नई दिल्ली/दुशांबे: भारतीय सेना ने ताजिकिस्तान के एक रणनीतिक एयरबेस पर अपनी मौजूदगी खत्म कर दी है। भारत ने इस एयरबेस का इस्तेमाल 1990 के दशक में अफगानिस्तान में नॉर्दन अलायंस का समर्थन करने के लिए किया था। भारत ने उस वक्त इसी एयरबेस के जरिए नॉर्दन अलायंस के प्रमुख और पंजशीर के शेर के नाम से प्रसिद्ध अहमद शाह मसूद की जान बचाई थी। रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने वर्ष 2022 में ही ताजिकिस्तान के इस एयरबेस से अपने सैनिकों और उपकरणों को वापस बुला लिया था, लेकिन इसका खुलासा हाल में ही हुआ है। हालांकि, भारत सरकार की ओर से इस मुद्दे पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।
चार साल पहले खत्म हो गया था समझौता
रिपोर्ट के अनुसार,राजधानी दुशांबे से लगभग 10 किलोमीटर पश्चिम में स्थित आयनी एयरबेस (फरखोर एयरबेस) के विकास और संयुक्त संचालन के लिए भारत और ताजिकिस्तान के बीच हुआ समझौता लगभग चार साल पहले समाप्त हो गया था। इसके बाद ताजिकिस्तान ने इस समझौते को आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया था। ऐसे में भारत को आयनी एयरबेस से अपने ऑपरेशन को बंद करना पड़ा। हालांकि, भारत यहां से गैर सैन्य ऑपरेशनों को ही अंजाम दे रहा था, जिनमें मेडिकल और निगरानी गतिविधियां शामिल थीं।
भारत ने ताजिकिस्तान में एयरबेस पर खर्च किए थे 10 करोड़ डॉलर
पिछले दो दशकों में भारत ने ताजिकिस्तान के आयनी एयरबेस के डेवलपमेंट और अपग्रेडेशन पर लगभग 10 करोड़ डॉलर खर्च किए हैं। यह एयरबेस मूल रूप से सोवियत काल में बनाया गया था और सोवियत संघ के विघटन के बाद जीर्ण-शीर्ण हो गया था। इसके अपग्रेडेशन में रनवे को मजबूत और लंबा किया गया, ताकि यहां से लड़ाकू विमान और भारी ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उड़ान भर सकें। इनमें मजबूत शेल्टरों, फ्यूल डिपो और एक एयर ट्रैफिक कंट्रो फैसिलिटी का निर्माण भी शामिल था।
भारत ने अयनी एयरबेस पर एसयू-30 को भी किया था तैनात
भारत ने 2014 के बाद अयनी एयरबेस पर कुछ सुखोई-30एमकेआई लड़ाकू विमानों को भी अस्थायी रूप से तैनात किया था। इसके अलावा भारत ने सैन्य कर्मियों की एक टुकड़ी भी तैनात की थी, जिनमें से अधिकांश थल सेना और वायु सेना के सैनिक थे। कई बार, 200 तक भारतीय कर्मियों को एयरबेस पर तैनात किया जाता था। सूत्रों के अनुसार, भारतीय कर्मियों और सभी उपकरणों को 2022 तक वापस बुला लिया गया था।
भारत ने यहीं किया था अहमद शाह मसूद का इलाज
शुरुआती दौर में, अयनी एयरबेस पर उपस्थिति के पीछे भारत का मुख्य उद्देश्य अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ लड़ने वाले नॉर्दन अलायंस की मदद करना था। भारत ने यहां से नॉर्दन अलायंस को जरूरी साजो-सामान की आपूर्ति की थी। इसके साथ ही, भारत ने इस एयरबेस से हवाई सहायता प्रदान की और जरूरत पड़ने पर निगरानी भी की। भारत ने लड़ाई में घायल हुए नॉर्दन अलायंस के लड़ाकों के इलाज के लिए ताजिकिस्तान के फरखोर में एक सैन्य अस्पताल स्थापित किया था। अमेरिका में 9/11 के आतंकवादी हमलों से दो दिन पहले एक हत्या के प्रयास में घातक रूप से घायल होने के बाद, नॉर्दन अलायंस के अफगान ताजिक नेता अहमद शाह मसूद को इसी अस्पताल में ले जाया गया था।
भारत के लिए कितना बड़ा झटका
आयनी एयरबेस से भारत की वापसी एक बड़ा झटका माना जा रहा है। यह भारत के विदेशी सैन्य अड्डों में से एक था। भारत यहां से न केवल अफगानिस्तान की निगरानी करता था, बल्कि पाकिस्तान और चीन पर भी नजर बनाए रखता था। यह एयरबेस अफगानिस्तान के वखान कॉरिडोर से केवल 20 किलोमीटर की दूरी पर है, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से लगती है। कभी यह कॉरिडोर भारत और अफगानिस्तान के बीच जमीनी पहुंच प्रदान करता था। ऐसे में इस एयरबेस से वापसी से भारत की एक बड़ी निगरानी क्षमता खत्म हुई है। हालांकि, भारत इसकी भरपाई सैटेलाइटों से कर सकता है, जो आसमान से निगरानी अभियानों को अंजाम दे सकते हैं।
