जब अच्छे-खासे पढे लिखे लोग भी केवल सत्ता को खुश करने में ही अपना सारा दिमाग खपा देते हैं तब वे नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम बन जाते हैं जिनका काम जनता की भलाई के लिए योजनाओं का प्रारूप तैयार करना नहीं बल्कि अफवाह फैलाना रहता है। सुब्रमण्यम आईएएस हैं, सेक्रेटरी, चीफ सेक्रेटरी और प्रिन्सपल सेक्रेटरी का पद संभाल चुके हैं, प्रधानमंत्री कार्यालय में काम कर चुके हैं और सबसे बड़ी बात तो यह है कि विश्व बैंक में भी रह चुके हैं- पर साहब को खुश करने के चक्कर में आईएमएफ के आकलन को भी समझ नहीं सके और देश की अर्थव्यवस्था को जापान से आगे पहुंचाने का ख्वाब देखने लगे।
जाहिर है ऐसे ख्याली पुलाव ही प्रधानमंत्री जी को बहुत पसंद आते हैं और यही कल्पनाएं उनके विकास का आधार हैं। इन कल्पनाओं को आगे बढ़ाने के लिए मैनस्ट्रीम मीडिया तो है ही, जिसकी खबरें सत्ता की चाटुकारिता तक ही सीमित हैं। हरेक मीडिया के लिए देश की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था का अफवाह फ्रन्ट पेज की खबर थी और जब नीति आयोग के एक सदस्य ने बताया कि भारत अभी चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था नहीं बना है तब यह वक्तव्य मीडिया के अंतिम पन्ने तक भी नजर नहीं आया।
सुब्रमण्यम साहब पहले भी देश की गरीबी पर अजीबोगरीब वक्तव्य दे चुके हैं और हमारे प्रधानमंत्री जी इन वक्तव्यों का राजनैतिक लाभ ले चुके हैं। नीति आयोग के ही आंकड़ों में 25 करोड़ से अधिक लोग गरीबी छोड़कर मध्यम आय वर्ग में पहुँच गए हैं फिर भी गरीबों को दिए जाने वाले मुफ़्त राशन का लाभ उठा रहे हैं। सुब्रमण्यम साहब ही देश में गरीबों की संख्या कभी देश की आबादी का 5 प्रतिशत तो कभी इससे भी कम बता चुके हैं- शायद अगले वक्तव्य में देश में कोई गरीब ही नहीं रह जाए।
नीति आयोग के सीईओ या देश के प्रधानमंत्री ने लगातार बड़ी अर्थव्यवस्था का ख्वाब दिखाया, 5 खरब डॉलर की जीडीपी का सपना दिखाया- पर यह कभी नहीं बताया कि देश में किस कदर आर्थिक असमानता है और प्रति व्यक्ति जीडीपी के संदर्भ में हम दुनिया में 144वें स्थान पर हैं। यह हास्यास्पद है कि तथाकथित चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश अपनी 81 करोड़ आबादी को मुफ़्त अनाज देकर जिंदा रख पा रहा है। चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर वाहवाही लूटने वाले देश को अपनी जनसंख्या भी नहीं पता है। अभी हरेक आकलन कभी 130 करोड़ तो कभी 140 करोड़ आबादी के सहारे किया जाता है, जब वास्तविक आबादी का पता चलेगा तब सभी आंकड़े स्वतः ध्वस्त हो जाएंगे। संभव है जिस प्रतिव्यक्ति जीडीपी के संदर्भ में हम दुनिया में 144वें स्थान पर हैं, उसमें हम 150वें से भी नीचे फिसल जाएं।
हमारे देश में गरीबों की संख्या कितनी है, यह किसी को नहीं मालूम। प्रधानमंत्री मोदी 81 करोड़ जनता को गरीब बता कर मुफ़्त अनाज बांट रहे हैं, दूसरी तरफ यह भी दावा करते रहे हैं कि इनमें से 25 करोड़ जनता अब गरीब नहीं है और मध्यम वर्ग में पहुंच चुकी है। आश्चर्य यह है कि 81 करोड़ जनता को अब भी मुफ़्त अनाज दिया जा रहा है- यानि मोदी राज के विकसित भारत में मध्यम वर्ग और गरीबों के बीच का अंतर भी समाप्त हो गया है। फरवरी 2024 में नीति आयोग के बड़बोले सीईओ ने मीडिया को बताया था कि देश में 5 प्रतिशत से भी कम आबादी गरीब है- यानि गरीबों की संख्या 7 करोड़ से भी कम है। इन तमाम दावों के बीच ब्लूम वेंचर्स नामक संस्था ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि देश में लगभग 100 करोड़ आबादी के पास उपभोक्ता उत्पाद खरीदने के लिए आर्थिक संसाधन नहीं है- जाहिर है इस रिपोर्ट के अनुसार देश की 100 करोड़ आबादी गरीब है।
मोदी सरकार में तथ्यों और वास्तविक आंकड़ों को जान पाना कठिन है क्योंकि कोई भी विभाग या मंत्रालय विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित ही नहीं करता। नीति आयोग जैसी संस्थाएं कुछ रिपोर्ट प्रकाशित भी करती हैं, तो सत्ता इसके आकड़ों को अपने तरीके से प्रस्तुत करती है। मोदी सरकार में जनता से जुड़े आंकड़े प्रधानमंत्री और दूसरे बड़बोले मंत्री समय और परिस्थिति के अनुसार गढ़ते हैं, इसीलिए हरेक भाषण में एक ही विषय पर आंकड़े अलग-अलग रहते हैं। सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों और तथ्यों को परखने की जिम्मेदारी मीडिया की होती है, पर हमारे देश का मेनस्ट्रीम मीडिया ही सत्ता भक्ति में लीन होकर झूठ और जुमलों के प्रचार की फैक्ट्री बन चुका है।
