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कथित सांप्रदायिक हिंसा के शिकार आदिवासियों की याचिका पर हाइकोर्ट में हुई सुनवाई, राज्य सरकार ने कहा जांच के लिए एसआईटी गठित

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बिलासपुर, 31 मई . बस्तर के दक्षिणी भाग सुकमा में कथित साम्प्रदायिक हिंसा का शिकार हुए 20 स्थानीय निवासियों की याचिका हाईकोर्ट ने शनिवार काे खारिज कर दी. रिट याचिका आपराधिक में शासन से मुआवजे सहित अन्य मांगों और आयोग गठित कर जांच की मांग की थी. वहीं इस मामले में अपराधिक मामला दर्ज नहीं होना बताया था. कोर्ट ने इस याचिका की गंभीरता से सुनने के बाद याचिकाकर्ताओं को अपनी शिकायतों के निवारण के लिए उचित मंच के समक्ष अधिकारियों से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी है. वहीं हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया है. दरअसल आदिवासी ईसाई समुदाय से आने वाले कोंटा निवासी पोडियम संकर कुंजाम कमला, लेकेम कामू माडवी नागेश , माडवी रावे कदिती लक्ष्मी समेत 20 लोगों ने याचिका दायर की थी. इस याचिका में बताया कि वे सब छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के गांवों में लक्षित सांप्रदायिक हिंसा का शिकार हुए हैं. इसमें हमला कर इनके घरों और संपत्ति को नष्ट किया गया.

याचिकाकर्ताओं के अनुसार पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को बार बार मौखिक और लिखित शिकायतों के बावजूद, कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई और राज्य सुरक्षा प्रदान करने और निष्पक्ष जांच करने या पीड़ितों का पुनर्वास करने में भी विफल रहा. वहीं राज्य की ओर से उपस्थित अतिरिक्त महाधिवक्ता ने निर्देशानुसार कहा कि कुछ याचिकाकर्ताओं द्वारा एक घटना के लिए दर्ज की गई शिकायत में, एफआईआर पहले ही दर्ज की जा चुकी है और मामले की जांच चल रही है. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने कई राहतों की मांग करते हुए वर्तमान याचिका दायर की है. जहां तक मुआवजे की मांग, 24 अप्रैल 2025 की घटना के लिए एसआईटी का गठन और छत्तीसगढ़ राज्य में हिंसा की घटना की जांच के लिए जांच आयोग अधिनियम, 1952 के तहत जांच आयोग के गठन का सवाल है, तो यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर वर्तमान याचिका में स्वीकार्य नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि यदि याचिकाकर्ता 24 अप्रैल 2025 की घटना के संबंध में शिकायत कर रहे हैं कि कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है, तो वर्तमान रिट याचिका स्वीकार्य नहीं है क्योंकि यदि याचिकाकर्ताओं को एफआईआर दर्ज न किए जाने के बारे में कोई शिकायत है, तो वे कानून के तहत उपलब्ध उपाय का लाभ उठाएंगे. वकील ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की शिकायत का निपटारा बहुत अच्छी तरह से किया जा सकता है.

चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस विभु दत्त की बैंच में सुनवाई हुई. इस सुनवाई में कोर्ट ने कहा रिट याचिका में याचिकाकर्ताओं द्वारा मांगी गई राहतें अस्पष्ट और प्रकृति में बहुविध प्रतीत होती हैं. भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका में, याचिकाकर्ताओं द्वारा मुआवजे, एसआईटी के गठन और अधिनियम, 1952 के तहत जांच आयोग के गठन के संबंध में मांगी गई राहत को निर्देशित नहीं किया जा सकता है. हालाँकि, जहाँ तक 24 अप्रैल 2025 की घटना के संबंध में एफआईआर दर्ज न करने की बात है, रिट याचिका अनुरक्षणीय नहीं है और यदि याचिकाकर्ता एफआईआर दर्ज न करने के संबंध में प्रतिवादी अधिकारियों की ओर से निष्क्रियता से व्यथित हैं, तो याचिकाकर्ता वसीम हैदर (सुप्रा) में दिए गए निर्णयों के आलोक में उपयुक्त अधिकारियों के समक्ष संपर्क कर सकते हैं. वहीं वर्तमान याचिका में हस्तक्षेप करने का कोई अच्छा आधार नहीं मिला, इसलिए वर्तमान याचिका तदनुसार खारिज किए जाने योग्य है और इसे खारिज किया जाता है, साथ ही उन्हें अपनी शिकायतों के निवारण के लिए उचित मंच के समक्ष प्राधिकारियों से संपर्क करने की स्वतंत्रता भी दी जाती है.

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/ Upendra Tripathi

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