नई दिल्ली, 30 अप्रैल . पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने हाल ही में यह स्वीकार किया कि आतंकवादियों को पनाह देने और अपनी धरती पर आतंकी कारखानों को प्रायोजित करने में इस्लामाबाद की भूमिका है. यह कबूलनामा न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि इससे पाकिस्तान की ‘बेशर्म’ आतंकी साजिशों और आतंकी गतिविधियों का भी खुलासा हुआ, जो सिर्फ कश्मीर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कई सीमाओं से आगे बढ़कर इस्लामिक देशों, मध्य-पूर्व और यूरोप तक भी पहुंच गई है.
दुनिया भर में पाकिस्तान के आतंकी पदचिह्नों को और बल मिला जब पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने खुले तौर पर कबूल किया कि देश का आतंकवादी संगठनों को समर्थन देने का इतिहास रहा है. उन्होंने कहा, “हम पिछले तीन दशकों से पश्चिम और ब्रिटेन सहित अमेरिका के लिए यह गंदा काम कर रहे हैं.”
कश्मीर के पहलगाम में हुआ खूनखराबा पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों द्वारा अंजाम दिया गया आतंक का नवीनतम कायराना कृत्य है, जिसकी साजिश और निर्देशन वहीं बैठे आकाओं ने किया. यहां भी पाकिस्तान से एक महत्वपूर्ण संबंध उभर कर सामने आ रहा है, क्योंकि हाशिम मूसा, जो पहले पाकिस्तानी सेना में सेवा दे चुका है, बैसरन घाटी के मुख्य हमलावरों में से एक पाया गया.
मूसा को पकड़ने के लिए बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चलाया जा रहा है. वह पाकिस्तान के विशेष सेवा समूह में पैरा कमांडो रह चुका है और बाद में भारत में आतंकी हमले करने के लिए लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) में शामिल हो गया था.
कई सालों से पाकिस्तान अपनी धरती का इस्तेमाल सीमा पार आतंकवाद, उग्रवाद और चरमपंथी विचारधारा के लिए लॉन्चपैड के रूप में करता रहा है. आतंकवाद को प्रायोजित करने, उसे पनाह देने और निर्यात करने में इसका ट्रैक रिकॉर्ड दुनिया की सबसे खतरनाक और अस्थिर करने वाली ताकतों में से एक है.
2018 में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी लश्कर-ए-तैयबा द्वारा किए गए 2008 के मुंबई हमलों में पाकिस्तानी सरकार की भूमिका को स्वीकार किया था. पूर्व पाकिस्तानी सेना जनरल परवेज मुशर्रफ ने भी माना था कि उनकी सेना ने कश्मीर में भारत से लड़ने के लिए आतंकवादी समूहों को प्रशिक्षित किया.
पाकिस्तान किस तरह वैश्विक स्तर पर आतंकवाद का निर्यात कर रहा है?
अफगानिस्तान: तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के हमले :
अफगान नागरिकों, सरकारी ठिकानों और अंतरराष्ट्रीय बलों पर कई घातक हमलों के पीछे पाक-आधारित आतंकवादी समूहों को मुख्य साजिशकर्ता पाया गया, जिसमें 2008 में काबुल में भारतीय दूतावास पर बम विस्फोट और 2011 में काबुल में अमेरिकी दूतावास पर हमला शामिल है.
पाकिस्तान की आईएसआई (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) को अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क का समर्थन करने, उन्हें धन, प्रशिक्षण और सुरक्षित पनाहगाह प्रदान करने के रूप में व्यापक रूप से दर्ज किया गया.
काबुल में भारतीय दूतावास पर बमबारी में इसकी भूमिका का भी वरिष्ठ पत्रकार कार्लोटा गैल ने अपनी किताब में उल्लेख किया है, जिसमें उन्होंने लिखा है, “दूतावास पर बमबारी कोई दुष्ट आईएसआई एजेंटों की तरफ से खुद से किया गया ऑपरेशन नहीं था. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के सबसे वरिष्ठ अधिकारियों की तरफ से इसकी मंजूरी दी गई थी और इसकी निगरानी की गई थी.”
ईरान: जैश उल-अदल हमले :
पाकिस्तान स्थित सुन्नी चरमपंथी समूह जैश उल-अदल ने सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत में ईरानी सुरक्षा बलों पर बार-बार हमला किया. जवाब में, ईरान ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में मिसाइल और ड्रोन हमले किए. तेहरान ने दावा किया कि उसने जैश उल-अदल के ठिकानों को निशाना बनाया
ईरान ने बार-बार पाकिस्तान पर सीमा पार हमले करने वाले सुन्नी आतंकवादियों को पनाह देने और उनके खिलाफ कार्रवाई करने में नाकाम रहने का आरोप लगाया है.
मॉस्को कॉन्सर्ट हॉल हमला (2024) :
अप्रैल में मॉस्को आतंकी हमले की जांच में पाकिस्तान लिंक सामने आया. रूसी अधिकारियों ने मास्टरमाइंड की पहचान ताजिक नागरिक के रूप में की और वे उसके पाकिस्तान से संबंधों की जांच कर रहे हैं. रिपोर्ट्स से पता चलता है कि हमलावरों को पाकिस्तानी नेटवर्क से रसद या वैचारिक समर्थन मिल सकता है.
यूनाइटेड किंगडम: 2005 लंदन बम विस्फोट
7 जुलाई को लंदन में हुए बम विस्फोट, जिन्हें चार ब्रिटिश इस्लामी आतंकवादियों ने अंजाम दिया था, पाकिस्तान में प्रशिक्षण और शिक्षा से जुड़े थे. हमलावरों में से तीन – मोहम्मद सिद्दीक खान, शहजाद तनवीर और जर्मेन लिंडसे ने 2003 से 2005 के बीच पाकिस्तान में समय बिताया था, जहां उन्होंने आतंकी प्रशिक्षण केंद्रों में प्रशिक्षण प्राप्त किया था.
ओसामा बिन लादेन के खात्मे ने किया पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर बेनकाब :
2011 में अमेरिका ने एबटाबाद में अलकायदा नेता ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान के चेहरे पर सबसे बड़ा दाग है.
बिन लादेन पाकिस्तान की सैन्य अकादमी के पास एक परिसर में वर्षों तक बिना किसी पहचान के रहा, जिससे पाकिस्तान सरकार के संरक्षण और कथित मिलीभगत की पुष्टि हुई.
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