गाजियाबाद, 29 मई . गाजियाबाद के इंदिरापुरम क्षेत्र में रहने वाले सरकारी नौकरी पेशा युवक समाज सेवा की मिसाल बन गए हैं. वे गरीब वर्ग के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान कर रहे हैं. कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ उनके भोजन का भी पूरा ध्यान रखते हैं. उनका उद्देश्य शिक्षा से वंचित बच्चों को मुख्यधारा में लाना है.
समर्पण और मेहनत से इन्होंने हजारों बच्चों का भविष्य संवारा है और यह क्रम निरंतर जारी है. उनके इस अद्वितीय योगदान के लिए उन्हें राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है. वे अब समाज में सकारात्मक बदलाव की प्रेरणा बन चुके हैं.
इस शख्स का नाम सुशील कुमार मीणा है. सुशील कुमार मीणा रेलवे में अच्छी-खासी नौकरी कर रहे थे. वे गाजियाबाद में तैनात थे, जहां एक रात उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई. एक रात वे सड़क किनारे रहने वाले बच्चों से मिले, जो अपना जीवन जीने के लिए सड़कों पर भीख मांग रहे थे या फिर कचरा बीनने का काम कर रहे थे. ये बच्चे भीख मांगकर, कूड़ा बीनकर अपना गुज़ारा करते थे. ऐसे में यह सब देखकर सुशील बहुत आहत हुए और उन्हें लगा कि इन लोगों को बेहतर भविष्य देने का काम शिक्षा ही कर सकती है. इसलिए उन्होंने सड़कों पर रहने वाले बच्चों को पढ़ाने का फैसला किया.
सुशील मीणा ने इसकी शुरुआत 2013 में की थी और फिर इस संस्था को उन्होंने 2015 में रजिस्टर्ड करवाया.
इस संस्था का नाम ‘निर्भेद फाउंडेशन’ है, जिसके लिए सुशील मीणा 2013 से कार्य कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि इस संस्था को स्थापित करने में वैसे तो कोई परेशानी नहीं हुई, लेकिन उनके अनुसार इसमें सबसे बड़ी परेशानी बच्चों को अपने पास लाना, उन्हें पढ़ाना, और उन बच्चों के माता-पिता को बताना है कि शिक्षा का क्या महत्व है. इसके साथ ही उनके माता-पिता को यह बताना कि आपके बच्चे का शिक्षित होना क्यों जरूरी है और उनका देश में क्या योगदान हो सकता है.
ये बच्चे वाकई में कुछ बन सकते हैं. यह भी उन बच्चों के माता-पिता को समझाना होता है. सुशील मीणा ने कहा कि ये सभी समस्याएं तो होती हैं, लेकिन मैं उन्हें समस्या नहीं कहता, वे हर किसी के जीवन में आई हैं. बस यह है कि बच्चे पढ़ रहे हैं और मैं पढ़ा रहा हूं, मेरे लिए सबसे ज़रूरी यही है.
वह खुद के बारे में बताते हैं कि वे रेलवे में अच्छी-खासी नौकरी कर रहे हैं और इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं. ऐसे में उन्होंने देखा है कि कहीं न कहीं जो लोग विस्थापित होते हैं, रोजगार के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं. अपने पेट के लिए कमाने के चक्कर में निकलते हैं, उनके बच्चों की शिक्षा रह जाती है. जबकि ऐसे बच्चों को पढ़ने का अधिकार है.
सुशील मीणा ने बताया कि 2020 की बात है, 3 जनवरी 2020 को राष्ट्रपति द्वारा हमें बुलाया गया था. वहां पर हमारे इस काम की सराहना की गई और इसके लिए हमें एक पत्र भी दिया गया. इससे पहले भी 2018 में हमें राष्ट्रपति सचिव के द्वारा बुलाया गया था और यही काम जो हम शिक्षा के क्षेत्र में कर रहे हैं, इसी को आगे बढ़ाना था, इस पर बात हुई थी. लेकिन, उसी समय लॉकडाउन हो गया, नहीं तो राष्ट्रपति की बहुत सारी प्लानिंग थी कि पूरे देश में शिक्षा व्यवस्था को किस तरीके से सुधारा जा सकता है. शायद अभी भी उस पर काम चल रहा है.
उन्होंने इसके बारे में भी बताया कि बच्चों के माता-पिता को इस बारे में समझाने में उन्हें कितनी परेशानी हुई. उन्होंने कहा कि हमने बच्चों के माता-पिता को समझाया कि आपका जो खर्चा है, इस बच्चे के प्रति खाने का, कपड़े का, रहने का, दवाई का, वह हम दे देंगे. लेकिन, आप कुछ दिन बच्चे को हमारे पास भेजिए और देखिए बच्चे में क्या अंतर आता है. हमने उनसे वादा किया कि हम आपके बच्चे को अधिकारी बनाएंगे, कल को इन्हें कोई न कोई अच्छी जगह पहुंचाएंगे. इन बच्चों के माता-पिता ने हमारी मेहनत देखी, हमारा काम देखा और फिर बच्चों को हमारे पास भेजा और उन्होंने इसके बाद अपने बच्चों में बदलाव देखा.
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जीकेटी/डीएससी
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