पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के यूं तो अपने कई रंग दिख ही रहे थे। पर, इस बार इस चुनाव की रोचकता राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी बढ़ा दी। वह इसलिए कि यह जंग केवल सत्ता हासिल करने का जंग नहीं रह गया। यह जंग नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा से जुड़ गया। नीतीश कुमार के संकल्प से जुड़ गया है। और साथ ही इस बात के लिए भी महत्वपूर्ण हो गया कि नीतीश कुमार इस बार के चुनाव में वर्ष 2010 की वैभवशाली जीत के साथ पार्टी को नंबर वन बनाने का टास्क अपने पार्टी के रणनीतिकारों के कंधे पर सौंप दी है। जेडीयू की स्थितिवर्ष 2005 (अक्टूबर नवंबर) के चुनाव में जेडीयू ने 139 सीटों पर चुनाव लड़कर 88 सीटों पर जीत का परचम लहराया था। वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने कुल 141 विधान सभा सीटों पर चुनाव लड़कर 115 सीटों पर जीत हासिल की थी। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने 101 सीटों पर लड़कर 71 सीटों पर जीत हासिल की थी। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में पार्टी 115 सीटों पर लड़ी और खराब प्रदर्शन करते हुए 43 सीटों पर जीत दर्ज की। सबसे बड़ी पार्टी का सवालराज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अगर इस बार विधानसभा चुनाव में नंबर वन की पार्टी बनने का संकल्प लिया है, तो वर्ष 2010 के चुनाव में प्राप्त 115 सीटों से ज्यादा हासिल करना चाहते हैं। और इसके लिए नीतीश कुमार ने जिम्मेदारी भी तय कर दी है। इसकी जिम्मेदारी कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और पूर्व के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह के कंधों पर तो सौंपी है। संगठन के कई पदाधिकारी को भी निर्देश दिया है। दरअसल, यह नीतीश कुमार का चुनावी संकल्प है। मगर कार्यकर्ता या फिर पदाधिकारी के स्तर पर एक संवेदना यह काम कर रही है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में होने वाले विधानसभा चुनाव परिणाम को विशाल सफलता के साथ उन्हें तोहफे के तौर पर 115 सीटों से ज्यादा जीत के रूप में दे। जानिए क्या है बाधावर्ष 2010 वाली स्थिति को पार पाना नीतीश कुमार भी असंभव ही मानते होंगे। इस रस्ते पर कम बाधाएं नहीं है। सबसे बड़ी बाधा तो गठबंधन दलों के बीच हिस्सेदारी का खेल है। एनडीए के भीतर पांच दल हैं। इनके बीच संभावित सीटों की हिस्सेदारी के बाद जेडीयू को अधिक से अधिक 100 सीटें मिलेंगी। वर्ष 2010 में जदयू 141 सीटों पर लड़कर 115 सीटों पर जीत हासिल की थी। दूसरी बड़ी बाधा नीतीश कुमार के विरोध में इस चुनाव में कई नई पार्टियां खड़ी हैं। विरोधियों की चालध्यान रहे कि नीतीश कुमार के रणनीतिकार प्रशांत किशोर की पार्टी, नीतीश कुमार की ही पार्टी के अध्यक्ष रहे आरसीपीसिंह की पार्टी, सुशासन के नाम पर शिवदीप लांडे की पार्टी, सब के सब नीतीश कुमार के वोट बैंक पर ही निशाना साध रखे हैं। पहले एक चिराग पासवान की पार्टी ने जेडीयू को 115 से 43 सीटों पर ला कर खड़ा कर दिया। अब इतनी तमाम पार्टियों का असर इस विधानसभा चुनाव में देखा जाना शेष है। पार्टी के भीतर गुटबाजी का भी असर संभावित है। अतिपिछड़ा ,पिछड़ा और दलित वोट की सेंधमारी में राजद कितना सफल होता है, इसका असर भी दिखेगा।
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