लखनऊ, 08 जुलाई (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने युवाओं को रोजगार के अवसरों से जोड़ने और उन्हें हुनरमंद बनाने के लिए शिक्षुता प्रशिक्षण योजना को नई दिशा दी है। विगत 5 वर्षों में अप्रेंटिसशिप (शिक्षुता प्रशिक्षण) के लिए चयनित अभ्यर्थियों की संख्या चार गुना से अधिक बढ़ गई है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में जहां 19,937 अभ्यर्थियों को अप्रेंटिसशिप के लिए चयनित किया गया था, वहीं 2024-25 में यह संख्या बढ़कर 84,418 हो गई है।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश सरकार ने न केवल युवाओं को प्रशिक्षण के जरिए आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है, बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से भी सहयोग कर भविष्य को मजबूत बनाने का अवसर दिया है। 2024-25 में 84 हजार से ज्यादा युवाओं की भागीदारी इस योजना की सफलता का प्रमाण है।
हर साल अभ्यर्थियों की संख्या में हुई वृद्धि
राज्य सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि योगी सरकार ने युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए प्रदेश में 2020-21 में शिक्षुता प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की थी। पहले वर्ष इससे करीब 20 हजार अभ्यर्थी जुड़े थे, जबकि 2021-22 में यह संख्या बढ़कर 36,906 पहुंच गई। इसके बाद 2022-23 में अभ्यर्थियों की संख्या में और इजाफा हुआ और यह बढ़कर 56,940 पर पहुंच गई। युवाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए शुरू की गई योगी सरकार की इस योजना ने 2023-24 में 71,496 और 2024-25 में 85 हजार का आंकड़ा पार कर विशेष उपलब्धि हासिल की।
ऑनलाइन प्रणाली से पारदर्शिता और पहुंच दोनों बढ़ीं
प्रदेश में यह योजना अब राष्ट्रीय शिक्षुता प्रोत्साहन योजना (एनएपीएस) के रूप में ऑनलाइन पोर्टल से संचालित की जा रही है, जिससे ज्यादा युवाओं को उद्योग और सेवा क्षेत्र से जोड़ने में आसानी हो रही है। मुख्यमंत्री शिक्षुता प्रोत्साहन योजना के तहत, प्रत्येक शिशिक्षु को प्रतिमाह 1,000 रुपये की अतिरिक्त सहायता डीबीटी के माध्यम से सीधे उनके खाते में भेजी जा रही है। इसके अलावा, भारत सरकार भी उद्योग या अधिष्ठान द्वारा दी जा रही मासिक राशि का 25% (अधिकतम 1500 रुपये) प्रतिपूर्ति करती है। कुल मिलाकर एक शिशिक्षु को प्रतिमाह न्यूनतम 7,000 रुपये तक की सहायता मिल रही है।
आरक्षण और संवेदनशील वर्गों को प्राथमिकता
शिक्षुता कार्यक्रम का संचालन शिक्षु अधिनियम 1961 (संशोधित) के अंतर्गत किया जाता है। इसमें नियुक्ति के समय शिक्षु और नियोजक (उद्योग/संस्थान) के बीच अनुबंध किया जाता है, जो प्रशिक्षण पूर्ण होने पर समाप्त हो जाता है। खास बात ये भी है कि दिव्यांगजन, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और समाज के कमजोर वर्गों को इस योजना में प्राथमिकता दी जा रही है। इससे समावेशी विकास को भी बल मिला है।
(Udaipur Kiran) / मोहित वर्मा
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