हरिद्वार, 12 जुलाई (Udaipur Kiran) । उत्तराखंड की धामी सरकार ने फर्जी बाबाओं के खिलाफ ‘ऑपरेशन कालनेमि’ शुरू किया है। पहले दिन देहरादून में एक बांग्लादेशी नागरिक समेत 28 और हरिद्वार में 13 फर्जी बाबाओं को गिरफ्तार किया गया। दूसरे दिन श्यामपुर कोतवाली पुलिस ने 18 फर्जी बाबाओं को हिरासत में लिया।
इस कार्रवाई को लेकर संत समाज में मतभेद उभरे हैं। कुछ संत इसे सही कदम मानते हैं, जबकि अन्य इसे दिखावटी बताते हुए कहते हैं कि सरकार केवल छोटे स्तर के भिक्षुकों को निशाना बना रही है, न कि असली ‘कालनेमियों’ को।
शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप महाराज ने कहा कि यदि सरकार फर्जी बाबाओं पर लगाम कसने के लिए वाकई संजीदा है तो सरकार को इसके लिए कानून बनाना चाहिए। सरकार को चाहिए की फर्जी बाबाओं की पहचान का जिम्मा अखाड़ों, मठों और संतों से जुड़ी संस्थाओं को सौंपे और सरकार इसमें संतों का सहयोग करे। कारण की असली नकली की पहचान संत ही कर सकता है। सरकार कैसे असली नकली की पहचान कर सकती है।
स्वामी आनन्द स्वरूप महाराज का कहना है कि सरकार और पुलिस प्रशासन के पास क्या सोर्स है कि सरकार साधु और कालनेमि में फर्क करे।
स्वामी आनन्द स्वरूप महाराज का कहना है कि जो कालनेमि बड़े-बड़े मठ बनाकर बैठे हैं और भगवाधारण कर व्यापार में संलिप्त हैं, उनकी पहचान कर उनको दण्डित करने का कार्य करना चाहिए।
उधर श्री शंभू पंचदशनाम आवाह्न अखाड़े के श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने भी आपरेशन कालनेमि पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि यदि सरकार कालनेमियों पर शिकंजा कसने के लिए वाकई संजीदा है, तो उसे चाहिए की पहले वह सभी आश्रम-अखाड़ों की सूची तैयार करे और वहां निवास करने वाले प्रत्येक साधु की जांच कराए। बाबा बनने से पहले से लेकर आज तक की सभी गतिविधियों को जांच में शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि सरकार ऐसा करती है तो बड़ी-बड़ी मछलियां इस जाल में फंसेंगी और कालनेमियाें से तीर्थनगरी एक माह में ही साफ हो जाएगी।
उन्हाेंने कहा कि कई ऐसे मठाधीश हैं जो अपराध की दुनिया में गहरी पैठ रखते हैं। उनका आपराधिक इतिहास है। जबकि वास्तव में वे ही कालनेमि हैं। भिक्षा मांगकर गुजारा करने वाले वास्तविक कालनेमि नहीं हैं।
वहीं दूसरी ओर ज्योतिर्मठ द्वारका शारदा पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के शिष्य दण्डी स्वामी गोविंदानंद सरस्वती ने आरोप लगाया कि श्री शंकराचार्य पद और नाम को लेकर कोर्ट, भक्तों, समाज और प्रशासन को धोखा देने वाले अनेक असामाजिक और आपराधिक केस में आरोपित स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, (वाराणसी उ.प्र.), सदानंद सरस्वती (झोतेश्वर नरसिंहपुर जिला म.प्र.) तथा विधुशेखर भारती (शृङ्गेरी, कर्नाटक) फर्जी हैं। सरकार इन पर कार्रवाई करे।
स्वामी गोविंदानंद सरस्वती ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जहां अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती द्वारा स्वयं को शंकराचार्य घोषित करने पर रोक लगाई है, वहीं भारत धर्म महामंडल तथा काशी विद्वत परिषद सहित अनेक प्रमुख संगठनों ने दोनों को शंकराचार्य मानने से इंकार किया है।
ऐसे में ऐसे संतों को भी कालनेमि की श्रेणी में रखा जाना चाहिए, जो न्यायालय के आदेशों के अवहेलना करते हैं।
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(Udaipur Kiran) / डॉ.रजनीकांत शुक्ला