Mumbai , 12 जुलाई . जगद्गुरु शंकराचार्य महाराज अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ‘1008’ ने Saturday को महाराष्ट्र में चल रहे मराठी-हिंदी भाषा विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि सभी को मराठी सीखनी चाहिए, हम भी इसके लिए प्रयासरत हैं.
समाचार एजेंसी से बात करते हुए अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा, “मराठी सीखनी चाहिए और हम इसके लिए प्रयास भी कर रहे हैं. जब हम यहां से जाएंगे तो कोशिश करेंगे कि मराठी में संवाद कर सकें. कुछ भाइयों की मराठी सिखाने की प्रबल इच्छा है, अगर ऐसे लोग सिखाएं तो हम जल्दी सीख जाएंगे. सीखने वाले से ज्यादा सिखाने वाले की इच्छा मजबूत हो तो परिणाम बेहतर होते हैं. हमने पहल की थी, लेकिन दूसरी ओर से वैसी प्रतिक्रिया नहीं मिली. इसलिए हम धीरे-धीरे सीख रहे हैं. हमें आर्थिक मदद की बात भी कुछ लोगों ने कही है, उस पर विचार चल रहा है.”
मराठी भाषा को लेकर ठाकरे बंधु (उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे) के साथ आने पर उन्होंने कहा, “जैसे हमने पहले दोनों ठाकरे भाइयों को आशीर्वाद दिया था, अब जब राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक साथ आए हैं, तो यह सुखद है. भाई फिर से जुड़ें, यह सभी को अच्छा लगता है. भारत की संस्कृति भी यही सिखाती है कि जोड़ी बनी रहे. पर अब उनके सामने चुनौती है; उनके समर्थक अलग सोच वाले हैं, उन्हें साथ लाना कठिन होगा. मराठी भाषा के मुद्दे पर एकजुट होना अच्छा है, लेकिन भविष्य में वे साथ रहेंगे या नहीं, कहना मुश्किल है. कामना है कि वे जनता के हित में साथ आगे बढ़ें.”
उन्होंने कहा, “कुछ दिन पहले किसी ने कहा था कि राजनीति में कार्य पूर्ण होने के बाद रिटायरमेंट लेनी चाहिए. इसका मूल्यांकन संदर्भ के अनुसार ही किया जाना चाहिए, और पूरा संदर्भ हमारे पास नहीं है. हिंदी भाषा को लेकर उन्होंने कहा कि यदि दुनिया में हिंदी को किसी ने बढ़ाया है, तो वह महाराष्ट्र है, विशेषकर Mumbai की फिल्म इंडस्ट्री, बॉलीवुड के माध्यम से. बॉलीवुड ने हिंदी को वैश्विक पहचान दिलाई है. ऐसे में आम दुकानदार को मराठी न बोलने पर सजा मिलती है, लेकिन बॉलीवुड पर कोई सवाल नहीं उठता, यह असंतुलित है.”
मराठी नहीं बोलने पर थप्पड़ मारने पर जगद्गुरु शंकराचार्य महाराज ने कहा, “राजनेताओं को तो सभा-सोसायटी में सक्रिय रहना ही चाहिए, घर बैठकर कैसे चलेगा? जनता से संवाद जरूरी है. हर पार्टी के नेताओं को मैदान में उतरना चाहिए. उन्होंने कहा कि नेता अगर बाजार में जाकर लोगों से मिलते हैं, यह अच्छा है. देश में इतनी समस्याएं हैं, उनसे संवाद ही समाधान का रास्ता दिखा सकता है.”
महाराष्ट्र में गाय को मां का दर्जा दिए जाने को लेकर उन्होंने कहा, “हमें प्रसन्नता है कि महाराष्ट्र सरकार ने गौ माता को माता कहकर पुकारा. यही तो हमारी अपेक्षा थी कि भोजन भले न दें, लेकिन सम्मान तो दें. आज जब अन्य राज्य या केंद्र सरकार गौ माता को माता कहने में संकोच कर रही है, ऐसे समय में महाराष्ट्र सरकार ने हिम्मत दिखाकर उन्हें मां कहा, यह एक सराहनीय और साहसिक कदम है.”
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एससीएच/जीकेटी
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