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विश्व खेल पत्रकार दिवस: रिपोर्टिंग ही नहीं, सामाजिक और सांस्कृतिक समझ पैदा करना मकसद

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नई दिल्ली, 1 जुलाई . यूं तो, साल 1820-30 में खेल पत्रकारिता की शुरुआत हो चुकी थी, लेकिन इस पर साल 1900 के आस-पास अधिक ध्यान दिया जाने लगा. यह वह दौर था, जब ओलंपिक पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचने लगे थे.

साल 1924 में अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रेस एसोसिएशन (एआईपीएस) की शुरुआत हुई, जिसकी 70वीं वर्षगांठ के मौके पर 2 जुलाई 1994 को ‘वर्ल्ड स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट डे’ की शुरुआत हुई.

‘एआईपीएस’ इंटरनेशनल स्पोर्ट्स मीडिया का प्रतिनिधित्व करता है. इसमें अफ्रीका, अमेरिका, एशिया और यूरोप के 160 से ज्यादा सदस्य शामिल हैं.

‘एआईपीएस’ स्पोर्ट्स मीडिया राइट्स की वकालत करता है. यह पत्रकारों को आईडी कार्ड जारी करता है, जिसका इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में किया जाता है. एआईपीएस युवा खेल पत्रकारों के लिए कार्यक्रम आयोजित करता है, जिसमें उन्हें सम्मानित किया जाता है.

‘वर्ल्ड स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट डे’ की शुरुआत के पीछे का मकसद खेल पत्रकारिता से जुड़े लोगों को प्रोत्साहित और सम्मानित करना था, जिनकी जिम्मेदारी विश्व में जारी भिन्न-भिन्न ईवेंट्स को आम जनता तक पहुंचाना है. खेल पत्रकारिता का महत्व सिर्फ रिपोर्टिंग तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है.

यह वही खेल पत्रकार हैं, जो मैदान के बाहर बैठकर खिलाड़ियों, टीमों और टूर्नामेंट्स की पूरी तस्वीर लोगों के सामने लाते हैं. इन खेल पत्रकारों के बिना खेलों की जानकारी और रोमांच दर्शकों तक पहुंचना लगभग नामुमकिन है.

शुरुआत में भले ही खेल से जुड़ी खबरों को अखबारों में एक छोटा-सा कोना दिया जाता था, लेकिन आज के डिजिटल मीडिया में स्पोर्ट्स आधारित कई चैनल्स, अखबार, मैगजीन और वेबसाइट देखने को मिलती हैं. कई समाचार फर्म इस दिन अपने खेल पत्रकारों के लिए विशेष कार्यक्रम का आयोजन भी करते हैं.

खेल पत्रकारिता का पहला उद्देश्य खेलों के प्रति वैश्विक जागरूकता बढ़ाना है. यह उन महत्वाकांक्षी लोगों को प्रेरित करता है, जो खेल पत्रकारिता में अपना भविष्य बनाने की चाहत रखते हैं.

आरएसजी/केआर

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