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Success Story: अमेरिका में जमी-जमाई नौकरी पर लात मार सिर्फ 1 लाख से शुरू किया ये काम, अब करोड़ों का ब्रांड, लोग बोले-शाबाश!

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नई दिल्ली: पुणे की रहने वाली अमिता देशपांडे ने गजब की कामयाबी हासिल की है। उन्होंने सिर्फ 1 लाख रुपये के निवेश से कई करोड़ रुपये का इको-सोशल ब्रांड 'रीचरखा' (reCharkha) बनाया है। उनकी कंपनी प्लास्टिक के कचरे से बैग, पर्स और कई अन्य चीजें बनाती है। ये चीजें ग्रामीण कारीगर बनाते हैं। इससे पर्यावरण की रक्षा होती है। साथ ही ग्रामीण महिलाओं को रोजगार मिलता है। अमिता पहले IT इंजीनियर थीं। उन्होंने अमेरिका में जमी-जमाई नौकरी छोड़कर यह कारोबार करने का फैसला लिया। अमिता देशपांडे ने प्लास्टिक को दोबारा इस्तेमाल करने का नया तरीका खोजा। उन्होंने यह काम पर्यावरण और समाज को बेहतर बनाने के लिए किया। आइए, यहां अमिता देशपांडे की सफलता के सफर के बारे में जानते हैं।
2013 में नौकरी छोड़ आ गईं भारत image

अमिता देशपांडे 2013 में अमेरिका में अपनी अच्छी नौकरी छोड़कर भारत वापस आ गईं। उनका सपना था कि वह भारत में पर्यावरण और समाज के लिए कुछ करें। 2015 में अमिता ने अपने पति अभिषेक परांजपे के साथ मिलकर 'द इकोसोशल ट्राइब प्राइवेट लिमिटेड' नाम की कंपनी शुरू की। उन्होंने 1 लाख रुपये लगाए और 'रीचरखा' ब्रांड लॉन्च किया। रीचरखा प्लास्टिक के कचरे से अलग-अलग तरह के हस्तनिर्मित उत्पाद बनाता है। उनके पास बीच बैग, पोटली बैग, वॉलेट, लंच बैग, लॉन्ड्री बैग, जिम डफल बैग, योग मैट बैग, प्लांटर्स और कटलरी किट जैसे कई उत्पाद हैं। हर एक चीज 15 से 100 प्लास्टिक के टुकड़ों को इस्तेमाल करके बनाई जाती है। उनके पुणे और मुंबई में दो स्टोर हैं। इन्हें 'रीचरखा - द इकोसोशल ट्राइब' के नाम से जाना जाता है।


उत्पादों की कीमत ऐसे होती है तय image

अमिता देशपांडे के उत्पादों की कीमत 550 रुपये से 3,800 रुपये तक होती है। यह कीमत हर चीज को बनाने में लगने वाले समय, मेहनत और कौशल को दिखाती है। कंपनी धीरे-धीरे बढ़ी है। अब इसका टर्नओवर 2 करोड़ रुपये है। रीचरखा में 61 लोग काम करते हैं। इनमें 55 कारीगर शामिल हैं। ये कारीगर उनके दो कारखानों में काम करते हैं। पहला कारखाना महाराष्ट्र के पास दादरा-हवेली नगर में सिलवासा से लगभग 20 किलोमीटर दूर एक गांव में है। दूसरा कारखाना पुणे से 60 किलोमीटर दूर भोर तालुका में है। दोनों कारखाने मिलकर 2000 वर्ग फुट के क्षेत्र में फैले हुए हैं। शुरुआत में सिर्फ तीन लोगों ने मिलकर हाथ से काते हुए प्लास्टिक के धागे से चादरें बनाना सीखा। रीचरखा न केवल पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करता है, बल्कि ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने और हाथ से कताई और हथकरघों की विरासत को बनाए रखने में भी मदद करता है। इस्तेमाल होने वाला लगभग 90% कच्चा माल घरों और सोसायटियों से आता है।


जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा image

अमिता का जीवन उतार-चढ़ाव से भरा था। उनका जन्म महाराष्ट्र के लोनावाला के पास एक गांव में अजीत और अरुंधति देशपांडे के घर हुआ था। उन्होंने अपने पिता को पहली पीढ़ी के उद्यमी के रूप में मछली पकड़ने के जाल का निर्माण करते हुए देखा था। अमिता और उनकी छोटी बहन ने लोनावाला में अपने शुरुआती साल बिताए। इसके बाद अपने पिता के व्यवसाय के कारण पुणे और फिर सिलवासा चल गईं। अमिता को पर्यावरण संरक्षण का पहला अनुभव कक्षा 8 में एक राज्य-स्तरीय प्रतियोगिता के दौरान हुआ। उन्हें प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण पर चर्चा के दौरान ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना याद रहा, जिसे उस समय अक्सर अनदेखा किया जाता था।


लोकप्रिय हो गए उत्पाद image

इंटरनेट के बिना अमिता ने जानकारी जुटाने के लिए अपने छोटे शहर में सरकारी अधिकारियों का इंटरव्यू लिया। इसने उन्हें अपनी प्रस्तुति के लिए सांत्वना पुरस्कार दिलाया। 'बायोडिग्रेडेबल' और 'ठोस अपशिष्ट' जैसे शब्द उस पॉइंट से उनके लिए महत्वपूर्ण हो गए। कक्षा 10 के बाद अमिता जूनियर कॉलेज के लिए पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज लौट आईं। इसके बाद उन्होंने 2001 से 2005 तक पुणे में कमिंस कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग फॉर वुमेन से IT में विशेषज्ञता हासिल करते हुए इंजीनियरिंग की। ग्रेजुएशन के बाद अमिता 2005 से 2009 तक पुणे में KPIT में शामिल हुईं। वहां उन्होंने एक IT पेशेवर के रूप में काम किया। अपनी मुख्य नौकरी के अलावा, उन्होंने कंपनी की CSR टीम में भी सक्रिय भूमिका निभाई। कई पर्यावरणीय और सामाजिक कारणों के लिए स्वयंसेवा करना जारी रखा। रीचरखा के उत्पाद पर्यावरण के प्रति जागरूक ग्राहकों के बीच लोकप्रिय हो गए हैं। अमिता की कहानी हमें सिखाती है कि अगर हम चाहें तो कुछ भी कर सकते हैं। हमारे पास बस एक अच्छा विचार और कड़ी मेहनत करने की इच्छा होनी चाहिए।

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