तीन साल पहले हिमालय के आसमान में 105 ऊंचे खंभे टिमटिमाते देखे गए थे, जिन्हें दो चीनी खगोल फोटोग्राफरों- एंजेल एन और शुचांग डोंग ने कैमरे में कैद किया था। 19 मई 2022 को हिमालय पर चमकने वाली रोशनी की लकीर क्या थी और इसका रहस्य क्या था, वैज्ञानिकों ने इसका खुलासा किया है।
कहां दिखीं 105 लाल रोशनी की लकीरें?दक्षिणी तिब्बती पठार के ऊपर पवित्र पुमोयोंगचुओ झील के पास आसमान में 105 ऊंचे खंभे टिमटिमाते नजर आए। सोशल मीडिया पर हर कोई आसमान का यह अद्भुत नजारा देखकर हैरान रह गया।
वैज्ञानिकों ने बताया रहस्यवैज्ञानिकों ने हिमालय के आसमान में दिख रही रोशनी को 'लाल स्प्राइट्स' कहा है। यह एक तरह की बिजली है जो बहुत दुर्लभ होती है। आमतौर पर यह बादलों के ऊपर कहीं होती है, धरती की सतह से 65-90 किलोमीटर की ऊंचाई पर। यह आमतौर पर लाल, क्षणिक रोशनी की चमक होती है। जो एक तंबू के आकार में दिखाई देती है। कभी-कभी इसके ऊपरी हिस्से पर हरी रेखाएं भी दिखाई देती हैं। चीनी खगोल फोटोग्राफरों ने न केवल 105 लाल स्प्राइट की तस्वीरें लीं। साथ ही 6 सेकेंडरी जेट और चार 'घोस्ट स्प्राइट' भी रिकॉर्ड किए। बताया जा रहा है कि एशिया महाद्वीप पर पहली बार घोस्ट स्प्राइट देखे गए हैं।
कैसे बनी ये रोशनी?वैज्ञानिकों ने शोध में पाया कि ये स्प्राइट बेहद शक्तिशाली बिजली के हमलों के कारण बने थे, जो बादलों के ऊपर से जमीन तक पहुंचे थे। बिजली एक बड़े तूफान सिस्टम से उत्पन्न हुई थी, जिसे मेसोस्केल कन्वेक्टिव कॉम्प्लेक्स भी कहा जाता है। जो गंगा के मैदानों से लेकर तिब्बती पठार तक 2 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र को कवर करता है। स्प्राइट के कारण करंट ज्यादातर सकारात्मक था और इसका पीक करंट 50 किलोएम्पियर से भी अधिक था। अमेरिका के ग्रेट प्लेन्स और यूरोप के तटीय क्षेत्रों में बड़े तूफानों में ऐसी बिजली आमतौर पर देखी जाती है।
वैज्ञानिकों ने कैसे पता लगाया?हिमालय के आसमान में क्या दिख रहा है, इसका पता लगाना आसान नहीं था। लेकिन, वैज्ञानिकों ने करीब तीन साल तक अध्ययन कर रहस्यमयी चीज का पता लगा लिया। वैज्ञानिकों ने इसके लिए नई तकनीक का इस्तेमाल किया। सैटेलाइट की चाल और आसमान में तारों की स्थिति के हिसाब से वीडियो फ्रेम को एडजस्ट किया जाता है। इससे वैज्ञानिकों को स्प्राइट्स के पीछे बिजली की घटना की पहचान करने में मदद मिली। इससे करीब 70 फीसदी स्प्राइट्स को उनके वास्तविक बिजली के हमलों से जोड़ा जा सका। यानी असली स्रोत का पता चल सका। वैज्ञानिकों ने तीन साल बाद इस रहस्य को सुलझा लिया है। इससे उन्हें भविष्य में वायुमंडल और धरती के बीच ऊर्जा की प्रक्रिया को समझने में मदद मिलेगी।
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