कानपुर, 02 जुलाई (Udaipur Kiran) । केंचुए की खाद, जिसे वर्मीकम्पोस्ट भी कहा जाता है, एक उत्कृष्ट जैव उर्वरक है। जो केंचुओं द्वारा जैविक कचरे (जैसे गोबर, फसल अवशेष, आदि) को विघटित करके बनाया जाता है। यह खाद पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होती है और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करती है। यह बातें बुधवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दलीप नगर द्वारा निकरा परियोजना अंतर्गत कृषकों को दो दिवसीय प्रशिक्षण के दौरान सीएसए के मृदा वैज्ञानिक डॉक्टर खलील खान ने कही।
मृदा वैज्ञानिक डॉक्टर खलील खान ने बताया कि केंचुआ खाद पोषक तत्वों से भरपूर होती है, इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा होती है। जिससे मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह खाद मिट्टी की जल धारण क्षमता, वातन और बनावट में सुधार करती है, जिससे बेहतर जड़ विकास और पोषक तत्वों का अवशोषण होता है। वर्मीकम्पोस्ट रासायनिक उर्वरकों का एक सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प है। यह प्रशिक्षण ग्राम औरंगाबाद में किया गया ।
केंद्र के प्रभारी डॉ अजय कुमार सिंह ने वर्मी कंपोस्ट बनाने की विधि बताते हुए कहा कि एक उपयुक्त स्थान पर वर्मीकम्पोस्ट बेड बनाएं, जिसमें कम से कम 10-15 दिन पुराना गोबर डालें और केंचुओं (जैसे आइसेना फेटिडा) को बेड में डालें। केंचुए अपने पाचन तंत्र से कचरे को निगलकर वर्मीकम्पोस्ट में बदल देते हैं कुछ हफ्तों में, यह खाद तैयार हो जाएगी, जिसे मिट्टी में मिलाकर उपयोग किया जा सकता है।
डॉ निमिषा अवस्थी ने बताया की सब्जियों के लिए यह खाद अमृत स्वरूप है। कार्यक्रम में आठ अनुसूचित जाति के कृषकों को पीवीसी निर्मित वर्मी बेड भी वितरित की गयी साथ ही खरीफ गृहवाटिका के बीज भी दिये गये।
कार्यक्रम में एस आर एफ शुभम यादव के साथ चरण सिंह, अशोक, कृष्ण व सुदामा देवी, सहित 35 कृषक व कृषक महिलाओं ने प्रतिभाग किया।
(Udaipur Kiran) / मो0 महमूद
You may also like
रेयर अर्थ मेटल पर टूटेगा चीन का एकाधिकार! भारत में मिल रहे अच्छे संकेत, दुर्लभ पृथ्वी तत्व पर क्वाड कैसे करेगा मदद
Condom Tips- सालभर में कितने बिकते हैं महिलाओं वाले कंडोम, जानिए रिपोर्ट्स क्या कहती हैं
Petrol Price- किस देश में मिलता हैं सबसे सस्ता पेट्रोल, आइए जानें
काशी विश्वनाथ धाम से उठी स्वच्छता की अलख
जाति विशेष का नाम लेकर रामकथा की बात नहीं होनी चाहिए — दयाशंकर सिंह