साथ होते हो जब मेरे सुकून दिल को मिले-
भूल जाती हूं पल भर में सभी शिकवे औ गिले,
पुलकती पलकों को हो सुकून पुकारते हो जब-
ताकती हूं मैं तेरी ओर धरा सी,मेरे फलक !
गुनगुनाती है धूप कुनकुनी, हौले से मेरे कानों में-
मौसमे-इश्क में क्यों छोड़ गए प्रियतम तुम्हें बेगानों में?
पास *तुम्हारे ना होने पर*उन्मन हो जाता है तन-मन-
सूना घर-आंगन अकुलाता,शोर मचाती दिल की धड़कन.
निश-दिन यादें करती नर्तन, मुझे जगाकर करें इशारा-
थकी हुई पलकें जब सोती, दर्द तनिक सा करे किनारा,
खोई रहती हूँ खुद में ही, पास तुम्हारे ना होने पर
भटकी फिरती चुप्पी अक्सर, बहती है ज्यों जल की धारा.
- डा.अंजु लता सिंह गहलौत,नई दिल्ली
ई-मेल-anjusinghgahlot@gmail.com
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