क्या ईरान के खिलाफ युद्ध में अमेरिका भी कूदेगा? अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप जब इस मुद्दे पर कहते हैं कि 'मैं ऐसा कर सकता हूं और नहीं भी कर सकता' - तो वह अनिश्चितता को और बढ़ा देते हैं। इस रवैये से तनाव कम करने में मदद नहीं मिलने वाली। अगर अमेरिका इस टकराव का हिस्सा बना, तो इसके नतीजे उसके साथ-साथ पूरे पश्चिम एशिया के लिए विनाशकारी साबित हो सकते हैं।
आम लोग निशाना: इस्राइल और ईरान के बीच का संघर्ष केवल सैन्य या रणनीतिक लिहाज से अहम ठिकानों तक सीमित नहीं रहा है। इसका दायरा फैल रहा है और जद में आम लोग आ रहे हैं। लेकिन, यूक्रेन युद्ध रुकवाने को आतुर ट्रंप का व्यवहार इस मामले में बिल्कुल अलग है। ईरान से बिना शर्त सरेंडर जैसी बात कहने से यही जाहिर होता है कि अमेरिका की दिलचस्पी शांति में नहीं है।
जोखिम की वजह: ट्रंप सारे पत्ते अपने हाथ में रखना चाहते हैं। उनके कहने पर अमेरिकी सेना तैयार है। खबरें हैं कि ईरान ने भी पश्चिम एशिया में मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने के लिए मिसाइलें तैनात कर दी हैं। यानी, अब एक ट्रिगर पॉइंट इस संघर्ष को भयावह युद्ध में बदल सकता है। ट्रंप इतना बड़ा रिस्क इसलिए लेना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि ईरान परमाणु हथियार बनाने के बहुत करीब है। हालांकि इस मामले में कोई निश्चित रिपोर्ट नहीं है।
पुरानी गलतियां: अमेरिका ने इस सदी की शुरुआत में भी ऐसी ही एक गलती की थी - इराक के खिलाफ युद्ध। जनसंहार के जिन हथियारों की खोज के नाम पर उसने इराक में तबाही फैलाई, वे कभी मिले ही नहीं और हजारों अमेरिकी सैनिकों को जान गंवानी पड़ी। इराक आज भी अस्थिर है। वॉशिंगटन को ऐसा ही कड़वा घूंट अफगानिस्तान में भी पीना पड़ा। ईरान की स्थिति इन दोनों के मुकाबले मजबूत है।
कई मोर्चे खुल जाएंगे: अगर अमेरिका युद्ध में शामिल हुआ, तो लड़ाई बस ईरान तक सीमित नहीं रहेगी। UAE, सऊदी अरब, जॉर्डन समेत इस इलाके के कई देशों में अमेरिकी सेना तैनात है और ईरान उन्हें निशाना बनाने की कोशिश करेगा, जिससे ये मुल्क भी हिंसा की चपेट में आ जाएंगे। एक डर यह भी है कि ईरान के समर्थन हूती जैसे लड़ाके गुट भी अलग-अलग मोर्चा खोल सकते हैं।
आर्थिक तबाही: ईरान ने अभी तक ग्लोबल ऑयल सप्लाई को नहीं छुआ है। लेकिन, मौजूदा नेतृत्व के सामने अस्तित्व का संकट आया, तो वह पूरी ताकत से जवाब देगा, और नतीजा दुनिया के लिए आर्थिक तबाही भी लेकर आएगा। अमेरिका ने कई मौकों पर गलत अनुमान लगाए हैं - अपने अतीत से उसे इतना तो सबक लेना ही चाहिए।
आम लोग निशाना: इस्राइल और ईरान के बीच का संघर्ष केवल सैन्य या रणनीतिक लिहाज से अहम ठिकानों तक सीमित नहीं रहा है। इसका दायरा फैल रहा है और जद में आम लोग आ रहे हैं। लेकिन, यूक्रेन युद्ध रुकवाने को आतुर ट्रंप का व्यवहार इस मामले में बिल्कुल अलग है। ईरान से बिना शर्त सरेंडर जैसी बात कहने से यही जाहिर होता है कि अमेरिका की दिलचस्पी शांति में नहीं है।
जोखिम की वजह: ट्रंप सारे पत्ते अपने हाथ में रखना चाहते हैं। उनके कहने पर अमेरिकी सेना तैयार है। खबरें हैं कि ईरान ने भी पश्चिम एशिया में मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने के लिए मिसाइलें तैनात कर दी हैं। यानी, अब एक ट्रिगर पॉइंट इस संघर्ष को भयावह युद्ध में बदल सकता है। ट्रंप इतना बड़ा रिस्क इसलिए लेना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि ईरान परमाणु हथियार बनाने के बहुत करीब है। हालांकि इस मामले में कोई निश्चित रिपोर्ट नहीं है।
पुरानी गलतियां: अमेरिका ने इस सदी की शुरुआत में भी ऐसी ही एक गलती की थी - इराक के खिलाफ युद्ध। जनसंहार के जिन हथियारों की खोज के नाम पर उसने इराक में तबाही फैलाई, वे कभी मिले ही नहीं और हजारों अमेरिकी सैनिकों को जान गंवानी पड़ी। इराक आज भी अस्थिर है। वॉशिंगटन को ऐसा ही कड़वा घूंट अफगानिस्तान में भी पीना पड़ा। ईरान की स्थिति इन दोनों के मुकाबले मजबूत है।
कई मोर्चे खुल जाएंगे: अगर अमेरिका युद्ध में शामिल हुआ, तो लड़ाई बस ईरान तक सीमित नहीं रहेगी। UAE, सऊदी अरब, जॉर्डन समेत इस इलाके के कई देशों में अमेरिकी सेना तैनात है और ईरान उन्हें निशाना बनाने की कोशिश करेगा, जिससे ये मुल्क भी हिंसा की चपेट में आ जाएंगे। एक डर यह भी है कि ईरान के समर्थन हूती जैसे लड़ाके गुट भी अलग-अलग मोर्चा खोल सकते हैं।
आर्थिक तबाही: ईरान ने अभी तक ग्लोबल ऑयल सप्लाई को नहीं छुआ है। लेकिन, मौजूदा नेतृत्व के सामने अस्तित्व का संकट आया, तो वह पूरी ताकत से जवाब देगा, और नतीजा दुनिया के लिए आर्थिक तबाही भी लेकर आएगा। अमेरिका ने कई मौकों पर गलत अनुमान लगाए हैं - अपने अतीत से उसे इतना तो सबक लेना ही चाहिए।
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