नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट असम पुलिस द्वारा एक महिला को हिरासत में लेने के मामले की सुनवाई करेगा। यह मामला 26 साल के एक युवक ने दायर किया है। युवक का कहना है कि उसकी मां को गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिया गया है। आरोप है कि असम पुलिस गुप्त रूप से लोगों को बांग्लादेश में भेज रही है। चीफ जस्टिस (CJI) बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और जस्टिस एएस चंदुरकर की बेंच ने मामले को सुना। वकील शोएब आलम याचिकाकर्ता यूनुच अली की तरफ से पेश हुए। उन्होंने बताया कि यूनुच की मां को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है।
सीजेआई की बेंच में सोमवार को होगी सुनवाई
CJI ने कहा कि इस मामले की सुनवाई सोमवार को होगी। यूनुच अली अपनी मां मनोवारा बेवा को तुरंत रिहा करने की मांग कर रहे हैं। मनोवारा बेवा को 24 मई को धुबरी पुलिस स्टेशन बुलाया गया था। उन्हें बयान दर्ज कराने के बहाने बुलाया गया और फिर हिरासत में ले लिया गया। वकील आलम ने असम में हो रही एक गंभीर समस्या के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि लोगों को रातों-रात हिरासत में लिया जा रहा है और बांग्लादेश भेजा जा रहा है। जबकि उनके कानूनी मामले अभी भी अदालत में चल रहे हैं।
लोगों को जबरन बांग्लादेश भेजे जाने का आरोप
आलम ने कहा,महिला ने 2017 में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की थी। नोटिस जारी किए गए हैं, लेकिन फिर भी लोगों को वापस भेजा जा रहा है, जबकि कार्यवाही अभी भी अदालत में चल रही है। उन्होंने आगे कहा कि कई वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें दिखाया गया है कि लोगों को रातों-रात उठाया जा रहा है और सीमा पार धकेला जा रहा है।
असम पुलिस पर रिहाई से इनकार का आरोप
मनोवारा बेवा को 12 दिसंबर, 2019 को जमानत मिली थी। सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश दिया था, जिसके तहत उन लोगों को सशर्त रिहा किया जाना था, जिन्होंने असम के फॉरनर डिटेंशन कैंप में तीन साल से अधिक समय बिताया था। याचिका में कहा गया है कि जब यूनुच अली अगले दिन पुलिस स्टेशन गए और अधिकारियों को बताया कि उनका मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, तो उन्हें अपनी मां से मिलने नहीं दिया गया और उनकी रिहाई से इनकार कर दिया गया।
जबरन डिपोर्ट करने से रोकने की गुहार
याचिका में गुवाहाटी हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। हाई कोर्ट ने विदेशी न्यायाधिकरण के उस फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें बेवा को विदेशी घोषित किया गया था। यह मामला 2017 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। याचिका में अधिकारियों को बेवा को धुुबरी पुलिस स्टेशन में 'गैरकानूनी हिरासत' से तुरंत रिहा करने का निर्देश देने की मांग की गई है। इसमें यह भी मांग की गई है कि जिसे हिरासत में रखा गया है, उसे किसी भी भारतीय सीमा से 'डिपोर्ट' या 'पुश बैक' करने से रोका जाए।
सीजेआई की बेंच में सोमवार को होगी सुनवाई
CJI ने कहा कि इस मामले की सुनवाई सोमवार को होगी। यूनुच अली अपनी मां मनोवारा बेवा को तुरंत रिहा करने की मांग कर रहे हैं। मनोवारा बेवा को 24 मई को धुबरी पुलिस स्टेशन बुलाया गया था। उन्हें बयान दर्ज कराने के बहाने बुलाया गया और फिर हिरासत में ले लिया गया। वकील आलम ने असम में हो रही एक गंभीर समस्या के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि लोगों को रातों-रात हिरासत में लिया जा रहा है और बांग्लादेश भेजा जा रहा है। जबकि उनके कानूनी मामले अभी भी अदालत में चल रहे हैं।
लोगों को जबरन बांग्लादेश भेजे जाने का आरोप
आलम ने कहा,महिला ने 2017 में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की थी। नोटिस जारी किए गए हैं, लेकिन फिर भी लोगों को वापस भेजा जा रहा है, जबकि कार्यवाही अभी भी अदालत में चल रही है। उन्होंने आगे कहा कि कई वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें दिखाया गया है कि लोगों को रातों-रात उठाया जा रहा है और सीमा पार धकेला जा रहा है।
असम पुलिस पर रिहाई से इनकार का आरोप
मनोवारा बेवा को 12 दिसंबर, 2019 को जमानत मिली थी। सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश दिया था, जिसके तहत उन लोगों को सशर्त रिहा किया जाना था, जिन्होंने असम के फॉरनर डिटेंशन कैंप में तीन साल से अधिक समय बिताया था। याचिका में कहा गया है कि जब यूनुच अली अगले दिन पुलिस स्टेशन गए और अधिकारियों को बताया कि उनका मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, तो उन्हें अपनी मां से मिलने नहीं दिया गया और उनकी रिहाई से इनकार कर दिया गया।
जबरन डिपोर्ट करने से रोकने की गुहार
याचिका में गुवाहाटी हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। हाई कोर्ट ने विदेशी न्यायाधिकरण के उस फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें बेवा को विदेशी घोषित किया गया था। यह मामला 2017 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। याचिका में अधिकारियों को बेवा को धुुबरी पुलिस स्टेशन में 'गैरकानूनी हिरासत' से तुरंत रिहा करने का निर्देश देने की मांग की गई है। इसमें यह भी मांग की गई है कि जिसे हिरासत में रखा गया है, उसे किसी भी भारतीय सीमा से 'डिपोर्ट' या 'पुश बैक' करने से रोका जाए।
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