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सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के मतदाताओं की असुविधाओं और व्यवस्थागत समस्याओं का संज्ञान लिया है : दीपांकर भट्टाचार्य

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New Delhi, 10 जुलाई . Supreme court में Thursday को बिहार विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई. इस दौरान Supreme court ने चुनाव आयोग को पुनरीक्षण के जरूरी दस्तावेजों में आधार कार्ड, वोटर कार्ड और राशन कार्ड को शामिल करने पर विचार करने के निर्देश दिए हैं.

भाकपा (माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य द्वारा जारी एक पत्र में कहा गया है कि Supreme court ने अपने आदेश में बिहार में चुनाव आयोग द्वारा अचानक शुरू किए गए विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान में निहित मूलभूत संवैधानिक और कानूनी विसंगतियों एवं अनियमितताओं के साथ-साथ राज्य के मतदाताओं को हो रही असुविधाओं और व्यवस्थागत समस्याओं का भी संज्ञान लिया है.

सर्वोच्च न्यायालय का आदेश मतदाताओं की उन बुनियादी आशंकाओं और आपत्तियों की पुष्टि करता है, जो अदालत द्वारा सुनवाई की जा रही याचिकाओं में है. आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को ‘न्याय के हित में’ स्वीकार्य दस्तावेजों की लिस्ट में शामिल करने की चुनाव आयोग को दी गई Supreme court की सलाह जमीनी स्तर पर हर मतदाता की आम मांग को दर्शाती है.

Supreme court की सुनवाई में बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान के पहले 15 दिनों के वास्तविक अनुभव के आधार पर मतदाताओं द्वारा व्यक्त की गई दो सबसे बुनियादी चिंताओं पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. अधिकांश मतदाता गणना प्रपत्र जमा करने की कोई पावती या पर्ची न मिलने की शिकायत कर रहे हैं. जहां चुनाव आयोग जमीनी स्तर पर अभियान की सुचारू और तीव्र प्रगति का दावा करने के लिए आंकड़ों का हवाला दे रहा है तो वहीं अधिकांश मतदाता गणना प्रपत्र जमा करने का रिकॉर्ड रखने तक से संतुष्ट नहीं हैं. प्रवासी मजदूरों, जिनमें विदेश में काम करने वाले लोग भी शामिल हैं और अन्य जो किसी आपात स्थिति के कारण राज्य से बाहर हैं, को गणना प्रपत्र जमा करने में अत्यधिक कठिनाई हो रही है और इसलिए वे मताधिकार से वंचित होने एवं परिणामस्वरूप नागरिकता के लिए खतरे के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील बने हुए हैं.

पत्र में आगे जिक्र है कि मतदाताओं को निवास और जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने में कठिनाइयां आ रही हैं, जिनका उपयोग सहायक दस्तावेजों के रूप में किया जा सकता है और ईआरओ को ‘स्थानीय जांच’ के आधार पर बिना दस्तावेज वाले प्रपत्रों के मामलों पर निर्णय लेने के लिए दी जा रही अत्यधिक विवेकाधीन शक्तियां. मौजूदा 11 दस्तावेजों की लिस्ट में से कोई भी दस्तावेज उपलब्ध न करा पाने वाले मतदाताओं की संख्या प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में हजारों में पहुंचने की संभावना है और बिना किसी पारदर्शिता के इतनी बड़ी संख्या में मामलों पर निर्णय लेने का काम निर्वाचन अधिकारी (ईआरओ) पर छोड़ देने से अंतिम सूची में पक्षपातपूर्ण, मनमाने और गलत नामों को हटाने और शामिल करने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है. बिहार के लोग मताधिकार से वंचित होने के खतरे के प्रति जागरूक हो रहे हैं और अपने कठिन परिश्रम से प्राप्त संवैधानिक अधिकार की रक्षा के लिए कड़ा संघर्ष करने के लिए तैयार हो रहे हैं.

–आईएनएस

डीकेपी/एबीएम

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