदाहरण के लिए, S1, S2, S3 और S10 कोच में 72 सीटें होती हैं। जब कोई यात्री पहली बार टिकट बुक करता है, तो सॉफ्टवेयर मध्य कोच में एक सीट आवंटित करता है। जैसे कि S5 कोच में, रेलवे पहले निचली बर्थ को भरता है ताकि ट्रेन का गुरुत्वाकर्षण केंद्र संतुलित रहे।
समान यात्री वितरण:
यह सॉफ्टवेयर इस प्रकार से सीटें आवंटित करता है कि सभी कोचों में यात्रियों का समान वितरण हो सके। सीटें मध्य से शुरू होकर गेट के पास की सीटों तक भरी जाती हैं। इस प्रक्रिया का उद्देश्य हर कोच में समान भार वितरण सुनिश्चित करना है। इसलिए, जब आप टिकट बुक करते हैं, तो आपको अक्सर ऊपरी बर्थ या एक सीट आवंटित की जाती है, खासकर जब आप किसी रद्द की गई सीट को नहीं ले रहे होते हैं।
तकनीकी पहलू:
ट्रेन एक गतिशील वस्तु है जो लगभग 100 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलती है। इस दौरान कई बल और यांत्रिकी काम करते हैं। यदि S1, S2 और S3 कोच भरे हुए हैं और S5, S6 खाली हैं, तो ट्रेन के मोड़ लेते समय कुछ डिब्बे अधिकतम बल का सामना करते हैं, जिससे पटरी से उतरने का खतरा बढ़ जाता है।
जब ब्रेक लगाए जाते हैं, तो कोचों के वजन में अंतर के कारण प्रत्येक कोच अलग-अलग ब्रेकिंग फोर्स का सामना करता है। इस प्रकार, ट्रेन की स्थिरता एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाती है। अब आप समझ गए होंगे कि रेलवे कैसे आपकी सीटों की बुकिंग करता है और इसके लिए कितनी बातों का ध्यान रखा जाता है।
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