देवभूमि उत्तराखंड में भगवान परशुराम के जन्मोत्सव को लेकर एक बार फिर से उत्साह और मांग का माहौल गर्म है। हर साल अक्षय तृतीया के दिन, जो इस बार 29 अप्रैल को मनाया जाएगा, भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।
इस पावन अवसर पर उत्तराखंड में सार्वजनिक अवकाश की मांग को लेकर ब्राह्मण समाज उत्थान परिषद ने देहरादून में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। परिषद ने मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन जिलाधिकारी के प्रतिनिधि को सौंपा, जिसमें भगवान परशुराम जन्मोत्सव को सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की अपील की गई।
इसके साथ ही, पश्चिम बंगाल में हिंदुओं पर हो रहे कथित अत्याचारों के खिलाफ राष्ट्रपति शासन की मांग को लेकर भी एक और ज्ञापन राष्ट्रपति महोदया को भेजा गया। यह कदम न केवल सामाजिक एकजुटता को दर्शाता है, बल्कि धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर समाज की संवेदनशीलता को भी उजागर करता है।
परशुराम जन्मोत्सव - उत्तराखंड में अवकाश की मांग
भगवान परशुराम, जिन्हें धर्म और न्याय के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है, ब्राह्मण समाज के लिए विशेष महत्व रखते हैं। उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, में ब्राह्मण समुदाय की बड़ी आबादी निवास करती है। फिर भी, यह आश्चर्यजनक है कि इस राज्य में परशुराम जन्मोत्सव पर सार्वजनिक अवकाश घोषित नहीं किया गया है।
ब्राह्मण समाज उत्थान परिषद का कहना है कि देश के कई अन्य राज्यों में इस पर्व को सरकारी अवकाश के रूप में मान्यता दी गई है। परिषद के अध्यक्ष पंडित सुभाष चंद्र जोशी ने बताया कि पिछले कई वर्षों से संगठन इस मांग को उठाता आ रहा है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। यह मांग केवल एक अवकाश की घोषणा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ब्राह्मण समाज की भावनाओं और उनकी धार्मिक आस्था का सम्मान करने का भी प्रतीक है।
ज्ञापन सौंपने के दौरान परिषद के सदस्यों ने जोर देकर कहा कि उत्तराखंड सरकार को इस दिशा में तत्काल कदम उठाने चाहिए। यह कदम न केवल समाज के एक बड़े वर्ग की भावनाओं का सम्मान करेगा, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को भी और मजबूत करेगा। परिषद के प्रवक्ता डॉ. वी डी शर्मा ने कहा, “हमारी मांग केवल अवकाश की नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत को संजोने की है। भगवान परशुराम का जीवन हमें धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।”
पश्चिम बंगाल में हिंदुओं पर अत्याचार - राष्ट्रपति शासन की मांग
ब्राह्मण समाज उत्थान परिषद ने एक अन्य गंभीर मुद्दे पर भी अपनी आवाज बुलंद की है। पश्चिम बंगाल, खासकर बांग्लादेश सीमा से सटे मुर्शिदाबाद जैसे जिलों में हिंदुओं पर कथित रूप से हो रहे अत्याचारों और उनके पलायन की खबरों ने समाज को झकझोर कर रख दिया है। परिषद ने राष्ट्रपति महोदया को संबोधित एक ज्ञापन में इन घटनाओं पर गहरी चिंता जताई और पश्चिम बंगाल में तत्काल राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की।
ज्ञापन में कहा गया कि मुर्शिदाबाद और अन्य क्षेत्रों में एक विशेष समुदाय द्वारा हिंदुओं के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ रही हैं। इन घटनाओं के कारण हिंदू समुदाय में भय का माहौल है और कई परिवारों को अपना घर-बार छोड़कर पलायन करना पड़ रहा है।
परिषद के महासचिव उमनरेश तिवारी ने कहा, “यह बेहद दुखद है कि हमारे देश में एक समुदाय को इस तरह की हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। हमारी मांग है कि केंद्र सरकार इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करे और राष्ट्रपति शासन लागू करके स्थिति को नियंत्रित करे।”
सामाजिक एकजुटता और भविष्य की उम्मीद
ज्ञापन सौंपने के इस कार्यक्रम में परिषद के कई प्रमुख सदस्य शामिल थे, जिनमें उपाध्यक्ष एस पी पाठक, पंडित जीवन प्रकाश शुक्ला, जय नारायण पाण्डेय, आलोक पाण्डेय और रेनू रतूड़ी जैसे लोग मौजूद थे। इस आयोजन ने न केवल ब्राह्मण समाज की एकजुटता को दर्शाया, बल्कि सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर समाज की सक्रियता को भी उजागर किया।
उत्तराखंड में भगवान परशुराम जन्मोत्सव पर अवकाश की मांग और पश्चिम बंगाल में हिंदुओं की सुरक्षा के लिए उठाई गई आवाज न केवल स्थानीय, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बन सकती है। यह कदम समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने और उनकी भावनाओं को सरकार तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम है। अब यह देखना होगा कि सरकार इस दिशा में क्या कदम उठाती है और क्या यह मांगें जल्द ही पूरी होती हैं।
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