भारत में माता के कई चमत्कारी और रहस्यमयी मंदिर हैं। यहां भक्तों को मां के अद्भुत चमत्कार देखने को मिलते हैं। माता का एक ऐसा ही चमत्कारी मंदिर बिहार के कैमूर जिले में भी है। माता के इस मंदिर में भक्तों को अद्भुत चमत्कार देखने को मिलते हैं। माता के इस मंदिर में बकरे की बलि दी जाती है लेकिन बकरा मरता नहीं है। बलिदान के कुछ समय बाद, वह जीवित हो जाता है और स्वयं मंदिर से बाहर चला जाता है।माता का यह चमत्कारी मंदिर मुंडेश्वरी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर कैमूर पर्वत की पहाड़ी पर लगभग 600 फीट से अधिक ऊंचाई पर है। जानकारी के मुताबिक, यह मं हजारों साल पुराना है। इतिहासकारों का मानना है कि इसका निर्माण 108 ईस्वी में शक काल के दौरान हुआ था। भगवान शिव और देवी शक्ति को समर्पित, यह प्राचीन मुंडेश्वरी देवी मंदिर बिहार के कैमूर जिले के कौरा क्षेत्र में स्थित है।
माता के इस मंदिर में बकरे की बलि देने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। हालाँकि, यहाँ बलि चढ़ाने की परंपरा अन्य मंदिरों से बिल्कुल अलग है। दरअसल, इस मंदिर में जब बकरे की बलि दी जाती है तो उसकी जान नहीं ली जाती है। यहां अलग ढंग से बकरे की बलि दी जाती है. खास बात यह है कि यहां बलि की प्रक्रिया भक्तों के सामने की जाती है।यहां जब बकरे की बलि देनी होती है तो उसे मां की मूर्ति के सामने लाया जाता है। इसके बाद पुजारी उसे वहां लिटाकर उसके ऊपर कुछ अभिमंत्रित चावल फेंकता है। इस चावल को माता की मूर्ति से स्पर्श कराकर बकरे के ऊपर डाला जाता है। माता की मूर्ति से स्पर्श कराए गए चावल जैसे ही बकरी के ऊपर फेंके जाते हैं तो बकरी मर जाती है।
देखकर ऐसा लगता है मानो उनमें जान ही नहीं बची है. उसमें बिल्कुल कोई हलचल नहीं थी. इसके बाद फिर से बकरे के ऊपर उसी तरह चावल फेंके जाते हैं और मां की जयकार की जाती है. मां के जयकारा लगाते ही बकरी तुरंत उठ जाती है. बलि की प्रक्रिया पूरी होने के बाद बकरे को छोड़ दिया जाता है.माता के इस चमत्कारी मंदिर के बारे में एक कहानी प्रचलित है। मान्यता है कि माता चंड-मुंड नामक राक्षसों का अंत करने के लिए यहीं प्रकट हुई थीं। जब माता ने चंड को मार डाला तो मुंड यहीं की पहाड़ियों में आकर छिप गया। इसके बाद मां ने उसे भी मार डाला. इसके साथ ही मां मुंडेश्वरी मंदिर में एक प्राचीन पंचमुखी शिवलिंग की मूर्ति भी है, जो दिन में तीन बार अपना रंग बदलती है। लोगों का कहना है कि शिवलिंग कब अपना रंग बदल लेता है, यह तो देखने से ही पता नहीं चलता।
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