पटना: महागठबंधन के निशाने पर इन दिनों पटना के वो शहरी क्षेत्र आ गए है जहां बीजेपी ने एक तरह से अपना अभेद्य किला बना लिया है। BJP ने जीत के इस इतिहास को ध्यान में रख कर उम्मीदवार चयन में काफी सावधानी भी बरती है। इस सावधानी में कहीं उम्मीदवार बदले तो कहीं दूसरे दल को ही आगे कर दिया गया। आइए जानते हैं कि पटना के आस पास के विधानसभा क्षेत्र में ऐसा क्या किया गया कि चुनावी जंग कांटे की हो गई।
कुम्हरार विधानसभा सीट
कुम्हरार विधानसभा पिछले कई चुनाव से बीजेपी के खाते में जाती रही है। 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के अरुण सिन्हा ने राजद के डॉक्टर धर्मेंद्र कुमार को पराजित किया था। अरुण सिन्हा को तब 81,400 वोट मिले थे और राजद के डॉक्टर धर्मेंद्र को 59,933 वोट मिले थे। इस बार बीजेपी ने कायस्थ के बदले वैश्य जाति के संजय गुप्ता को उतारा तो राजद ने अपना दावा छोड़ते हुए कांग्रेस को यह सीट दे दी। कांग्रेस ने महागठबंधन के रणनीतिकारों के सुझाव पर उम्मीदवार बदल डाले। कांग्रेस ने वोट के अनुसार दूसरी बड़ी जाति चंद्रवंशी से इंद्रजीत चंद्रवंशी को कुम्हरार विधानसभा से चुनावी जंग में उतारा है। चंद्रवंशी के साथ मुस्लिम और यादव जुट कर मतदान कर गए तो टक्कर कांटे की हो सकती है।
बांकीपुर विधानसभा सीट
बांकीपुर विधानसभा भी उन सीटों में शामिल रहा है जहां कुछ दशक से बीजेपी का कब्जा रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव मे बीजेपी के नितिन नवीन ने कांग्रेस के उम्मीदवार लव सिन्हा को हराया था। तब दोनों उम्मीदवार कायस्थ जाति के थे। नितिन नवीन को 83,068 वोट मिले थे। पर इस बार महागठबंधन ने बदलाव किया। राजद ने कांग्रेस को कुम्हरार दे दिया और बांकीपुर ले लिया। राजद ने परिवर्तन करते हुए यहां से तेली जाति की उम्मीदवार रेखा गुप्ता को उतारा है। यहां भी राजद ने तेली के साथ एमवाई समीकरण के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की चाल चली है।
पटना साहिब विधानसभा
पटना साहिब विधानसभा सीट पर तो पूरा का पूरा चुनावी समा ही बदल गया है। कई बार के भाजपा विधायक नंदकिशोर यादव इस जंग से किनारे हो गए हैं। 2020 में बीजेपी के नंदकिशोर यादव ने राजद के संतोष मेहता को हराया था। इस बार राजद ने चुनावी जंग में कांग्रेस को उतारा है। कांग्रेस ने यहां काफी शिक्षित उम्मीदवार के रूप में शशांक शेखर को उतारा है। शशांक शेखर का बैकग्राउंड राजनीति से रहा है। शशांक शेखर के दादा रामलखन सिंह यादव पटना साहिब से तीन बार चुनाव लड़ चुके हैं, दो बार सीपीआई से और एक बार जनता दल से। 1995 में रामलखन सिंह यादव जनता दल से लड़े थे। तब नंदकिशोर यादव ने लगभग 5,500 वोटों से जीत हासिल की थी। इस बार बीजेपी ने यादव का साथ छोड़ा तो कांग्रेस ने यादव जाति के उम्मीदवार को उतार कर चुनाव को रोचक बना डाला है।
कुम्हरार विधानसभा सीट
कुम्हरार विधानसभा पिछले कई चुनाव से बीजेपी के खाते में जाती रही है। 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के अरुण सिन्हा ने राजद के डॉक्टर धर्मेंद्र कुमार को पराजित किया था। अरुण सिन्हा को तब 81,400 वोट मिले थे और राजद के डॉक्टर धर्मेंद्र को 59,933 वोट मिले थे। इस बार बीजेपी ने कायस्थ के बदले वैश्य जाति के संजय गुप्ता को उतारा तो राजद ने अपना दावा छोड़ते हुए कांग्रेस को यह सीट दे दी। कांग्रेस ने महागठबंधन के रणनीतिकारों के सुझाव पर उम्मीदवार बदल डाले। कांग्रेस ने वोट के अनुसार दूसरी बड़ी जाति चंद्रवंशी से इंद्रजीत चंद्रवंशी को कुम्हरार विधानसभा से चुनावी जंग में उतारा है। चंद्रवंशी के साथ मुस्लिम और यादव जुट कर मतदान कर गए तो टक्कर कांटे की हो सकती है।
बांकीपुर विधानसभा सीट
बांकीपुर विधानसभा भी उन सीटों में शामिल रहा है जहां कुछ दशक से बीजेपी का कब्जा रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव मे बीजेपी के नितिन नवीन ने कांग्रेस के उम्मीदवार लव सिन्हा को हराया था। तब दोनों उम्मीदवार कायस्थ जाति के थे। नितिन नवीन को 83,068 वोट मिले थे। पर इस बार महागठबंधन ने बदलाव किया। राजद ने कांग्रेस को कुम्हरार दे दिया और बांकीपुर ले लिया। राजद ने परिवर्तन करते हुए यहां से तेली जाति की उम्मीदवार रेखा गुप्ता को उतारा है। यहां भी राजद ने तेली के साथ एमवाई समीकरण के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की चाल चली है।
पटना साहिब विधानसभा
पटना साहिब विधानसभा सीट पर तो पूरा का पूरा चुनावी समा ही बदल गया है। कई बार के भाजपा विधायक नंदकिशोर यादव इस जंग से किनारे हो गए हैं। 2020 में बीजेपी के नंदकिशोर यादव ने राजद के संतोष मेहता को हराया था। इस बार राजद ने चुनावी जंग में कांग्रेस को उतारा है। कांग्रेस ने यहां काफी शिक्षित उम्मीदवार के रूप में शशांक शेखर को उतारा है। शशांक शेखर का बैकग्राउंड राजनीति से रहा है। शशांक शेखर के दादा रामलखन सिंह यादव पटना साहिब से तीन बार चुनाव लड़ चुके हैं, दो बार सीपीआई से और एक बार जनता दल से। 1995 में रामलखन सिंह यादव जनता दल से लड़े थे। तब नंदकिशोर यादव ने लगभग 5,500 वोटों से जीत हासिल की थी। इस बार बीजेपी ने यादव का साथ छोड़ा तो कांग्रेस ने यादव जाति के उम्मीदवार को उतार कर चुनाव को रोचक बना डाला है।
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