पटना: बिहार चुनाव के दूसरे चरण में 20 जिलों की 122 सीटों पर 11 नवंबर को मतदान है। भावी सरकार का भविष्य अब दूसरे चरण के मतदान पर निर्भर है। महिला वोटरों की सक्रिय भागीदारी और सात परसेंट वोट (पासवान+कुशवाहा) के सरप्लस होने के कारण पहले चरण में एनडीए को फायदा मिलने का अनुमान जताया जा रहा है। 2020 के आधार पर पहले चरण में महागठबंधन को एनडीए पर सिर्फ दो सीटों की बढ़त थी। अब दूसरे चरण के होने वाले चुनाव में एनडीए के पास 67 सीटें हैं, जबकि महागठबंधन के पास 50 सीटें ही हैं। अगर 2025 की लड़ाई में महागठबंधन को बने रहना है तो उसे इन 17 सीटों के अंतर को पाट कर अच्छा प्रदर्शन करना होगा। अगर, महागठबंधन 17 सीटों की कमी की भरपाई नहीं कर सका तो एनडीए बाजी मार ले जाएगा।
चुनाव के एक दिन पहले का अहम समयसिक्के का दूसरा पहलू ये है कि अगर एनडीए को अपनी सत्ता बरकरार रखनी हो तो पहले चरण ने मोमेंटम को दूसरे चरण में भी कायम रखना होगा। मतदान के एक दिन पहले और मतदान के दिन का प्रभाव ही चुनाव में सबसे अहम माना जाता है। जरा-सी गलती के कारण महीने भर की मेहनत ऐन वक्त पर मुट्ठी से रेत की तरह फिसल जाती है। अगर, एनडीए को बेहतर प्रदर्शन करना है तो उसे अपने कमजोर पक्ष को ठीक करना होगा। एनडीए का कमजोर पक्ष है रोहतास और कैमूर की 11 सीटें साथ ही मगध क्षेत्र की 26 सीटें।
रोहतास, कैमूर और मगध का सिकंदर कौन?पिछले चुनाव में एनडीए को रोहतास और कैमूर में एक भी सीट नहीं मिली थी। राजद और कांग्रेस के विधायकों के एनडीए में आने के बाद स्थिति कुछ बदली है। पिछले चुनाव में मगध प्रमंडल के 5 जिलों की 26 सीटों में से एनडीए को सिर्फ 6 सीटें मिलीं थीं। 20 पर महागठबंधन ने कब्जा जमाया था। अगर 2025 में एनडीए को सत्ता सुनिश्चित करनी है तो रोहतास, कैमूर और मगध में महागठबंधन के किले को ढाहना होगा। एक दिन के घर-घर जनसम्पर्क से चुनाव में बहुत कुछ बदल जाता है। यही बात महागठबंधन पर लागू होती है। एक दिन में वो भी अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।
महागठबंधन के लिए दरभंगा सबसे बड़ी चुनौतीमहागठबंधन को सबसे अधिक नुकसान और एनडीए को सबसे अधिक फायदा दरभंगा क्षेत्र में हुआ था। पिछले चुनाव में दरभंगा जिले की 10 विधानसभा सीटों में से 8 पर एनडीए को विजय मिली थी। महागठबंधन को सिर्फ दो सीटों पर संतोष करना पड़ा था। यहां ध्यान देने की बात है कि दरभंगा जिले में मुस्लिम वोटरों की अच्छी-खासी आबादी है। इसके बावजूद महागठबंधन के 4 मुस्लिम उम्मीदवार इस चुनाव में हार गए थे।
हरा गए थे महागठबंधन के 4 मुस्लिम कैंडिडेटराजद के दिग्गज नेता में शुमार अब्दुल बारी सिद्दीकी केवटी में भाजपा के मुरारी मोहन झा से हार गए थे। इस चुनाव में राजद का मुस्लिम वोट बैंक बिखर गया था। राजद के अफजल अली खां गौराबौड़ाम सीट पर और फराज फातिमी दरभंगा ग्रामीण सीट पर हारे थे। जाले में कांग्रेस के मश्कूर रहमानी भाजपा से हार गए थे। लालू यादव के हनुमान कहे जाने वाले भोला यादव भी हायाघाट में भाजपा से मात का गए थे। इस बार अगर एनडीए ने इस क्षेत्र में अपने पुराने प्रदर्शन को दोहरा दिया तो महागठबंधन और पिछड़ जाएगा।
