गुना, 17 जुलाई (Udaipur Kiran) । आज का व्यक्ति मोह रूपी मदिरा को पीकर स्वयं को आपने आपको भूल गया है। आज का मानव पेट नहीं पेटी भरने में लगा है। उक्त धर्मोपदेश चौधरी मोहल्ला स्थित महावीर भवन में चातुर्मासरत निर्यापक मुनिश्री योग सागरजी महाराज के ससंघ मुनिश्री निरोग सागरजी महाराज दिए।
गुरुवार को मुनिश्री ने कार्तिकेयअनुप्रेक्षा ग्रंथ का स्वाध्याय कराते हुए कहा कि जो लक्ष्मी को सजाकर रखता है, जमीन में गाड़ देता है, वह स्वर्ण, धन, सपंदा पत्थर के समान है। आज के भौतिकवादी युग में व्यक्ति अपनी संपत्ति बैंकों में विदेशों के बैंकों में रखते हैं। वह अंत समय में कोई काम नहीं आती। पूर्व पुण्य से ही जो धन संपदा, दौलत मिली है या तो उसका उपभोग करो या फिर दान में दे दो। वरन एक निश्चित समय के बाद वह नष्ट हो जाती है।
मुनिश्री ने कहा कि धन की तीन गतियां होती हैं। दान, भोग या नाश। हम चौबीस घंटों में से आठ घंटे आजीविका पालने में 8 घंटे धर्म ध्यान में और 8 घंटे शरीर के लिए खाने पीने सोने में लगाते हैं। परंतु जो व्यक्ति चौबीस घंटे धन अर्जन में लगाता है और धर्म और धर्मायतनों में पैसा खर्च नहीं करता है वह तो बैंक के कैशियर और मुनीम की तरह होता है, जो करोड़ों रुपए अपने हाथों से देते हैं पर उनका उपयोग नहीं कर सकते।
मुनिश्री ने कहा कि अगर वह व्यक्ति नीति, न्याय से धन अर्जन करें तो उसका पुण्य भी बढ़ेगा और धर्म ध्यान भी होगा। मगर वह पाश्चात्य संस्कृति की होड में पेट नहीं पेटी भरने में लगा है, गरीब से अमीर, अमीर से लखपति फिर करोडपति बनने के चक्कर में लगा है तो उसका यह मनुष्य जीवन बेकार है। मुनिश्री ने कहा कि छोटी सी है जिंदगी, बड़े-बड़े अरमान, पूरे न हो पाएंगे, निकल जाएंगे प्राण।
उन्होंने कहा कि लक्ष्मी, धन सपंदा का कोई पति नहीं होता। हम उसके आगे पीछे घूमते रहते हैं। पर स्वयं की पत्नी को समय नहीं दे पाते हैं। एक विद्वान से पूछा गया कि अमीरी अच्छी होती है या गरीबी। तो उसने बहु सोच समझकर जबाव दिया कि जब लक्ष्मी आती है, तो बहुत अच्छी लगती है, परंतु जब लक्ष्मी जाती है तो बहुत दुख देती है। क्योंकि जब धन लक्ष्मी आती है तो छाती फूल जाती है और जब जाती है तो लात मार कर जाती है। अत: लक्ष्मी पुण्य की दासी है पुण्य से धन संपदा ऐश्वर्य प्राप्त होता है और देव, शास्त्र, गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा भक्ति समपर्ण करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। मुनिश्री ने विभिन्न उदाहरणों से दान की महिमा बताई। दान चार प्रकार के होते हैं, आहार दान, ज्ञानदान, औषधि दान, अभयदान। मुनिश्री ने लोगों को अपनी धन संपदा को धाॢमक कार्यों में लगाने की प्रेरणा दी
—————
(Udaipur Kiran) / अभिषेक शर्मा
You may also like
क्या आज शनिदेव की कृपा से खुलेंगे आपकी तरक्की के द्वार ? पढ़िए मेष से लेकर मीन तक के लिए कैसा रहेगा दिन
भारत के आश्रम जहां मुफ्त में ठहरने का मौका
हिंदी बोलने वाले लोग महाराष्ट्र में नौकरी करने क्यों आते हैं?
बिहार में अपराधियों और पुलिस की मिलीभगत, तभी तो अपराधी... चिराग पासवान का नीतीश सरकार पर तीखा हमला
आज सावन कृष्ण नवमी के दिन ग्रहों की स्थिति अनुकूल, जानिए काज दिनभर का शुभ अशुभ समय राहुकाल की पूरी जानकारी