इंटरनेट डेस्क। छठ पर्व मुख्य रूप से भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़े श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाने वाला त्योहार है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की पूजा के लिए समर्पित है और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (नहाय-खाय) से शुरू होकर चार दिन तक चलता है। चारों दिनों में व्रती नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उदय अर्घ्य की विधि का पालन करते हैं, जो उन्हें अनुशासन, संयम और भक्ति की शिक्षा देती है।
छठ पूजा का महत्व
छठ पर्व सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, इसे करने से न केवल स्वास्थ्य, समृद्धि और लंबी उम्र मिलती है, बल्कि परिवार में खुशहाली और संतोष भी बढ़ता है, चारों दिन की विधि व्रती को अनुशासन, संयम, भक्ति और आत्मनिरीक्षण का संदेश देती है।
छठ पर्व के चार दिन नहाय-खाय से उदय अर्घ्य तक विधि और महत्व
नहाय-खाय (पहला दिन 25 अक्टूबर)
छठ पर्व का पहला दिन ‘नहाय-खाय’ के नाम से जाना जाता है
इस दिन व्रती स्नान करके शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं
भोजन में आमतौर पर सादा चावल, दाल और फल शामिल होते हैं
खरना (दूसरा दिन 26 अक्टूबर)
छठ पर्व का दूसरा दिन ‘खरना’ के नाम से जाना जाता है
इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जल व्रत रखते हैं, भोजन और पानी त्यागते हैं
शाम को व्रती खीर, फल और मीठे प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोलते हैं
साथ ही साथ इस प्रसाद को परिवार के सदस्यों को भी दिया जाता है
इसके बाद फिर से निर्जल व्रत श्रद्धा और भक्ति के साथ जारी रहता है
संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन 27 अक्टूबर)
तीसरे दिन व्रती नदी, तालाब या जलाशय के किनारे जाकर अर्घ्य देते हैं
यह सूर्य को दिन में दिया जाने वाला पहला अर्घ्य माना जाता है
व्रती शाम से रात तक निर्जल व्रत रखते हुए भक्ति में लीन रहती हैं
उदय या पारण (चौथा दिन 28 अक्टूबर)
चौथे और अंतिम दिन व्रती सूर्य उदय के समय नदी या तालाब के किनारे खड़े होते हैं,
इस दिन व्रत का पारण किया जाता है और शरीर तथा मन को शुद्धि प्राप्त होती है
पारण के बाद व्रती को ऊर्जा, आशीर्वाद और आध्यात्मिक संतोष का अनुभव होता है
pc- republicbharat.com
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