तिरहुत में महागठबंधन को हुआ था भारी नुकसानइसी तरह पिछले चुनाव में तिरहुत प्रमंडल के चार जिलों (मुजफ्फरपुर, पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, वैशाली) की 30 सीटों पर महागठबंधन को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। कुल 30 में उसे केवल 7 सीट पर विजय मिली थी। तिरहुत क्षेत्र एनडीए का मजबूत किला है। चिराग और उपेंद्र कुशवाहा के नहीं रहने के बाद भी एनडीए ने 23 सीटें जीती थी। मुजफ्फरपुर की 11 सीटों पर लगभग बराबर का मुकाबला था। एनडीए को 6 तो महागठबंधन को 5 सीटें मिली थी। वैशाली (8) में भी मुकाबला 4-4 से बराबर था। असल अंतर आया था पश्चिम चंपारण में। बेतिया की 9 सीटों में से 8 पर एनडीए को विजय मिली थी। एक सीट (सिकटा) भाकपा माले को मिली थी। पूर्वी चंपारण की 12 सीटों में से 9 पर एनडीए को और 3 पर राजद को जीत मिली थी।
भागलपुर में महागठबंधन के लिए विकट स्थितिपिछले चुनाव में भागलपुर और बांका की 12 सीटों में से 10 पर एनडीए तो 2 पर महागठबंधन को जीत मिली थी। इस बार भागलपुर के कहलगांव और सुल्तानगंज में महागठबंधन के प्रत्याशी आपस में ही चुनाव लड़ रहे हैं। कहलगांव में राजद के रजनीश भारती और कांग्रेस के प्रवीण कुशवाहा की आपसी लड़ाई से जदयू उम्मीदवार शुभानंद मुकेश की स्थिति मजबूत बताई जा रही है। सुल्तानगंज में राजद के चंदन कुमार और कांग्रेस के ललन कुमार के बीच दोस्ताना लड़ाई चल रही है। इससे जदयू के ललित मंडल का रास्ता आसान हो गया है।
चुनाव के एक दिन पहले का अहम समयसिक्के का दूसरा पहलू ये है कि अगर एनडीए को अपनी सत्ता बरकरार रखनी हो तो पहले चरण ने मोमेंटम को दूसरे चरण में भी कायम रखना होगा। मतदान के एक दिन पहले और मतदान के दिन का प्रभाव ही चुनाव में सबसे अहम माना जाता है। जरा-सी गलती के कारण महीने भर की मेहनत ऐन वक्त पर मुट्ठी से रेत की तरह फिसल जाती है। अगर, एनडीए को बेहतर प्रदर्शन करना है तो उसे अपने कमजोर पक्ष को ठीक करना होगा। एनडीए का कमजोर पक्ष है रोहतास और कैमूर की 11 सीटें साथ ही मगध क्षेत्र की 26 सीटें।
रोहतास, कैमूर और मगध का सिकंदर कौन?पिछले चुनाव में एनडीए को रोहतास और कैमूर में एक भी सीट नहीं मिली थी। राजद और कांग्रेस के विधायकों के एनडीए में आने के बाद स्थिति कुछ बदली है। पिछले चुनाव में मगध प्रमंडल के 5 जिलों की 26 सीटों में से एनडीए को सिर्फ 6 सीटें मिलीं थीं। 20 पर महागठबंधन ने कब्जा जमाया था। अगर 2025 में एनडीए को सत्ता सुनिश्चित करनी है तो रोहतास, कैमूर और मगध में महागठबंधन के किले को ढाहना होगा। एक दिन के घर-घर जनसम्पर्क से चुनाव में बहुत कुछ बदल जाता है। यही बात महागठबंधन पर लागू होती है। एक दिन में वो भी अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।
