नई दिल्लीः एम्स में प्रशासन और डॉक्टरों के बीच तनाव गहराता जा रहा है। एम्स के फैकल्टी असोसिएशन ( FAIMS ) ने आरोप लगाया है कि हाल के दिनों में प्रशासनिक फैसले बिना तय नियमों और संस्थागत प्रक्रिया के लिए जा रहे हैं। असोसिएशन का कहना है कि इससे डॉक्टरों की पेशेवर गरिमा, संस्थान का माहौल और एम्स की देश-विदेश में बनी प्रतिष्ठा पर असर पड़ रहा है। स्थिति यह है कि कई अनुभवी डॉक्टर यहां से जाने का मन बना रहे हैं और कई तो छोड़ चुके हैं।
खास सर्जन को हटाए जाने से विवाद सामने आयादरअसल, पूरे मामले को लेकर फैकल्टी असोसिएशन की तरफ से जारी प्रेस रेलीज के अनुसार, विवाद उस समय बढ़ा जब एक वरिष्ठ और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त कार्डियक सर्जन को अचानक एचओडी पद से हटा दिया गया। यह वही डॉक्टर है, जिन्होंने 2021 में पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद का बाईपास ऑपरेशन किया था। FAIMS का कहना है कि यह कार्रवाई बिना शो-कॉज नोटिस, बेना प्राथमिक निष्कर्ष और बिना आंतरिक शकायत समिति (ICC) की अंतिम सिफारिश से की गई। असोसिएशन के अनुसार, यह सीधे एम्स के नियमों और सिद्धांतों के खिलाफ है।
ये सिर्फ एक डॉक्टर का मामला नहींFAIMS ने कहा कि अगर आज प्रशासनिक दखल बढ़ने दिया गया तो कल किसी भी डॉक्टर की पहचान और मेहनत दांव पर लग सकती है। यह पूरे संस्थान की नैतिक और वर्क कल्चर की लड़ाई है। वहीं, संबंधित सर्जन अब भी चुप्पी बनाए रखे हुए हैं, उनका कहना है कि मैंने अपना जीवन मरीजों और मेडिकल शिक्षा को दिया है। मुझे न्याय पर भरोसा है। असोसिएशन ने एम्स के प्रेसिडेंट जेपी नड्डा और डायरेक्टर डॉ. एम श्रीनिवास से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की।
मामला 'बाहर' ले जाना भी विवाद की वजहफैकल्टी का आरोप है कि नर्सिंग यूनियन ने मामले को एम्स की अंदरूनी व्यवस्था में सुलझाने के बजाय सीधे स्वास्थ्य मंत्रालय, पीएमओ और अन्य एजेंसियों तक पहुंचा दिया। संघ का कहना है कि इससे जांच प्रक्रिया प्रभावित होती है और बिना वजह हॉस्पिटल माहौल तनावपूर्ण बनता है। FAIMS का कहना है कि ICC रिपोर्ट आने के बावजूद प्रशासन ने फैसले में देरी की और बार-बार कानूनी राय लेने की बात कहकर मामला टालता रहा। इससे विभागीय कामकाज, रिसर्च और मरीजों की देखभाल प्रभावित हो रही है। इस मामले को लेकर एम्स के फैकल्टी असोसिएशन, ऑफिसर्स असोसिएशन, कर्मचारी यूनियन और एलाइड हेल्थ प्रफेशनल्स एक साथ आए। इन संगठनों ने प्रशासन के सामने ये मांगें रखी हैं।
वर्क कल्चर पर उठ रहे हैं सवालजो एम्स पूरे देश के लिए मेडिकल इंस्टिट्यूट, रिसर्च और इलाज का मार्गदर्शक है। आज उसके ऊपर ही सवाल उठाए जा रहे हैं। बड़ी बात यह है कि यह सवाल कोई और नहीं, सालों से यहां काम करने वाले फैकल्टियों ने अपनी पीड़ा जाहिर की है। पिछले तीन साल में 50 से ज्यादा फैकल्टी एम्स छोड़ चुके हैं, जिसमें एक दर्जन से ज्यादा तो अपने विभाग के एचओडी थे। सूत्रों का कहना है कि एम्स में काम करने वाले डॉक्टर का अपने विभाग के एचओडी बनना सपना होता है, लेकिन अभी इस पद पर होने के बाद भी एम्स छोड़ देना, सवाल तो खड़ा करता है।
