होटल और ढाबों में गैर-हिंदुओं की जांच का मामला अभी थमा भी नहीं था कि मुजफ्फरनगर में स्वामी यशवीर महाराज ने एक और बयान देकर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। धार्मिक आस्था और कांवड़ यात्रा को लेकर पहले से ही माहौल संवेदनशील है, और अब स्वामी यशवीर महाराज ने कांवड़ लेने जाने वाले शिवभक्तों से एक विशेष अपील कर दी है, जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है।
वीडियो में स्वामी यशवीर महाराज का कहना है कि हरिद्वार में जो कांवड़ बनाई जाती हैं, उनमें से करीब 90% का निर्माण मुस्लिम समुदाय के लोग करते हैं। उन्होंने इस समुदाय को “जिहादी गैंग” कहकर संबोधित किया और दावा किया कि ये लोग कांवड़ और भोजन को अशुद्ध कर देते हैं। उन्होंने बेहद भावुक होकर कहा कि शिवभक्तों को सावधान रहना चाहिए और हरिद्वार से कांवड़ खरीदने के बजाय उसे अपने घर से ही बनाकर लाना चाहिए।
भावुक अपील में उन्होंने कहा कि यदि आप सच में शिव के सच्चे भक्त हैं, तो एक डंडा, दो प्लास्टिक की कैन या लोटे लेकर हरिद्वार जाएं, वहां गंगा जल भरें और उसे अपनी बनाई कांवड़ में सुरक्षित घर लाएं। उन्होंने विश्वास के साथ कहा कि यही सच्ची और पवित्र कांवड़ होगी। इसके विपरीत, बाजार से खरीदी गई कांवड़, खासकर जिनकी उत्पत्ति संदिग्ध है, वे अशुद्ध मानी जाएंगी।
सनातन धर्म की आस्था से जुड़ा सवाल
स्वामी यशवीर महाराज ने आस्था से जुड़ा सवाल भी उठाया। उन्होंने कहा कि जिन धर्मों में मूर्ति पूजा हराम मानी जाती है, वहां के लोग मूर्ति पूजा के लिए सामग्री कैसे बेच सकते हैं? उन्होंने कहा कि यह हमारी सनातन परंपरा और पवित्रता पर सीधा प्रहार है, और हमें इस पर गंभीरता से विचार करना होगा। उन्होंने श्रद्धालुओं से अपील की कि वे केवल उन्हीं लोगों से धार्मिक सामग्री लें जिन पर उन्हें पूरा विश्वास हो।
पहले भी दे चुके हैं विवादित बयान
बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब स्वामी यशवीर महाराज अपने बयानों के कारण विवादों में आए हैं। इससे पहले भी उन्होंने कांवड़ यात्रा मार्ग पर ढाबों और दुकानों पर नेमप्लेट लगाने और पहचान के आधार पर जांच करने की बात कही थी। इसी वजह से उत्तराखंड पुलिस ने हाल ही में उन्हें हरिद्वार में प्रवेश करने से रोक दिया था, जब वे होटल-ढाबों की “जांच” के इरादे से वहां पहुंचे थे।
इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर से धार्मिक आस्था और सामाजिक ताने-बाने के बीच की संवेदनशील रेखा को चर्चा में ला दिया है। ऐसे में श्रद्धालुओं को संयम, विवेक और परंपराओं के सम्मान के साथ निर्णय लेना बेहद आवश्यक हो जाता है।
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