चार साल पहले खत्म हो गया था समझौता
रिपोर्ट के अनुसार,राजधानी दुशांबे से लगभग 10 किलोमीटर पश्चिम में स्थित आयनी एयरबेस (फरखोर एयरबेस) के विकास और संयुक्त संचालन के लिए भारत और ताजिकिस्तान के बीच हुआ समझौता लगभग चार साल पहले समाप्त हो गया था। इसके बाद ताजिकिस्तान ने इस समझौते को आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया था। ऐसे में भारत को आयनी एयरबेस से अपने ऑपरेशन को बंद करना पड़ा। हालांकि, भारत यहां से गैर सैन्य ऑपरेशनों को ही अंजाम दे रहा था, जिनमें मेडिकल और निगरानी गतिविधियां शामिल थीं।
भारत ने ताजिकिस्तान में एयरबेस पर खर्च किए थे 10 करोड़ डॉलर
पिछले दो दशकों में भारत ने ताजिकिस्तान के आयनी एयरबेस के डेवलपमेंट और अपग्रेडेशन पर लगभग 10 करोड़ डॉलर खर्च किए हैं। यह एयरबेस मूल रूप से सोवियत काल में बनाया गया था और सोवियत संघ के विघटन के बाद जीर्ण-शीर्ण हो गया था। इसके अपग्रेडेशन में रनवे को मजबूत और लंबा किया गया, ताकि यहां से लड़ाकू विमान और भारी ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उड़ान भर सकें। इनमें मजबूत शेल्टरों, फ्यूल डिपो और एक एयर ट्रैफिक कंट्रो फैसिलिटी का निर्माण भी शामिल था।
भारत ने अयनी एयरबेस पर एसयू-30 को भी किया था तैनात
भारत ने 2014 के बाद अयनी एयरबेस पर कुछ सुखोई-30एमकेआई लड़ाकू विमानों को भी अस्थायी रूप से तैनात किया था। इसके अलावा भारत ने सैन्य कर्मियों की एक टुकड़ी भी तैनात की थी, जिनमें से अधिकांश थल सेना और वायु सेना के सैनिक थे। कई बार, 200 तक भारतीय कर्मियों को एयरबेस पर तैनात किया जाता था। सूत्रों के अनुसार, भारतीय कर्मियों और सभी उपकरणों को 2022 तक वापस बुला लिया गया था।
भारत ने यहीं किया था अहमद शाह मसूद का इलाज
शुरुआती दौर में, अयनी एयरबेस पर उपस्थिति के पीछे भारत का मुख्य उद्देश्य अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ लड़ने वाले नॉर्दन अलायंस की मदद करना था। भारत ने यहां से नॉर्दन अलायंस को जरूरी साजो-सामान की आपूर्ति की थी। इसके साथ ही, भारत ने इस एयरबेस से हवाई सहायता प्रदान की और जरूरत पड़ने पर निगरानी भी की। भारत ने लड़ाई में घायल हुए नॉर्दन अलायंस के लड़ाकों के इलाज के लिए ताजिकिस्तान के फरखोर में एक सैन्य अस्पताल स्थापित किया था। अमेरिका में 9/11 के आतंकवादी हमलों से दो दिन पहले एक हत्या के प्रयास में घातक रूप से घायल होने के बाद, नॉर्दन अलायंस के अफगान ताजिक नेता अहमद शाह मसूद को इसी अस्पताल में ले जाया गया था।
भारत के लिए कितना बड़ा झटका
आयनी एयरबेस से भारत की वापसी एक बड़ा झटका माना जा रहा है। यह भारत के विदेशी सैन्य अड्डों में से एक था। भारत यहां से न केवल अफगानिस्तान की निगरानी करता था, बल्कि पाकिस्तान और चीन पर भी नजर बनाए रखता था। यह एयरबेस अफगानिस्तान के वखान कॉरिडोर से केवल 20 किलोमीटर की दूरी पर है, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से लगती है। कभी यह कॉरिडोर भारत और अफगानिस्तान के बीच जमीनी पहुंच प्रदान करता था। ऐसे में इस एयरबेस से वापसी से भारत की एक बड़ी निगरानी क्षमता खत्म हुई है। हालांकि, भारत इसकी भरपाई सैटेलाइटों से कर सकता है, जो आसमान से निगरानी अभियानों को अंजाम दे सकते हैं।
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