पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे और आखिरी चरण के लिए प्रचार खत्म हो गया है। और स्थिति वही है- 'कारवां गुजर गया, अब गुबार को साधते रहिए।' गालियां, चौंक चौराहे सब सुनी। समय तो गांव की पगडंडियों से हेलीकॉप्टर को देखने के लिए आता बच्चों के रेला भी नहीं रहा। अब तो चौंक चौराहा पर यह चर्चा शुरू हो गई कि भाजपा ने जिस युद्धस्तर पर प्रचार किया, उससे यह महसूस हो रहा है कि मानो शीर्ष नेताओं ने पूरे बिहार को नाप दिया हो। एक से एक नामवर। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और तो थे, स्थानीय नामवर भी शामिल रहे। चलिए जानते हैं किसने कितनी नापी चुनावी जमीन...
चुनावी फिज़ा बनाते ये नामवर
बिहार विधानसभा की 'चुनावी जंग' बीजेपी ने तो युद्ध स्तर पर लड़ी। प्रचार की ताकत का एहसास इस बात से ही रहा है कि किस भाजपा नेता ने कितने चक्कर लगाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी स्टैमिना कम नहीं। तकरीबन 14 जनसभा किया और रोड शो भी। गृह मंत्री अमित शाह का तो एक पैर बिहार में ही रहा। बीजेपी के सूत्रों की माने तो गृह मंत्री अमित शाह ने 36 जनसभाओं के साथ कई रोड शो भी किए। और तकरीबन 150 से ज्यादा विधानसभा को बहुत ही प्राथमिकता के साथ न केवल दौरा और संबोधन तक सीमित रखा, बल्कि जरूरत महसूस हुई तो 'मैन टू मैन' मिलकर विद्रोहियों की समस्या को कमतर किया।
सीएम और केंद्रीय मंत्री की कितनी रैलियां
राज्य को 'भगवा की आंधी' के साथ जोड़ने तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कई जनसभाएं की। खास कर उन इलाकों में जहां हिंदू मुस्लिम कर 'चुनावी जंग' जीती जा सकती है। बीजेपी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 21, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की 15, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की 7, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की 12, मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री मोहन यादव की 17 सभाओं को संबोधित किया।
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की 18, असम के मुख्यमंत्री हिंमत विश्व शर्मा की 10, पावर स्टार भोजपुर अभिनेता एवं गायक पवन सिंह की 41 और दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी ने 37 जनसभाओं को संबोधित किया।
चुनावी चर्चा के मुंहाने पर बिहार
प्रचार ख़त्म होने के साथ चौंक चौराहे पर एक नया गेम शुरू हो गया है। वह गेम है कैलकुलेशन का। दर भले न मालूम हो पर कितनी बार हेलीकॉप्टर सिर से गुजरा उसकी जोड़ शुरू हो गई है। सड़को पर निकला गाड़िया के काफिला का नोटिंग निकाला जा रहा है। और एक गाड़ी पर कम से कम खर्च के हवाले कुल जमा खर्च तैयार किया जा रहा है। फिर बाप रे बाप कह कर कैलकुलेशन का चैप्टर क्लोज।
चौंक चौराहों पर अब तो नारे को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई। किसने किसको कितना लपेटा। भोजपुरिया प्रचार और उसके वायरल होते गाने पर भी चर्चा शुरू हो गई है।
पर कोई है जो जुगाड़ की राह पर
पर इन सबों से इतर एक ऐसा भी वर्ग है जो चुनाव प्रचार के बाद अपना आशियाना दुरुस्त कर रहा है। वह बड़े बड़े पोस्टरों को समेट कर अपने छप्पर पर बड़े करीने से डाल कर जाड़े के विरुद्ध जंग का ऐलान कर रहा है। फटे पोस्टरों के कागज को समेट बोरियो में डाल रहा है। वह भी यह सोच कर कि जब जब उसके दांत किटकिटाने लगेंगे, बोरियों में रखे फटे पोस्टर को औजार की तरह निकाल 'जाड़े के विरुद्ध जंग' का ऐलान शुरू कर देंगे।
चुनावी फिज़ा बनाते ये नामवर
बिहार विधानसभा की 'चुनावी जंग' बीजेपी ने तो युद्ध स्तर पर लड़ी। प्रचार की ताकत का एहसास इस बात से ही रहा है कि किस भाजपा नेता ने कितने चक्कर लगाए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी स्टैमिना कम नहीं। तकरीबन 14 जनसभा किया और रोड शो भी। गृह मंत्री अमित शाह का तो एक पैर बिहार में ही रहा। बीजेपी के सूत्रों की माने तो गृह मंत्री अमित शाह ने 36 जनसभाओं के साथ कई रोड शो भी किए। और तकरीबन 150 से ज्यादा विधानसभा को बहुत ही प्राथमिकता के साथ न केवल दौरा और संबोधन तक सीमित रखा, बल्कि जरूरत महसूस हुई तो 'मैन टू मैन' मिलकर विद्रोहियों की समस्या को कमतर किया।
सीएम और केंद्रीय मंत्री की कितनी रैलियां
राज्य को 'भगवा की आंधी' के साथ जोड़ने तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कई जनसभाएं की। खास कर उन इलाकों में जहां हिंदू मुस्लिम कर 'चुनावी जंग' जीती जा सकती है। बीजेपी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 21, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की 15, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की 7, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की 12, मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री मोहन यादव की 17 सभाओं को संबोधित किया।
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की 18, असम के मुख्यमंत्री हिंमत विश्व शर्मा की 10, पावर स्टार भोजपुर अभिनेता एवं गायक पवन सिंह की 41 और दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी ने 37 जनसभाओं को संबोधित किया।
चुनावी चर्चा के मुंहाने पर बिहार
प्रचार ख़त्म होने के साथ चौंक चौराहे पर एक नया गेम शुरू हो गया है। वह गेम है कैलकुलेशन का। दर भले न मालूम हो पर कितनी बार हेलीकॉप्टर सिर से गुजरा उसकी जोड़ शुरू हो गई है। सड़को पर निकला गाड़िया के काफिला का नोटिंग निकाला जा रहा है। और एक गाड़ी पर कम से कम खर्च के हवाले कुल जमा खर्च तैयार किया जा रहा है। फिर बाप रे बाप कह कर कैलकुलेशन का चैप्टर क्लोज।
चौंक चौराहों पर अब तो नारे को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई। किसने किसको कितना लपेटा। भोजपुरिया प्रचार और उसके वायरल होते गाने पर भी चर्चा शुरू हो गई है।
पर कोई है जो जुगाड़ की राह पर
पर इन सबों से इतर एक ऐसा भी वर्ग है जो चुनाव प्रचार के बाद अपना आशियाना दुरुस्त कर रहा है। वह बड़े बड़े पोस्टरों को समेट कर अपने छप्पर पर बड़े करीने से डाल कर जाड़े के विरुद्ध जंग का ऐलान कर रहा है। फटे पोस्टरों के कागज को समेट बोरियो में डाल रहा है। वह भी यह सोच कर कि जब जब उसके दांत किटकिटाने लगेंगे, बोरियों में रखे फटे पोस्टर को औजार की तरह निकाल 'जाड़े के विरुद्ध जंग' का ऐलान शुरू कर देंगे।
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