नई दिल्ली, 1 जुलाई . दक्षिण का कैलाश कहा जाने वाले आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग. यहां शिव और शक्ति एक साथ विराजते हैं. माता पार्वती का नाम ‘मल्लिका’ है और भगवान शिव को ‘अर्जुन’ कहा जाता है. इस प्रकार सम्मिलित रूप यहां महादेव को श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है. वहीं इन्हें मल्लिकार्जुन यानी “फूलों का स्वामी” के नाम से भी जाना जाता है.
आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम पर्वत पर स्थित इस मंदिर की कथा भगवान कार्तिकेय स्वामी से जुड़ी हुई है. इसके साथ ही यह शक्तिपीठों में भी गिना जाता है.
इस ज्योतिर्लिंग के बारे में शास्त्रों में वर्णित है: श्रीशैलश्रृंगे विबुधातिसंगेतुलाद्रितुंगेsपि मुदा वसन्तम . तमर्जुनं मल्लिकापूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम .. अर्थात् जो ऊंचाई के आदर्शभूत पर्वतों से भी बढ़कर ऊंचे श्री शैल के शिखर पर, जहां देवताओं का अत्यन्त समागम रहता है, प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं तथा जो संसार सागर से पार कराने के लिए पुल के समान हैं, उन प्रभु मल्लिकार्जुन को मैं नमस्कार करता हूं.
यह स्थान भगवान शिव और देवी पार्वती के मिलन का प्रतीक है, जहां वे अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने के लिए आए थे. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का उल्लेख शिव पुराण की कोटिरुद्रसंहिता में विस्तार से किया गया है. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पूजा से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है और सभी मनोरथों को प्राप्त करता है. माना जाता है कि यहां के दर्शन से व्यक्ति के जीवन के सभी प्रकार के दुख, रोग और कष्ट समाप्त हो जाते हैं.
इसके साथ ही श्रीशैलम का उल्लेख स्कंद पुराण और महाभारत जैसे पुराने ग्रंथों में मिलता है, जिसमें इसे भगवान शिव और देवी पार्वती के निवास स्थान के रूप में वर्णित किया गया है.
शास्त्रों में वर्णित है कि अमावस्या तिथि के दिन स्वयं भगवान शिव और पूर्णिमा के दिन माता पार्वती यहां आते हैं. इस मंदिर को भगवान मल्लिकार्जुन स्वामी और भ्रामरंबा को समर्पित किया गया है.
यहां मल्लिकार्जुन मंदिर के साथ हीं श्रीशैलम की पहाड़ियों पर भ्रामराम्बा देवी मंदिर भी है. यह देवी पार्वती के एक रूप, देवी भ्रामराम्बा देवी को समर्पित है. लोगों का मानना है कि देवी सती की गर्दन यहां गिरी थी, जिससे यह अष्ट महाशक्ति पीठों में से एक बन गया. इस मंदिर में देवी आठ भुजाओं वाली हैं. यह मंदिर श्रीशैलम मल्लिकार्जुन मंदिर का एक हिस्सा है, जहाँ भगवान शिव और देवी पार्वती की एक साथ पूजा की जाती है.
यहीं पास ही में इस्तकामेश्वरी मंदिर स्थित है. यह मंदिर देवी पार्वती के एक रूप देवी इस्तकामेश्वरी को समर्पित है. लोगों का मानना है कि देवी अपने भक्तों की इच्छाएं पूरी करती हैं.
यहां दो किलोमीटर दूर श्री साक्षी गणपति स्वामी स्थित है, जहां गणेश जी की एक काले पत्थर से बनी मूर्ति है जो प्रत्येक भक्त की श्रीशैलम यात्रा का प्रमाण है. भक्त साक्षी गणपति के दर्शन करते हैं और अपने गोत्र के नाम साझा करते हैं. साक्षी गणपति समय का प्रतिनिधित्व करते हैं; वे सभी के पर्यवेक्षक हैं और प्रत्येक सेकंड का प्रमाण रखते हैं.
यहीं पास में हाटकेश्वरम क्षेत्र है जो श्रीशैलम पहाड़ियों के पश्चिमी किनारे से 5 किमी दूर स्थित है. स्कंद पुराण में इस स्थान का बहुत विस्तार से उल्लेख किया गया है.
वहीं श्रीशैलम मल्लिकार्जुन मंदिर से 1 किमी दूर पथला गंगा स्थित है. यहीं पर भक्तगण कृष्णा नदी में पवित्र स्नान कर सकते हैं. भक्तों को नदी के तेज़ बहाव से बचने के लिए सीढ़ियां और लोहे की जंजीरें हैं.
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जीकेटी/
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