पटना: सुप्रीम कोर्ट में बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण कराने के निर्वाचन आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। ये सुनवाई गुरुवार की सुबह करीब साढ़े 11 बजे के आसपास शुरू हुई। सुप्रीम कोर्ट ने एक ही तरह की याचिका को देखते हुए इन सबको सूचीबद्ध कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में बिहार वोटर लिस्ट पुनरीक्षण पर सुनवाई
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की आंशिक कार्य दिवस पीठ को निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने बताया कि उन्हें याचिकाओं पर आपत्तियां हैं। द्विवेदी के अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता के. के. वेणुगोपाल और मनिंदर सिंह भी निर्वाचन आयोग की पैरवी की। एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण की अनुमति दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि समग्र एसआईआर के तहत लगभग 7.9 करोड़ नागरिक आएंगे और यहां तक कि मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड पर भी विचार नहीं किया जा रहा है।
पहले जानिए क्या हुआ बहस में
जस्टिस बागची: हमें यह देखना होगा कि क्या व्यापक अधिकार देने वाला वैधानिक प्रावधान इस कार्रवाई के लिए जगह देता है?
अभिषेक मनु सिंघवी: इस प्रक्रिया से मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता... शब्द ही अंतिम मतदाता सूची हैं। महोदय, इस बारे में कोई सुगबुगाहट तक नहीं हुई।
जस्टिस धूलिया: एक नियम कहता है कि मौखिक सुनवाई भी उनकी संक्षिप्त प्रक्रिया है। उनकी गहन प्रक्रिया भी हो सकती है।
अभिषेक मनु सिंघवी: यह सब सामूहिक रूप से होता है जहां सभी को निलंबित त्रिशंकु अवस्था में रखा जाता है... यह सब एक छलावा है।
जस्टिस धूलिया: वे जो कर रहे हैं वह संविधान के तहत अनिवार्य है। आप यह नहीं कह सकते कि वे ऐसा कुछ कर रहे हैं जो संविधान के तहत अनिवार्य नहीं है। उन्होंने 2003 की तारीख तय की है क्योंकि गहन अभ्यास किया जा चुका है। उनके पास इसके आंकड़े हैं। चुनाव आयोग के पास इसके पीछे एक तर्क है।
वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल एस: इस प्रक्रिया का कानून के तहत कोई आधार नहीं है। यह मनमाना और भेदभावपूर्ण है। 2003 में उन्होंने जो कृत्रिम रेखा खींची है, वह कानून की अनुमति नहीं देती। संशोधन प्रक्रिया 1950 के अधिनियम में निर्धारित है।
पॉइंट के हिसाब से समझिए पॉइंट 1- निर्वाचन आयोग ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि उसे बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कुछ आपत्तियां हैं।
पाइंट 2- सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि निर्वाचन आयोग जो कर रहा है वह संविधान के तहत आता है और पिछली बार ऐसी कवायद 2003 में की गई थी।
पॉइंट 3- उच्चतम न्यायालय ने बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण में दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड पर विचार न करने को लेकर निर्वाचन आयोग से सवाल किया।
पॉइंट 4- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में नागरिकता के मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है, यह गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है।
पॉइंट 5- निर्वाचन आयोग ने न्यायालय से कहा कि संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत भारत में मतदाता बनने के लिए नागरिकता की जांच आवश्यक है।
पॉइंट 6- यदि आपको बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के अंतर्गत नागरिकता की जांच करनी है, तो आपको पहले ही कदम उठाना चाहिए था, अब थोड़ी देर हो चुकी है: उच्चतम न्यायालय ने निर्वाचन आयोग से कहा।
खबर अपडेट हो रही है
सुप्रीम कोर्ट में बिहार वोटर लिस्ट पुनरीक्षण पर सुनवाई
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की आंशिक कार्य दिवस पीठ को निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने बताया कि उन्हें याचिकाओं पर आपत्तियां हैं। द्विवेदी के अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता के. के. वेणुगोपाल और मनिंदर सिंह भी निर्वाचन आयोग की पैरवी की। एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण की अनुमति दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि समग्र एसआईआर के तहत लगभग 7.9 करोड़ नागरिक आएंगे और यहां तक कि मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड पर भी विचार नहीं किया जा रहा है।
पहले जानिए क्या हुआ बहस में
जस्टिस बागची: हमें यह देखना होगा कि क्या व्यापक अधिकार देने वाला वैधानिक प्रावधान इस कार्रवाई के लिए जगह देता है?
अभिषेक मनु सिंघवी: इस प्रक्रिया से मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता... शब्द ही अंतिम मतदाता सूची हैं। महोदय, इस बारे में कोई सुगबुगाहट तक नहीं हुई।
जस्टिस धूलिया: एक नियम कहता है कि मौखिक सुनवाई भी उनकी संक्षिप्त प्रक्रिया है। उनकी गहन प्रक्रिया भी हो सकती है।
अभिषेक मनु सिंघवी: यह सब सामूहिक रूप से होता है जहां सभी को निलंबित त्रिशंकु अवस्था में रखा जाता है... यह सब एक छलावा है।
जस्टिस धूलिया: वे जो कर रहे हैं वह संविधान के तहत अनिवार्य है। आप यह नहीं कह सकते कि वे ऐसा कुछ कर रहे हैं जो संविधान के तहत अनिवार्य नहीं है। उन्होंने 2003 की तारीख तय की है क्योंकि गहन अभ्यास किया जा चुका है। उनके पास इसके आंकड़े हैं। चुनाव आयोग के पास इसके पीछे एक तर्क है।
वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल एस: इस प्रक्रिया का कानून के तहत कोई आधार नहीं है। यह मनमाना और भेदभावपूर्ण है। 2003 में उन्होंने जो कृत्रिम रेखा खींची है, वह कानून की अनुमति नहीं देती। संशोधन प्रक्रिया 1950 के अधिनियम में निर्धारित है।
पॉइंट के हिसाब से समझिए पॉइंट 1- निर्वाचन आयोग ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि उसे बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कुछ आपत्तियां हैं।
पाइंट 2- सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि निर्वाचन आयोग जो कर रहा है वह संविधान के तहत आता है और पिछली बार ऐसी कवायद 2003 में की गई थी।
पॉइंट 3- उच्चतम न्यायालय ने बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण में दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड पर विचार न करने को लेकर निर्वाचन आयोग से सवाल किया।
पॉइंट 4- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में नागरिकता के मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है, यह गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है।
पॉइंट 5- निर्वाचन आयोग ने न्यायालय से कहा कि संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत भारत में मतदाता बनने के लिए नागरिकता की जांच आवश्यक है।
पॉइंट 6- यदि आपको बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के अंतर्गत नागरिकता की जांच करनी है, तो आपको पहले ही कदम उठाना चाहिए था, अब थोड़ी देर हो चुकी है: उच्चतम न्यायालय ने निर्वाचन आयोग से कहा।
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