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भगवान श्री कृष्ण का जन्म: अद्भुत घटनाओं से भरी रात

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भगवान श्री कृष्ण का जन्म


ज्योतिष: भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कंस की जेल में रोहिणी नक्षत्र के समय हुआ था। इसे श्री कृष्ण जन्माष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। जहां भगवान राम ने मर्यादा का पालन किया, वहीं श्री कृष्ण का जीवन संघर्षों से भरा रहा, जिसके कारण उन्हें लीला पुरुषोत्तम कहा जाता है।


श्री कृष्ण के जन्म के साथ ही उनके जीवन में संघर्षों की शुरुआत हुई, लेकिन उन्होंने कभी भी चिंता नहीं की। वे हमेशा मुस्कुराते हुए बंसी बजाते रहे और दूसरों को भी मुस्कुराते हुए समस्याओं का सामना करने की प्रेरणा देते थे। उनके जन्म की रात कुछ अद्भुत घटनाएं घटीं।


जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ, तब योगमाया ने जेल के सभी पहरेदारों को गहरी नींद में सुला दिया। इसके बाद जेल का दरवाजा अपने आप खुल गया, जबकि बाहर मूसलधार बारिश हो रही थी।


वसुदेव जी ने नन्हे कृष्ण को एक टोकरी में रखा और भारी बारिश के बीच जेल से बाहर निकल गए। वे मथुरा से नंदगांव पहुंचे, लेकिन इस घटना का उन्हें कोई ध्यान नहीं था।


श्री कृष्ण के जन्म के समय यमुना नदी उफान पर थी। वसुदेव जी ने कृष्ण को टोकरी में लेकर यमुना में प्रवेश किया और चमत्कार हुआ। यमुना के जल ने कृष्ण के चरणों को छूकर दो हिस्सों में बंट गया, जिससे वसुदेव जी को गोकुल जाने का रास्ता मिल गया।


वसुदेव जी ने कान्हा को गोकुल में अपने मित्र नंद गोपाल के पास पहुंचाया। वहां नंद की पत्नी यशोदा ने एक कन्या को जन्म दिया। वसुदेव जी ने श्री कृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को अपने साथ वापस ले आए।


कथा के अनुसार, नंद जी को पहले से ही पता था कि वसुदेव जी कृष्ण को लेकर आ रहे हैं। उन्होंने दरवाजे पर खड़े होकर उनका इंतजार किया। जैसे ही वसुदेव जी आए, उन्होंने अपने घर जन्मी कन्या को गोद में लेकर वसुदेव जी को दे दिया। हालांकि, कहा जाता है कि इस घटना के बाद नंद जी और वसुदेव जी दोनों ही सब कुछ भूल गए थे। यह सब योगमाया के प्रभाव से हुआ।


इसके बाद वसुदेव जी ने नंद बाबा के घर जन्मी कन्या यानी योगमाया को लेकर चुपचाप मथुरा की जेल में वापस लौट गए। जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म की खबर मिली, तो वह कारागार में पहुंचा।


उसने नवजात कन्या को पत्थर पर पटकने का प्रयास किया, लेकिन वह कन्या कंस के हाथों से छूटकर आकाश में चली गई और अपना दिव्य स्वरूप दिखाते हुए कंस के वध की भविष्यवाणी की। इसके बाद वह भगवती विन्ध्याचल पर्वत पर लौट गईं और आज भी उनकी पूजा की जाती है।


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