Patna, 31 अक्टूबर . बिहार की शेरघाटी विधानसभा सीट गया जिले में पड़ती है. India में गया का अपना एक अलग इतिहास है.
गया मुख्य रूप से पितरों के मोक्ष और पिंडदान के लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि यहां विष्णु पद मंदिर में भगवान विष्णु के चरण-चिह्न माने जाते हैं. इसके अतिरिक्त, यह बौद्ध धर्म के लिए भी एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है, जहां भगवान बुद्ध को बोधगया में ज्ञान प्राप्त हुआ था. गया धार्मिक महत्व के साथ-साथ अपनी पारंपरिक हस्तशिल्प कला के लिए भी जाना जाता है.
बौद्ध धर्म का वास्तविक उदय बिहार में हुआ और बुद्ध के उपदेशों, उनकी सरलतम जीवन शैली के उदाहरण और हर जीवित प्राणी के प्रति अन्य अन्यतम करुणा के कारण पूरे विश्व में फैल गया. महत्वपूर्ण यह भी है कि बिहार राज्य का नाम भी ‘विहार’ शब्द से व्युत्पन्न है, जिसका तात्पर्य उन बौद्ध विहारों से है जो बिहार में फैले थे. बुद्ध के महापरिनिर्वाण के सैकड़ों वर्ष बाद मगध के मौर्य राजा अशोक (268 ईस्वी पूर्व से 232 ईस्वी पूर्व) ने बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान, सुदृढ़ीकरण व व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए अनेक प्रयास किए. अशोक ने बौद्ध भिक्षुओं के लिए चैत्य और विहार बनवाए.
शेरघाटी विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो 1957 में यह सीट अस्तित्व में आई. 1977 में इसको समाप्त कर दिया गया और 2010 में फिर से इसकी स्थापना की गई. पहले चरण में कांग्रेस ने 1957, 1962, और 1972 में जीत दर्ज की, जबकि 1967 और 1969 में क्रमशः जन क्रांति दल और एक निर्दलीय प्रत्याशी विजयी रहे.
शेरघाटी की कुल आबादी 476561 है. इसमें पुरुषों की हिस्सेदारी 243355 है और महिलाओं की संख्या 233206 है. मतदाताओं की बात करें तो यहां कुल मतदाताओं की संख्या 135313 है. इसमें 476561 पुरुष मतदाता और 145194 महिला मतदाता हैं, जबकि थर्ड जेंडर मतदाताओं की संख्या 10 है. इस तरह से कुल आबादी के हिसाब से यहां कुल मतदाताओं की संख्या 0.59 है.
Political परिदृश्य पर नजर डालें तो यहां 2010 और 2015 में जदयू ने जीत दर्ज की, जबकि 2020 में यह सीट राजद के खाते में चली गई. 2020 में राजद से मंजु अग्रवाल ने जदयू के टिकट से दो बार से चुनाव जीत चुके विनोद प्रसाद यादव को 16 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था.
यहां के प्रमुख मुद्दे बेरोजगारी, पलायन, शिक्षा, बिजली, सड़क और पानी हैं. इस सीट पर मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के प्रत्याशियों के बीच माना जा रहा है, लेकिन जन सुराज के उम्मीदवार को कम आंकना भारी पड़ सकता है.
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एमएस/डीकेपी
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