New Delhi, 26 सितंबर . अतिबला एक झाड़ीदार औषधीय पौधा है, जो India के गर्म और शुष्क क्षेत्रों में सामान्य रूप से खरपतवार के रूप में उगता है. आयुर्वेद में इसे अत्यंत उपयोगी और बहुगुणी औषधि माना गया है. इसके विभिन्न भाग, जैसे- पत्ते, जड़, तना, फूल, बीज और छाल चिकित्सा दृष्टि से उपयोगी हैं. यह पौधा हृदयाकार पत्तों, सुनहरे पीले फूलों और कंघी जैसे फल की बनावट से आसानी से पहचाना जा सकता है.
अतिबला में सूजनरोधी, दर्दनाशक, मूत्रवर्धक, यकृत-सुरक्षात्मक, रोगाणुरोधी, घाव भरने वाले और कामोत्तेजक गुण पाए जाते हैं. इसके पत्तों का रस त्वचा के दाग-धब्बे और रूसी की समस्या दूर करता है, वहीं इसका लेप त्वचा की बीमारियों जैसे एक्जिमा और सोरायसिस में उपयोगी है. बाहरी घावों पर लगाने से यह तेजी से ऊतक-मरम्मत करता है और घावों को भरने में मदद करता है. रक्त शुद्धिकरण और त्वचा के पुनर्जनन में भी यह लाभकारी है. सफेद दाग में इसका प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है. अतिबला की जड़ का चूर्ण, चंदन, तुवरक तैल और बाकुची तेल मिलाकर लेप करने से इस रोग में आराम मिलता है.
जोड़ों और हड्डियों से संबंधित रोगों में भी अतिबला बेहद कारगर है. इसके एंटी इंफ्लामेटरी गुण गठिया, जोड़ों की सूजन और अकड़न को कम करने में सहायक हैं. यह हड्डियों को मजबूत बनाता है और रक्त परिसंचरण को बेहतर कर गतिशीलता बनाए रखता है. साथ ही, यह शरीर से यूरिक एसिड बाहर निकालने में मदद करता है, जिससे ‘गाउट’ जैसी समस्याओं में लाभ होता है.
अतिबला पुरुषों के लिए भी एक प्राकृतिक कामोत्तेजक है. यह शुक्रधातु को बढ़ाकर वीर्य की गुणवत्ता सुधारता है. इरेक्टाइल डिसफंक्शन जैसी समस्याओं में इसका नियमित सेवन लाभकारी माना गया है. यह शारीरिक शक्ति और सहनशक्ति बढ़ाता है, थकान को दूर करता है और एथलीटों तथा बीमारियों से उबर रहे लोगों के लिए एक प्राकृतिक ऊर्जा स्रोत का कार्य करता है. इसके सेडेटिव गुण मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी सहायक हैं, जो तनाव और अनिद्रा में मदद करते हैं.
मानसिक रोगों में भी अतिबला बहुत लाभदायक है. सात पत्तों का रस निकालकर उसमें मिश्री मिलाकर सेवन करने से रक्तपित्त दोष, मस्तिष्क में प्राणवायु की कमी और दूषित रक्त से उत्पन्न उन्माद या मैनिया में राहत मिलती है. यह तंत्रिका तंत्र को शांत कर मानसिक स्थिरता प्रदान करता है.
पाचन और मूत्र संबंधी समस्याओं में भी यह औषधि उपयोगी है. इसके एंटी-इंफ्लामेटरी और डाइयुरेटिक गुण किडनी और मूत्र प्रणाली को स्वस्थ बनाए रखते हैं. यह पेशाब में जलन, संक्रमण और बार-बार पेशाब आने की समस्या को दूर करता है. इसके पत्तों का काढ़ा पाचन तंत्र को मजबूत करता है और गैस, कब्ज तथा एसिडिटी जैसी समस्याओं से राहत दिलाता है.
अतिबला को अलग-अलग रूपों में प्रयोग किया जाता है. इसका चूर्ण (1-2 ग्राम) शहद या गर्म पानी के साथ लिया जाता है. काढ़ा (कषायम) इसके पत्तों, छाल और जड़ को पानी में उबालकर छानकर पिया जाता है. लेप या पेस्ट घावों और त्वचा पर लगाया जाता है. वहीं, इसका स्वरस (15-20 मिलीलीटर) सुबह सेवन करने से रक्त शुद्ध होता है और शरीर को ताकत मिलती है.
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पीआईएम/एएस
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