खास सर्जन को हटाए जाने से विवाद सामने आयादरअसल, पूरे मामले को लेकर फैकल्टी असोसिएशन की तरफ से जारी प्रेस रेलीज के अनुसार, विवाद उस समय बढ़ा जब एक वरिष्ठ और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त कार्डियक सर्जन को अचानक एचओडी पद से हटा दिया गया। यह वही डॉक्टर है, जिन्होंने 2021 में पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद का बाईपास ऑपरेशन किया था। FAIMS का कहना है कि यह कार्रवाई बिना शो-कॉज नोटिस, बेना प्राथमिक निष्कर्ष और बिना आंतरिक शकायत समिति (ICC) की अंतिम सिफारिश से की गई। असोसिएशन के अनुसार, यह सीधे एम्स के नियमों और सिद्धांतों के खिलाफ है।
ये सिर्फ एक डॉक्टर का मामला नहींFAIMS ने कहा कि अगर आज प्रशासनिक दखल बढ़ने दिया गया तो कल किसी भी डॉक्टर की पहचान और मेहनत दांव पर लग सकती है। यह पूरे संस्थान की नैतिक और वर्क कल्चर की लड़ाई है। वहीं, संबंधित सर्जन अब भी चुप्पी बनाए रखे हुए हैं, उनका कहना है कि मैंने अपना जीवन मरीजों और मेडिकल शिक्षा को दिया है। मुझे न्याय पर भरोसा है। असोसिएशन ने एम्स के प्रेसिडेंट जेपी नड्डा और डायरेक्टर डॉ. एम श्रीनिवास से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की।
मामला 'बाहर' ले जाना भी विवाद की वजहफैकल्टी का आरोप है कि नर्सिंग यूनियन ने मामले को एम्स की अंदरूनी व्यवस्था में सुलझाने के बजाय सीधे स्वास्थ्य मंत्रालय, पीएमओ और अन्य एजेंसियों तक पहुंचा दिया। संघ का कहना है कि इससे जांच प्रक्रिया प्रभावित होती है और बिना वजह हॉस्पिटल माहौल तनावपूर्ण बनता है। FAIMS का कहना है कि ICC रिपोर्ट आने के बावजूद प्रशासन ने फैसले में देरी की और बार-बार कानूनी राय लेने की बात कहकर मामला टालता रहा। इससे विभागीय कामकाज, रिसर्च और मरीजों की देखभाल प्रभावित हो रही है। इस मामले को लेकर एम्स के फैकल्टी असोसिएशन, ऑफिसर्स असोसिएशन, कर्मचारी यूनियन और एलाइड हेल्थ प्रफेशनल्स एक साथ आए। इन संगठनों ने प्रशासन के सामने ये मांगें रखी हैं।
वर्क कल्चर पर उठ रहे हैं सवालजो एम्स पूरे देश के लिए मेडिकल इंस्टिट्यूट, रिसर्च और इलाज का मार्गदर्शक है। आज उसके ऊपर ही सवाल उठाए जा रहे हैं। बड़ी बात यह है कि यह सवाल कोई और नहीं, सालों से यहां काम करने वाले फैकल्टियों ने अपनी पीड़ा जाहिर की है। पिछले तीन साल में 50 से ज्यादा फैकल्टी एम्स छोड़ चुके हैं, जिसमें एक दर्जन से ज्यादा तो अपने विभाग के एचओडी थे। सूत्रों का कहना है कि एम्स में काम करने वाले डॉक्टर का अपने विभाग के एचओडी बनना सपना होता है, लेकिन अभी इस पद पर होने के बाद भी एम्स छोड़ देना, सवाल तो खड़ा करता है।
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