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40 की उम्र के बाद बदलें वर्कआउट की आदतें, वरना फायदे की जगह हो सकता है नुकसान, डॉ अखिलेश की सलाह

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जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, शरीर की मांसपेशियां, हड्डियां और मेटाबॉलिज्म पर असर पड़ने लगता है। खासकर 40 की उम्र के बाद, वो एक्सरसाइज़ जो पहले असरदार लगती थीं, अब थकान, जॉइंट पेन और कमजोरी जैसी समस्याएं बढ़ा सकती हैं। ऐसे में अगर आप अभी भी वही पुराना वर्कआउट रूटीन फॉलो कर रहे हैं, तो यह समय है उसे रिवाइज करने का।

​डॉ अखिलेश यादव - एसोसिएट डायरेक्टर, ऑर्थोपेडिक्स एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट, मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वैशाली, के अनुसार 40 की उम्र के बाद फिटनेस का मतलब सिर्फ तेजी से वजन घटाना या बॉडी बनाना नहीं होता, बल्कि शरीर की मूवमेंट, लचीलापन, और एंड्योरेंस को बेहतर बनाए रखना भी ज़रूरी होता है। ऐसे में स्ट्रेंथ ट्रेनिंग, योग, स्ट्रेचिंग, कार्डियो और रिकवरी को बैलेंस करना बहुत ज़रूरी हो जाता है। साथ ही, बॉडी को ओवर-एक्सर्ट करने के बजाय स्मार्ट ट्रेनिंग की जरूरत होती है।

इस लेख में हम आपको बताएंगे कि 40 की उम्र के बाद वर्कआउट कैसे बदलना चाहिए, कौन-कौन सी एक्सरसाइज़ फायदेमंद होती हैं और किन गलतियों से बचना जरूरी है। चाहे आप जिम पर वर्कआउट जाते हों या घर पर ही वर्कआउट करते हों, ये टिप्स आपकी हेल्थ को उम्र के साथ बेहतर बनाए रखने में मदद करेंगे।(Photo Credit):iStock


क्यों जरूरी है 40 के बाद वर्कआउट में बदलाव image

40 की उम्र के बाद शरीर की मांसपेशियां धीरे-धीरे कमजोर होने लगती हैं और बोन डेंसिटी भी घटने लगती है। यही वजह है कि पहले की तरह भारी वर्कआउट या बिना वार्मअप के एक्सरसाइज करना जोड़ों में दर्द, थकान और चोट का कारण बन सकता है। ऐसे में वर्कआउट को उम्र के अनुसार मॉडिफाई करना बेहद जरूरी हो जाता है। स्मार्ट वर्कआउट से न सिर्फ आपकी एनर्जी बनी रहती है, बल्कि हार्मोन बैलेंस और मेटाबॉलिज्म भी कंट्रोल में रहता है।


स्ट्रेंथ ट्रेनिंग और स्ट्रेचिंग को बनाएं नया बेस image

40 के बाद मसल्स मास तेजी से घटने लगता है, जिसे रोकने के लिए स्ट्रेंथ ट्रेनिंग बेहद ज़रूरी है। हल्के वज़न के साथ रेगुलर स्ट्रेंथ एक्सरसाइज़ न केवल मांसपेशियों को मज़बूती देती हैं, बल्कि हड्डियों को भी सपोर्ट करती हैं। वहीं, स्ट्रेचिंग शरीर को लचीला बनाए रखती है और इंजरी के खतरे को कम करती है। हर वर्कआउट सेशन में स्ट्रेचिंग जरूर शामिल करें ताकि बॉडी एक्टिव और फ्लेक्सिबल बनी रहे।


कार्डियो अब जोर से नहीं, सोच-समझकर करें image

अगर पहले आप ज़ोरदार रनिंग या हाई इंटेंसिटी कार्डियो करते थे, तो अब उसमें बैलेंस बनाना जरूरी है। 40 की उम्र के बाद जॉइंट्स ज्यादा सेंसिटिव हो जाते हैं, ऐसे में स्वीमिंग, ब्रिस्क वॉकिंग, साइकलिंग या कम इंटेंसिटी वाला कार्डियो शरीर के लिए बेहतर रहता है। ये न केवल हार्ट हेल्थ को दुरुस्त रखता है, बल्कि फैट बर्निंग में भी मदद करता है। ज़रूरत है अब अपने शरीर की बात सुनने और वर्कआउट को समझदारी से चुनने की।


रिकवरी और नींद की अहमियत को न करें नज़रअंदाज़ image

40 के बाद शरीर की रिकवरी क्षमता धीमी हो जाती है। इसका मतलब यह है कि हर वर्कआउट के बाद पर्याप्त आराम और नींद मिलना बेहद ज़रूरी है। मसल्स रिकवरी, हार्मोन बैलेंस और एनर्जी लेवल को बनाए रखने के लिए कम से कम 7–8 घंटे की नींद लें और हफ्ते में 1–2 दिन वर्कआउट से ब्रेक जरूर दें। रेस्ट भी फिटनेस का एक अहम हिस्सा है, इसे नज़रअंदाज़ करना नुकसानदेह हो सकता है।


डाइट, हाइड्रेशन और माइंडफुलनेस का रखें खास ध्यान image

वर्कआउट के साथ-साथ अब आपकी डाइट भी उतनी ही अहम हो जाती है। प्रोटीन, कैल्शियम, विटामिन D और हेल्दी फैट्स से भरपूर भोजन शरीर को पोषण देता है। साथ ही, पानी भरपूर पीना हाइड्रेशन बनाए रखने के लिए जरूरी है। माइंडफुलनेस, मेडिटेशन या योगा जैसे अभ्यास अब स्ट्रेस मैनेजमेंट में मदद करते हैं, जो इस उम्र में हार्ट और दिमाग की सेहत के लिए फायदेमंद है।

डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें। एनबीटी इसकी सत्यता, सटीकता और असर की जिम्मेदारी नहीं लेता है।

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