प्रधानमंत्री मोदी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और मोदी सरकार के तमाम बड़बोले मंत्री अपनी ही अर्थव्यवस्था से किस कदर अनजान हैं, फिर भी लगातार जनता को गुमराह करते रहे हैं- इसका सबसे बड़ा उदाहरण 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था से संबंधित पिछले कुछ वर्षों से किए जा रहे दावे हैं। वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह कभी जनसभाओं में जनता को बताते थे कि ट्रिलियन में कितने शून्य होते हैं- संभव है अब उन्हें ही यह भूल गया हो। प्रधानमंत्री मोदी स्वयं भी लगातार 5 ट्रिलियन अर्थव्ययस्था के बारे में देश और दुनिया को भ्रामक जानकारी देते रहे हैं।
जनवरी 2018 में स्विट्ज़रलैंड के दावोस में वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ष 2025 तक अर्थव्ययस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने का दावा किया था। जुलाई 2019 में बजट पेश किए जाने के ठीक अगले दिन वाराणसी में एक सभा में बताया कि यह लक्ष्य तो वर्ष 2024 तक ही हासिल हो जाएगा। अगस्त 2023 में ब्रीक्स देशों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने दावा किया था कि भारत दुनिया की अर्थव्यवस्था का “ग्रोथ इंजन” है और बड़ी जल्दी 5 ट्रिलियन का लक्ष्य हासिल हो जाएगा। पर, यह लक्ष्य तो मोदी जी के लिए भी एक मरीचिका बन गया है।
प्रेस इनफार्मेशन ब्युरो, यानि पीआईबी, ने 11 अक्टूबर 2018 को अपने रिलीज में वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का दावा किया था। इसमें कहा गया था कि इसके लिए सरकार ने उत्पादन से लेकर आय-केंद्रित रोजगार और कृषि, हरेक जगह सुधार किया है। इस प्रेस रिलीज से मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों में सर्विसेज़ सेक्टर का वर्चस्व भी स्पष्ट होता है- 5 ट्रिलियन में से 1 ट्रिलियन योगदान औद्योगिक उत्पादन का, 1 ट्रिलियन योगदान कृषि का शेष 3 ट्रिलियन योगदान सर्विसेज़ सेक्टर का बताया गया था।
पीआईबी ने 1 अगस्त 2023 को जारी रिलीज में बताया कि मोदी सरकार वर्ष 2014 से ही 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था की योजनाएं तैयार कर रही है। पीआईबी ने 4 जुलाई 2019 को आर्थिक सर्वे का और फरवरी 2020 में बड़बोले मंत्री पीयूष गोयल का हवाला देकर वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का दावा किया था। पीयूष गोयल ने अगस्त 2024 में इसकी समय-सीमा बढ़ाकर अगले 3 से 4 वर्ष, यानि 2027-2028 कर दिया था।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2023-2024 के अनुसार देश की ग्रामीण जनता प्रति माह औसतन 4122 रुपये खर्च करती है, जबकि शहरी जनता औसतन 6996 रुपये खर्च करती है। यहां महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि देश की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी इस औसत तक नहीं पहुंचती है। यदि ग्रामीण आबादी की चर्चा करें तो देश की सबसे गरीब 60 प्रतिशत आबादी औसतन 2805 रुपये ही खर्च कर पाती है, जबकि सबसे अमीर 5 प्रतिशत आबादी औसतन 10137 रुपये खर्च करती है। इसी तरह शहरी क्षेत्रों की सबसे गरीब 60 प्रतिशत आबादी औसतन 4349 रुपये खर्च करती है और सबसे अमीर 5 प्रतिशत आबादी 20310 रुपये खर्च करती है।
जाहिर है प्रधानमंत्री मोदी समेत तमाम मंत्री और सुब्रमण्यम साहब अर्थव्यवस्था से संबंधित जितने भी जुमलों की बरसात कर दें, इनमें से किसी को भी देश की अर्थव्यवस्था का बुनियादी ज्ञान नहीं है। मोदी सरकार में तो यह भी नहीं पता कि वर्ष 2024 में जीडीपी के आंकड़े क्या हैं-कभी 3.54 ट्रिलियन तो कभी 3.7 ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा बताया गया, दूसरी तरफ पंकज चौधरी ने वर्ष 2022-2023 में ही जीडीपी को 3.7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचा दिया था। 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था, गरीबी हटाओ और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कभी ना खत्म होने वाला चुनावी नारा है, वर्ष 2018-2019 में उछाला गया, फिर 2023-2024 में उछाला गया और अब इसे फिर से 2028-2029 में उछाला जाएगा। यही बीजेपी का विकास है, नीति आयोग का काम है और मोदी की गारंटी है।