Mumbai , 2 सितंबर . मराठा समुदाय को लेकर लंबे समय से चल रही आरक्षण और प्रमाणपत्र प्रक्रिया पर महाराष्ट्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. सरकार ने एक नया शासन निर्णय (जीआर) जारी किया है, जिसके तहत मराठा समुदाय के पात्र व्यक्तियों को “कुणबी,” “मराठा-कुणबी,” या “कुणबी-मराठा” के रूप में जाति प्रमाणपत्र जारी करने की स्पष्ट प्रक्रिया निर्धारित की गई है.
यह निर्णय मराठा समाज को न केवल प्रशासनिक राहत देगा, बल्कि प्रमाणपत्र जारी करने में पारदर्शिता और तेजी भी लाएगा.
इस फैसले के पीछे मराठवाड़ा क्षेत्र की ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत को अहम आधार माना गया है. सातवाहन, चालुक्य, और यादव जैसों का गढ़ रहे इस क्षेत्र ने हमेशा से सामाजिक विविधता को अपनाया है.
17 सितंबर 1948 को यह क्षेत्र भारत में विलीन हुआ और 1 मई 1960 से महाराष्ट्र का हिस्सा बना. निजाम शासन के दौरान यहां “कुणबी” जाति को “कापू” कहा जाता था, जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि था. इन्हीं ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर मराठा समाज के कई हिस्सों को कुणबी के रूप में मान्यता दी गई है.
State government ने इस पूरी प्रक्रिया के लिए पूर्व न्यायमूर्ति संदीप शिंदे की अध्यक्षता में एक विशेष समिति का गठन किया था. इस समिति ने हैदराबाद गजेटियर सहित देशभर से 7,000 से अधिक ऐतिहासिक दस्तावेज एकत्र किए, जिनमें दिल्ली, हैदराबाद और अन्य प्रमुख स्थानों से हासिल सामग्री शामिल है.
इन दस्तावेजों के आधार पर सरकार ने प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया में जरूरी संशोधन किए हैं ताकि पात्र मराठा व्यक्तियों को कुणबी प्रमाणपत्र आसानी से मिल सके.
नए शासन निर्णय के अनुसार, अब ग्राम स्तर पर एक तीन सदस्यीय समिति गठित की जाएगी, जिसमें ग्राम महसूल अधिकारी, ग्राम पंचायत अधिकारी और सहायक कृषि अधिकारी शामिल होंगे.
यह समिति स्थानीय स्तर पर संबंधित आवेदक की जांच करेगी. जिन लोगों के पास भूमि रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं, वे 13 अक्टूबर 1967 से पहले के निवास का उल्लेख करते हुए प्रतिज्ञापत्र दे सकते हैं. समिति की जांच के बाद सक्षम प्राधिकारी जाति प्रमाणपत्र जारी करेगा.
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वीकेयू/डीएससी
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