महागठबंधन के लिए दरभंगा सबसे बड़ी चुनौतीमहागठबंधन को सबसे अधिक नुकसान और एनडीए को सबसे अधिक फायदा दरभंगा क्षेत्र में हुआ था। पिछले चुनाव में दरभंगा जिले की 10 विधानसभा सीटों में से 8 पर एनडीए को विजय मिली थी। महागठबंधन को सिर्फ दो सीटों पर संतोष करना पड़ा था। यहां ध्यान देने की बात है कि दरभंगा जिले में मुस्लिम वोटरों की अच्छी-खासी आबादी है। इसके बावजूद महागठबंधन के 4 मुस्लिम उम्मीदवार इस चुनाव में हार गए थे।
हरा गए थे महागठबंधन के 4 मुस्लिम कैंडिडेटराजद के दिग्गज नेता में शुमार अब्दुल बारी सिद्दीकी केवटी में भाजपा के मुरारी मोहन झा से हार गए थे। इस चुनाव में राजद का मुस्लिम वोट बैंक बिखर गया था। राजद के अफजल अली खां गौराबौड़ाम सीट पर और फराज फातिमी दरभंगा ग्रामीण सीट पर हारे थे। जाले में कांग्रेस के मश्कूर रहमानी भाजपा से हार गए थे। लालू यादव के हनुमान कहे जाने वाले भोला यादव भी हायाघाट में भाजपा से मात का गए थे। इस बार अगर एनडीए ने इस क्षेत्र में अपने पुराने प्रदर्शन को दोहरा दिया तो महागठबंधन और पिछड़ जाएगा।
तिरहुत में महागठबंधन को हुआ था भारी नुकसानइसी तरह पिछले चुनाव में तिरहुत प्रमंडल के चार जिलों (मुजफ्फरपुर, पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, वैशाली) की 30 सीटों पर महागठबंधन को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। कुल 30 में उसे केवल 7 सीट पर विजय मिली थी। तिरहुत क्षेत्र एनडीए का मजबूत किला है। चिराग और उपेंद्र कुशवाहा के नहीं रहने के बाद भी एनडीए ने 23 सीटें जीती थी। मुजफ्फरपुर की 11 सीटों पर लगभग बराबर का मुकाबला था। एनडीए को 6 तो महागठबंधन को 5 सीटें मिली थी। वैशाली (8) में भी मुकाबला 4-4 से बराबर था। असल अंतर आया था पश्चिम चंपारण में। बेतिया की 9 सीटों में से 8 पर एनडीए को विजय मिली थी। एक सीट (सिकटा) भाकपा माले को मिली थी। पूर्वी चंपारण की 12 सीटों में से 9 पर एनडीए को और 3 पर राजद को जीत मिली थी।
भागलपुर में महागठबंधन के लिए विकट स्थितिपिछले चुनाव में भागलपुर और बांका की 12 सीटों में से 10 पर एनडीए तो 2 पर महागठबंधन को जीत मिली थी। इस बार भागलपुर के कहलगांव और सुल्तानगंज में महागठबंधन के प्रत्याशी आपस में ही चुनाव लड़ रहे हैं। कहलगांव में राजद के रजनीश भारती और कांग्रेस के प्रवीण कुशवाहा की आपसी लड़ाई से जदयू उम्मीदवार शुभानंद मुकेश की स्थिति मजबूत बताई जा रही है। सुल्तानगंज में राजद के चंदन कुमार और कांग्रेस के ललन कुमार के बीच दोस्ताना लड़ाई चल रही है। इससे जदयू के ललित मंडल का रास्ता आसान हो गया है।
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