गुवाहाटी, 19 अगस्त (Udaipur Kiran) । असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्व सरमा ने वन भूमि पर बाड़ लगाने संबंधी गौहाटी उच्च न्यायालय के निर्देश की सराहना करते हुए कहा है कि इससे असम में अतिक्रमण विरोधी अभियान के लिए एक मजबूत आधार मिला है। मुख्यमंत्री ने बीती रात मीडिया के साथ बातचीत करते हुए कहा कि यह फैसला सरकार को और अधिक बेदखली अभियान चलाने का अधिकार देता है और यह सुनिश्चित करता है कि अतिक्रमणकारियों को भूमि वापस दिलाने के राजनीतिक वादे अब और नहीं चलेंगे।
मुख्य न्यायाधीश अश्विनी कुमार और न्यायमूर्ति अरुण देव चौधरी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने राज्य को आरक्षित वनों में बाड़ लगाने का आदेश दिया और नए अतिक्रमण के खिलाफ चेतावनी दी। अतिक्रमणकारियों को नोटिस का जवाब देने के लिए 15 दिन और खाली करने के लिए 15 दिन का समय दिया गया है। अदालत ने अतिक्रमण को अनियंत्रित रूप से बढ़ने देने के लिए सरकारी अधिकारियों को भी जवाबदेह ठहराया।
डॉ. सरमा ने तर्क दिया कि पिछली सरकारों के कार्यकाल में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हुए थे और ज़ोर देकर कहा कि ज़िम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि नए फैसले ने कानूनी स्पष्टता प्रदान की है, जिससे वन भूमि को मुक्त कराने के राज्य सरकार के संकल्प को बल मिला है।
ज्ञात हो कि हाल ही में चलाए गए बेदखली अभियान इसी मुहिम को और मज़बूत करते हैं। गोलाघाट ज़िले के उरियामघाट में इस महीने की शुरुआत में 10 हजार बीघा से ज़्यादा ज़मीन से अतिक्रमण हटाया गया, इसके बाद रेंगमा रिज़र्व फ़ॉरेस्ट में लगभग 2,500 बीघा ज़मीन को खाली कराया गयै। सरकार का दावा है कि अब तक पूरे असम में 1.29 लाख बीघा से ज़्यादा जंगल और सरकारी ज़मीन पर से कब्ज़ा को हटाया गया है।
अधिकारियों ने बताया कि इन अभियानों में विद्यापुर, पीठाघाट, सोनारीबील, दयालपुर, डोलोनीपाथर, खेरबारी, आनंदपुर और मधुपुर सहित कई सघन अतिक्रमण वाले क्षेत्रों में कई अवैध ढांचे को ध्वस्त किए गए हैं।
उच्च न्यायालय के आदेश के बाद, राज्य सरकार अतिक्रमण हटाओ अभियान को सख़्ती से चलाने की तैयारी कर रही है। मुख्यमंत्री डॉ. सरमा ने स्पष्ट किया है कि सरकार वन भूमि की रक्षा के अपने प्रयासों से कोई समझौता नहीं करेगी।
(Udaipur Kiran) / श्रीप्रकाश
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